स्वास्थ्य

भारत में एएमआर के खिलाफ जंग में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को आना होगा आगे

सभी सेक्टर्स में ये दोनों अहम कड़ियां हैं; एएमआर को रोकने के लिए इन्हें अपनी पूरी क्षमता के साथ आम आदमी के जीवन की सुरक्षा करनी चाहिए

Sagar Khadanga

इस बात को तीन साल से ज्यादा समय हो गया है जब भारत में एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) के लिए ग्लोबल एक्शन प्लान (जीएपी-एएमआर) की तर्ज पर नेशनल एक्शन प्लान (एनएपी-एएमआर) को पेश किया गया था।

देश के विभिन्न राज्य एएमआर के लिए स्टेट एक्शन प्लान तैयार करने के अलग-अलग स्तर पर है। अभी तक सिर्फ तीन राज्य (केरल, मध्य प्रदेश और दिल्ली) ही अपने स्टेट एक्शन प्लान पेश कर पाए हैं।

देशभर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बीच कई चर्चाएं हुई हैं और उनका परिणाम निकल कर यह आया है कि एंटी-माइक्रोबियल रेजिस्टेंस यानी रोगाणुरोधी प्रतिरोध शब्द को लेकर कोई चहलपहल नहीं रह गई है। 

एक समय एएमआर को रोकने पर सबसे अधिक महत्त्व दिया जा रहा था, लेकिन इस तरफ स्वास्थ्य सेवा की सुविधाओं और स्वास्थ्य कर्मियों ने बहुत सीमित योगदान दिया है। लिहाजा 'वन हेल्थ' की अवधारणा सामने आई है, जिसमें मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पशु स्वास्थ्य, भोजन, कृषि और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों की भूमिका पर भी जोर दिया गया है।

इसके अलावा इन सभी सेक्टरों को संचालित करने वाली मल्टीमीलियन कंपनियां एएमआर को रोकने का आधार हैं।  

दो-तिहाई से अधिक भारतीयों के बीच सार्वजनिक क्षेत्र की स्वास्थ्य सुविधाएं (पीएसएचसीएस) सबसे अधिक लोकप्रिय हैं। प्राथमिक, द्वितीयक और तीसरे दर्जे की स्वास्थ्य सेवाओं को पिरामिड के आकार में व्यवस्थित किया गया है, जिसमें प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं सबसे नीचे आती हैं।

पिछले लगभग एक दशक में तीसरे दर्जे की स्वास्थ्य सेवाओं का प्रशिक्षण देने की प्रक्रिया में तेजी रही। ठीक इसी दौरान अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान जैसे शीर्ष संस्थान देशभर में खुले हैं, जिससे स्वास्थ्य सेवाओं को अलग-अलग क्षेत्रों तक पहुंचाया जा सके। 

हर तरह की स्वास्थ्य सेवा में एएमआर को रोकने के लिए अलग तरह की चुनौतियां और अवसर आते हैं।

वैयक्तिक स्वास्थ्य सेवा सुविधाओं का विस्तार इस लेख की व्यापकता से कहीं ज्यादा है। एंटी-माइक्रोबियल स्टीवर्डशिप प्रैक्टिस (एएमएसपी) के लक्ष्य को काफी आसानी से हासिल किया जा सकता है, लेकिन इसे अभी तक अपने पूरे सामर्थ्य के मुताबिक शुरू नहीं किया गया है।

स्टीवर्डशिप का मतलब है निगरानी करना या ख्याल रखना, लेकिन एएमआर के मामले में एएमएसपी का असर जितना सोचा गया है, उससे कहीं ज्यादा पड़ेगा।

डायग्नोस्टिक स्टीवर्डशिप

इसमें माइक्रोबायोलॉजी लैबोरेटरी की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है, जिसमें लोकल एंटीबायोग्राम भी शामिल है। भारत में गिनी-चुनी पब्लिक सेक्टर हेल्थ केयर सुविधाएं हैं जिनके पास अपना खुद का एंटीबायोग्राम है। अगर पश्चिम देशों से तुलना की जाए तो लगभग सभी अस्पतालों के पास अपना एंटीबायोग्राम है। 

एक आधुनिक एंटीबायोग्राम क्लिनिक चलाने वालों को अपने अनुभवों के आधार पर एंटीमाइक्रोबियल का चुनाव करने का आत्मविश्वास देता है। एंटीबायोग्राम की अनुपलब्धता में 'हिट हार्ड' और 'हिट फ़ास्ट' का चलन ही बढ़ेगा जिससे एएमआर बढ़ेगा। 

फ्री में मौजूद डब्ल्यूएचओनेट का इस्तेमाल करके स्थानीय स्तर पर एंटीबायोग्राम तैयार करना और दवा के असर के बारे में संक्षिप्त में जानकारी देना इस समय की मांग है। 

क्लीनिकल स्टीवर्डशिप 

क्लिनीशियन्स को एंटीमाइक्रोबियल इस्तेमाल की सामान्य प्रणालियों के बारे में प्रशिक्षित किए जाने की ज़रूरत है, खासतौर से सामान्य औषधीय गुणों के बारे में। उन्हें अस्तपाल में भर्ती रहने वाले मरीजों, बिना भर्ती किए जाने वाले मरीजों, सेप्सिस या बिना सेप्सिस वाले अलग-अलग प्रकार के रोगियों के लिए अलग-अलग तरह के नियमों का पालन करना पड़ता है।

