स्वास्थ्य

भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया वायरसरोधी 3डी-मुद्रित मास्क

Dayanidhi

वैज्ञानिकों ने 3डी प्रिंटिंग और फार्मास्युटिकल (दवा) को मिला कर एक नए तरह का मास्क तैयार किया है जो संक्रमित कणों के संपर्क में आने पर वायरस पर हमला कर उसे समाप्त कर देता है। यह मास्क पुणे स्थित स्टार्ट-अप फर्म थिंकर टेक्नोलॉजीज इंडिया प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित किया है। मास्क पर वाइरसरोधी (एंटी-वायरल एजेंटों) की परत चढ़ी हुई है। जिन्हें विषाणुनाशक के रूप में जाना जाता है। कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई के हिस्से के रूप में, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के एक सांविधिक निकाय, प्रौद्योगिकी विकास बोर्ड (टीडीबी) की एक परियोजना है। यह व्यावसायीकरण के लिए चुनी गई शुरुआती परियोजनाओं में से एक विषाणुनाशक मास्क बनाने की परियोजना है।

इस परियोजना को मई 2020 में कोविड-19 से लड़ने के लिए नए समाधानों की खोज के हिस्से के रूप में टीडीबी से वित्तीय सहायता प्राप्त हुई।  फर्म का दावा है कि ये लागत प्रभावी मास्क सामान्य एन-95, 3-परतों वाली और कपड़े के मास्क की तुलना में कोविड-19 के फैलने को रोकने में अधिक प्रभावी हैं।

उच्च गुणवत्ता वाले अधिक प्रभावी मास्क की आवश्यकता को पूरा करना
थिंकर टेक्नोलॉजीज इंडिया ने नए फार्मास्युटिकल फॉर्मूलेशन और विभिन्न दवाओं से भरे हुए फिलामेंट्स की खोज कर उन्हें एक साथ जोड़ने के लिए फ्यूज्ड डिपोजिशन मॉडलिंग (एफडीएम) 3 डी-प्रिंटर बनाया। कंपनी के संस्थापक निदेशक डॉ शीतलकुमार ज़म्बद बताते हैं कि हमने महामारी के शुरुआती दिनों में समस्या और संभावित समाधानों के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। हमने महसूस किया कि संक्रमण को रोकने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण के रूप में फेस मास्क का उपयोग लगभग बहुत आवश्यक हो जाएगा। लेकिन हमने महसूस किया कि ज्यादातर मास्क जो तब उपलब्ध थे और आम लोगों की पहुंच में थे, वे घर के बने थे और अपेक्षाकृत कम गुणवत्ता वाले थे।

उच्च गुणवत्ता वाले मास्क की यही आवश्यकता है जिसने हमें संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए एक बेहतर दृष्टिकोण के रूप में लागत प्रभावी, अधिक कुशल विषाणुनाशक परत वाले मास्क विकसित करने की प्रेरणा दी। अब इनके व्यावसायीकरण करने के लिए परियोजना शुरू की गई है।

किस तरह बना यह मास्क
इस उद्देश्य के साथ, थिंकर टेक्नोलॉजीज ने विषाणुनाशक कोटिंग फॉर्मूलेशन विकसित करने पर ध्यान देना शुरू किया। इसे नेरुल में स्थित मर्क लाइफ साइंसेज के सहयोग से विकसित किया गया था। कोटिंग फॉर्मूलेशन का उपयोग कपड़े पर दवा की परत चढ़ाने के लिए किया गया है और 3 डी प्रिंटिंग सिद्धांत को कोटिंग को एक सामान बनाने के लिए उपयोग किया गया था।

एन-95 मास्क में दवा की परत चढ़े कपड़े को पुन: उपयोग होने वाले फिल्टर के साथ लगाया गया, इसमें 3-परतों से बने मास्क, साधारण कपड़े के मास्क, 3डी प्रिंटेड या अन्य प्लास्टिक कवर मास्क में एक अतिरिक्त परत के रूप में शामिल किया जा सकता है। इस प्रकार ये मास्क छानने की प्रक्रिया में अतिरिक्त सुरक्षा प्रदान करते हैं।

कोटिंग का परीक्षण किए जाने तथा सार्स-सीओवी-2 के वायरस को निष्क्रिय करने का दावा किया गया है। मास्क पर कोटिंग के लिए प्रयुक्त सामग्री सोडियम ओलेफिन सल्फोनेट आधारित मिश्रण है। यह हाइड्रोफिलिक और हाइड्रोफोबिक गुणों वाला साबुन बनाने वाला एजेंट है। वातावरण में फैले हुए विषाणुओं के संपर्क में आने पर यह विषाणु की बाहरी झिल्ली को रोक देता है। उपयोग की जाने वाली सामग्री कमरे के तापमान पर स्थिर होती है और व्यापक रूप से सौंदर्य प्रसाधनों में उपयोग की जाती है।

इन पुन: उपयोग किए जाने वाले मास्क के फिल्टर भी 3 डी प्रिंटिंग के उपयोग करके विकसित किए गए हैं। इसके अलावा, डॉ. ज़ंबद का कहना है कि मास्क में जीवाणु को छानने की क्षमता 95 फीसदी से अधिक पाई गई है। इस परियोजना में, पहली बार, हमने प्लास्टिक-मोल्डेड या 3 डी-प्रिंटेड मास्क कवर के लिए सटीक रूप से फिट होने के लिए कपड़े के अनेक परतों वाली फिल्टर बनाने हेतु 3 डी-प्रिंटर का उपयोग किया है।

थिंकर टेक्नोलॉजीज इंडिया प्रा. लिमिटेड के संस्थापक ने बताया कि उन्होंने इस उत्पाद के पेटेंट के लिए आवेदन किया है। व्यावसायिक पैमाने पर निर्माण भी शुरू हो गया है। इस बीच, एक एनजीओ द्वारा नंदुरबार, नासिक और बेंगलुरु के चार सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य कर्मियों के उपयोग के लिए और बेंगलुरु में एक लड़कियों के स्कूल और कॉलेज में 6,000 मास्क वितरित किए गए हैं।