स्वास्थ्य

कोविड-19 चुनौती-2021: भारत को उठना होगा

भारत को खुद की पहचान वैक्सीन उत्पादन का वैश्विक हब के रूप में बरकरार रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी

Vibha Varshney

मार्च के अंत तक चीन ने सबसे ज्यादा कोविड-19 वैक्सीन तैयार किया। अमरीका, भारत, यूरोपियन यूनियन और यूके का नंबर चीन के बाद आता है। अमरीका और यूके ने अपनी सारी वैक्सीन घरेलू इस्तेमाल के लिए रखा है। यूरोपियन यूनियन के देश भी अपनी वैक्सीन खुद तक ही सीमित रखे हुए हैं। इसे कूटनीतिक संबंध को मजबूत करने की कोशिश समझ लीजिए या फिर विशुद्ध सहानुभूति कि वर्तमान में केवल चीन और भारत ही दो ऐसे देश हैं, जो अपने यहां उत्पादित वैक्सीन का लगभग आधा हिस्सा दूसरे देशों खासकर विकासशील और पिछड़े मूल्कों को निर्यात कर रहे हैं। 

जब दुनिया में कोविड महामारी की दस्तक हुई, तब भारत वैक्सीन उत्पादन में वर्ल्ड लीटर था। वैश्विक स्तर पर चलने वाले टीकाकरण अभियान में इस्तेमाल होने वाले टीके में भारत की दवा निर्माता कंपनियों द्वारा उत्पादित टीकों की भागीदारी 60 प्रतिशत थी। 

यूरोप की सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट के ग्लोबल हेल्थ के वरिष्ठ नीति विश्लेषक एंथनी मैक डोनेल कहते हैं, “ऐसा कुछ हद तक इसलिए संभव हो पाया था कि हाल के वर्षों में भारत ने कम खर्च पर उच्च-गुणवत्तापूर्ण दवाइयां तैयार करने में महारत हासिल कर ली और सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया जैसी नवप्रवर्तनकारी कंपनियां ने अन्य देशों के मुकाबले सस्ते में उत्पाद बनाने का तरीका खोज लिया।” 

कोविड-19 वैक्सीन उत्पादन में भारत ने चीन और अमरीका के सामने वो सर्वोच्चता खो दी है, हालांकि ऐसा लगता है कि भारत अब भी अच्छी स्थिति में है। 24 फार्मा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठन इंडियन फार्मास्यूटिकल अलायंस के महासचिव सुदर्शन जैन कहते हैं, “वैक्सीन मैत्री पहल के तहत भारत ने 6 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन का डोज यूके, ब्राजील, मोरक्को और बांग्लादेश समेत 70 देशों को मुहैया कराया है।” 

प्राग्वे के एसोसिएशन फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स से जुड़े शोधकर्ता इवाना कारास्कोवा व वेरोनिका ब्लाबलोवा ने 24 मार्च को एक लेख में लिखा, “सच बात ये है कि कूटनीति के मामले में भारत चीन से बेहतर काम कर रहा है। पिछले साल मई में दुनिया की पहली कोविड-10 वैक्सीन कोनविडेसिया को लांच करने से एक महीने पहले चीन ने कहा था कि ये वैश्विक ‘जनहित’ के लिए है। तब से चीन 35 देशों को वैक्सीन भेज चुका है, लेकिन इसका इस्तेमाल उसने व्यावसायिक अवसर के रूप में किया।” 

चीन को लेकर थोड़ी चिंता ये भी है कि वह अपने सभी ग्राहकों के साथ समान व्यवहार नहीं करता है। दोनों शोधकर्ताओं ने लिखा है, “कुछ देशों को वैक्सीन दान के रूप में मिला है जबकि कुछ देशों ने खरीदा है या फिर उन्हें वैक्सीन खरीदने के लिए लोन दिया गया है- ये विकल्प प्राथमिक तौर पर लैटिन अमरीकी व कैरेबियन देशों को लक्षित थे।” 