यहां 5 डी का अभ्यास किया जाना जरूरी है - सही डायग्नोसिस, सही दवाई, सही डोज, सही अवधि और तीव्रता कम करने का सही समय

नियमित रूप से एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की प्वाइंट प्रिवलेंस स्टडी, डेज ऑफ थेरेपी और डिफाइंड डेली डोज निगरानी बनाये रखने का सही तरीका हैं। लेकिन कम्प्यूटरीकृत प्लेटफार्म की कमी के चलते इसे हासिल करना मुश्किल हो जाता है।  

इन सबका फीडबैक पाना लुभावना ज़रूर है लेकिन यह बहुत मुश्किल काम है। एंटीमाइक्रोबियल के इस्तेमाल पर सरकारी रूप से कई प्रतिबंधों को लेकर चर्चाएं जारी हैं, क्योंकि अधिकतर इमरजेंसी केस को जूनियर हेल्थ केयर वर्कर संभालते हैं। 

इन्फेक्शन कंट्रोल स्टीवर्डशिप 

इन्फेक्शन कंट्रोल प्रैक्टिस (आईसीपी) एएमआर के चक्र को रोकने की सबसे ज्यादा प्रभावी और सबसे ज्यादा नज़रअंदाज़ की गई कड़ी है। इसमें हाथों की स्वच्छता, सतह की सफाई, बायो मेडिकल कचरे को अलग करने जैसे सरल कार्य से लेकर ऑपरेशन थिएटर की हवा बदलने, पॉजिटिव और नेगेटिव प्रेशर केबिन और बायो मेडिकल कचरे के प्रबंधन जैसे जटिल कार्य भी शामिल हैं।

देशभर में चलाये जा रहे भारत सरकार के अभियान 'कायाकल्प' के तहत अधिकतर पब्लिक सेक्टर हेल्थ केयर फैसिलिटी में इन्फेक्शन को कंट्रोल करने के उपायों में सुधार देखा गया है। नॉवेल कोरोनावायरस महामारी के दौरान इस तरफ ध्यान भरपूर ध्यान दिया गया है।

पर्यावरण और स्वच्छता स्टीवर्डशिप 

पब्लिक सेक्टर हेल्थ केयर फैसिलिटी को अपने आसपास के पर्यावरण की सुरक्षा करने के लिए रोले-मॉडल होना चाहिए। अस्पताल से संक्रमण फैलने वाले कई मामलों को अक्सर देखा जाता है। हालांकि ये अभी भी बहस का मुद्दा है, लेकिन वुहान की एक लैब से वायरस का रिसाव होने और उसके चलते कोविड-19 महामारी फैलने की बातें अब भी हमारे दिमाग में ताज़ा हैं।

शिक्षण-प्रशिक्षण और रिसर्च में स्टीवर्डशिप

तीसरे दर्जे के पब्लिक सेक्टर हेल्थ केयर फैसिलिटीज से पढ़कर निकलने वाले स्वास्थ्यकर्मियों को एएमआर और उसके परिणामों की गहरी जानकारी दी जानी ज़रूरी है क्योंकि वे समुदायों के साथ काम करेंगे। 

उनमें निवेश करने से आने वाले समय में अच्छे परिणाम मिलेंगे और भविष्य में उनकी कार्यशैली को बदलने की ज़रूरत नहीं होगी जिससे धन की भी बचत होगी। सूक्ष्मजीवों, एएमआर और एएमएसपी के बारे में रिसर्च के आईडिया को प्रोत्साहन देने और विकसित करने की जरूरत है।  

प्रशासन और नेतृत्व सम्बन्धी स्टीवर्डशिप 

कुल मिलकर, एएमआर के क्षेत्र में ज्यादातर पब्लिक सेक्टर हेल्थकेयर फैसिलिटीज नेतृत्व की कमी से जूझती हैं।  यह इसलिए भी हो सकता है क्योंकि एएमआर गैर-पुरस्कृत, गैर-लाभकारी है और इसे माप पाना भी आसान नहीं है। 

हालांकि यह उचित समय है कि पब्लिक सेक्टर हेल्थकेयर फैसिलिटीज खुद को सभी स्टेकहोल्डर्स के सामने रोले-मॉडल की तरह पेश कर सके। डॉक्टर्स इस समाज के सबसे ज्यादा प्रभावशाली लोगों में शामिल हैं। 

उन्हें इस प्रभाव का सही इस्तेमाल करते हुए प्राथमिक शिक्षा से लेकर राजनेताओं तक हर एक प्लेटफार्म पर एएमआर को चिन्हित करना चाहिए। कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि एएमआर के ग्लोबल एक्शन प्लान और नेशनल एक्शन प्लान के कूटनीतिक बिंदुओं के बीच नेतृत्व की भूमिका के अलावा और कोई भी फर्क नहीं है। 

निष्कर्ष

एएमआर के क्षेत्र में सभी सेक्टरों में हेल्थ केयर वर्कर्स और पब्लिक सेक्टर हेल्थकेयर फैसिलिटीज रोल-मॉडल की तरह एक मजबूत कड़ी है। अब समय आ गया है कि पब्लिक सेक्टर हेल्थकेयर फैसिलिटीज (सरकारी स्वास्थ्य सेवाएं) मौके को देखते हुए आगे आएं और एएमआर को रोकने के लिए अपनी पूरी क्षमता के साथ आम आदमी के जीवन की सुरक्षा करें।