Photo: Kumar Shambhav Shrivastav  
स्वास्थ्य

पेरू, इथोपिया से भी पिछड़े हैं भारतीय बच्चे, शारीरिक विकास में अवरोध

एक नए तुलनात्मक शोध से पता चला है कि भारतीय बच्चे पेरू, वियतनाम और इथोपिया की तुलना में शारीरिक विकास में रुकावट की समस्या से अधिक ग्रसित हैं

Shubhrata Mishra

बच्चों की शारीरिक वृद्धि में रुकावट होना एक विश्वव्यापी समस्या है। एक नए तुलनात्मक शोध से पता चला है कि भारतीय बच्चे पेरू, वियतनाम और इथोपिया की तुलना में इस समस्या से अधिक ग्रसित हैं।

शोध में पाया गया कि इन चारों देशों में औसतन 43 प्रतिशत बच्चे एक से पांच साल की उम्र में ही वृद्धि अवरोध (स्टन्टिंग) से ग्रस्त हो गए थे। इन बच्चों में से लगभग 32-41 प्रतिशत बच्चे किशोरावस्था तक भी ठीक नहीं हो पाए। हांलाकि लगभग 31-34 प्रतिशत बच्चों में सुधार हुआ लेकिन वयस्क होने के पहले वे इससेफिर से ग्रसित हो गए।यह भी देखा गया कि पांच साल तक सामान्य वृद्धि कर रहे बच्चों में से भी 13.1 प्रतिशत बच्चों की वृद्धि 8 से 15 साल के बीच रुक गई।

यह अध्ययन अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और हार्वर्ड टी.एच. चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने किया है।वर्ष 2002 तथा 2016 के बीच भारत, इथोपिया, पेरू और वियतनाम के कुल 7,128 बच्चों को लेकर पांच चरणों में सर्वेक्षण किए गए। इनमें ग्रामीण एवं शहरी तथा गरीब और अमीर सभी तरह के बच्चे शामिल किए गए थे। सर्वेक्षण में पेरु, इथोपिया और वियतनाम में पूरे देश से जबकि भारत में सिर्फ आंध्रप्रदेश के बच्चों को लिया गया था। इन बच्चों के एक, पांच, आठ, बारह और पंद्रह साल के होने पर उनकी वृद्धि में रुकावट संबंधी आंकड़ों का व्यापक विश्लेषण किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि अधिकांश बच्चेकई कारणों से बचपन औरप्रारंभिक किशोरावस्था के बीचअपनी उम्र के अनुरुप बढ़ नहीं पाते हैं। भौगोलिक स्तर परबच्चों में वृद्धि अवरोध, उसमें सुधार तथादुबारा वृद्धिरुकने की प्रवत्तियों में उल्लेखनीय भिन्नता दिखी। एक साल वाले बच्चों को छोड़कर शेष सभी चरणों में भारतीय बच्चों में वृद्धि में रुकावट का प्रतिशत सबसे अधिक देखा गया है। एक साल के बच्चों में वृद्धि में रुकावट का प्रतिशत इथोपिया में सर्वाधिक 41 प्रतिशत पाया गया, जो भारत में 30 प्रतिशत था। इथोपिया को छोड़कर बाकी तीनों देशों में एकवर्षीय बच्चों की तुलना में पांचवर्षीय बच्चों में वृद्धि अवरोध ज्यादा दिखा।

शोधकर्ताओं के अनुसार हांलाकि उम्र बढ़ने के साथ साथ वृद्धि अवरोधकी समस्या में उल्लेखनीय कमीदिखी।लेकिन भारत में बाकी देशों की तुलना में पांचों चरणों में बच्चों और किशोरों में वृद्धि अवरोध की समस्या लगभग एक जैसी ही रही। भारत में किशोरों में वृद्धि अवरोध सबसे ज्यादा 27 प्रतिशत, वहीं वियतनाम में सबसे कम 12.3 प्रतिशत था।

शोध में शामिल भारतीय मूल के प्रमुख शोधकर्ता प्रोफेसर एस.वी. सुब्रमण्यन ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि बच्चों में वृद्धि अवरोधएक प्रतिवर्ती क्रिया है, जो कई परिस्थितियों जैसे आनुवांशिक, आर्थिक और भौगोलिक पर निर्भर होती है।वैसे तो बच्चे बचपन से लेकर किशोरावस्था तक कभी भी इसके शिकार हो सकते हैं लेकिन अनुकूल परिस्थितियां मिलने पर उनमें सुचारु रुप से पुनः वृद्धि हो सकती है। हांलाकि कई बार ठीक हुए बच्चों में भी प्रतिकूल परिस्थितियों से दुबारा वृद्धि रुक जाने का खतरा होता है।अतः बच्चों में किशोरावस्था तक भी उनकी वृद्धि रुकने के बारे में गम्भीरता से सोचने की जरूरत है।"

अध्ययनकर्ताओं के अनुसार प्रायः यह धारणा होती है कि बच्चों में या तो जन्मजात अथवा प्रारम्भिक तीन साल तकवृद्धि अवरोध का खतरा होता है। ऐसी सोच के कारण माता के स्वास्थ्य और बच्चों में वृद्धि अवरोध की प्राथमिक रोकथाम पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तरों पर अनुसंधान और वर्तमान नीतियांबच्चों के प्रारंभिक तीन साल के विकास को ध्यान में रखकर तैयार की गई हैं।

शोध के नतीजों से स्पष्ट से है कि प्रारंभिक 1000 दिनों के साथ साथ किशोरावस्था तक भी बच्चों की वृद्धि पर पर्याप्त ध्यान दिया जाए तो उनकी वृद्धि अवरोध की समस्याको काफी हद तक हल किया जा सकता है।यह अध्ययन भविष्य में इन चारों देशों में बचपन से किशोरावस्था तक बाल वृद्धि की प्रवृत्तियों का पता लगाने में सहायक साबित हो सकता है। इससे बच्चों में वृद्धि अवरोध से मुक्ति और सुधार के लिए नीति निर्धारकों को बेहतर समझ भी मिल सकेगी।

शोध में एस.वी. सुब्रमण्यन के अलावा जेवेल गॉसमैन और रॉकली किम शामिल थे। यह शोध मैटरनल एण्ड चाइल्ड न्यूट्रिशन नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है। (इंडिया साइंस वायर)