चीन जब म्यांमार को 3 लाख डोद देने में विफल रहा, तो भारत ने तुरंत म्यांमार को 17 लाख वैक्सीन सप्लाई कर दी। नेपाल को भारत और चीन दोनों देशों ने वैक्सीन दिया, लेकिन अतिरिक्त वैक्सीन भारत ने ही मुहैया कराया। चीन की वैक्सीन के ट्रायल में फंडिंग में हिस्सेदारी से इनकार करने के बाद बांग्लादेश ने भी वैक्सीन के लिए भारत को ही चुना। 

ब्राजील के राष्ट्रपति जे. बोलसोनारो ने जब चीनी कंपनियों द्वारा तैयार की गई 4.6 करोड़ वैक्सीन डोज का डील ये कह कर ठुकरा दिया कि ब्राजील के नागरिक किसी के लिए प्रयोगशाला में परीक्षण में इस्तेमाल होने वाला जानवर नहीं बनेंगे, तो भारत ने तुरंत ब्राजील को वैक्सीन उपलब्ध करा दिया। कोविड-19 वैक्सीन की समान पहुंच सुनिश्चित करने के लिए यूनिसेफ, जीएवीआई, डब्ल्यूएचओ, सीईपीआई व अन्य के नेतृत्व में शुरू की गई कोवैक्स पहल में भारत बड़ा सप्लायर है। इस पहल के तहत भारत 80 प्रतिशत से ज्यादा डोज मुहैया कराता है। इस पहल का उद्देश्य खास तौर से गरीब देशों में वैक्सीन की सप्लाई करना है।  

भारत को एक और फायदा है। चूंकि दुनियाभर में टीकाकरण कार्यक्रमों के लिए भारत वैक्सीन का एक बड़ा हिस्सा देता रहा है, इसलिए भारत के टीके की गुणवत्ता स्थापित हो चुकी है। इसकी तुलना में चीन जांच को लेकर गुप्त रहता है और इसकी गुणवत्ता भी संदेह के घेरे में है। एक जेनरिक दवा कंपनी लोकॉस्ट के मैनेजिंग ट्रस्टी एस श्रीनिवासन कहते हैं, “चीन राजनीतिक तौर पर भी फैशन से बाहर है।” 

इसके परिणामस्वरूप कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारत में वैक्सीन बनाने की इच्छुक हैं। साल 2021 के आखिर तक स्पुटनिक V वैक्सीन के 85 करोड़ डोज तैयार करने के लिए रूस, भारत की कम से कम पांच कंपनियों के साथ बातचीत कर रहा है। हैदराबाद की डॉ रेड्डीज लेबोरेटरी ने स्पुटनिक V का क्लीनिकल ट्रायल कर लिया है और भारत में इमरजेंसी यूज ऑथोराइजेशन (ईयूए) लाइसेंस के लिए आवेदन दिया है।

 12 मार्च को अमरीका के डेवलपमेंट बैंक यूएस इंटरनेशनल डेवलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन ने घोषणा की कि वह साल 2022 तक 100 करोड़ कोविड-19 वैक्सीन का डोज तैयार करने के लिए हैदराबाद की कंपनी बायोलॉजिकल ई को मदद देगा। इसमें जॉन्सन एंड जॉन्सन की वैक्सीन एडी26.सीओवी2.एस के शामिल होने की संभावना है, जिसे अब तक 37 देशों को सप्लाई किया जा चुका है। इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के अध्यत्र महेश दोशी कहते हैं, “भारत की कई नामचीन कंपनियां मसलन जाइडस, जेनेंटेक (एमक्यूर) व वोखार्डट कोविड वैक्सीन बाजार में उतरने की तैयारी कर रही हैं।” 

इन सबसे आने वाले दिनों में भारत की वैक्सीन उत्पादन क्षमता में खासा इजाफा होगा जिससे भारत को अपनी स्थिति दोबारा मजबूत करने में मदद मिलेगी।