स्वास्थ्य

जीरो-डोज बच्चों के मामले में पहले नंबर पर भारत, जीवन रक्षक टीकों से पूरी तरह वंचित हैं 27 लाख बच्चे

आंकड़ों को देखें तो जहां देश में शून्य-खुराक वाले बच्चों की संख्या 13 लाख थी, वो 2021 में 108 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 27 लाख हो गई है

Lalit Maurya

दनिया में जीरो-डोज बच्चों के मामले में भारत पहले स्थान पर है। जहां 27 लाख बच्चों को जीवन रक्षक टीकों की एक भी खुराक नहीं मिली है। देखा जाए तो आजादी के 75 वर्ष बाद भी देश में स्वास्थ्य व्यवस्था की स्थिति दयनीय है, जोकि चिंता का विषय है।

यदि महामारी से पहले के आंकड़ों को देखें तो जहां देश में शून्य-खुराक वाले बच्चों की संख्या 13 लाख थी, वो 2021 में 108 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 27 लाख हो गई है। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि कोरोना महामारी ने भारत में भी जरूरी टीकाकरण पर गहरा प्रभाव डाला है। यह जानकारी आज यूनिसेफ द्वारा जारी रिपोर्ट "स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स चिल्ड्रन 2023" में सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक जीरो-डोज चिल्ड्रन के मामले में अफ्रीकी देश नाइजीरिया दूसरे स्थान पर है जहां करीब 22 लाख बच्चे इन जीवन रक्षक टीकों से वंचित हैं। वहीं यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया का हर पांचवा बच्चा जरूरी नियमित टीकाकरण से पूरी तरह या आंशिक रूप से वंचित है। इन बच्चों की कुल संख्या 1.82 करोड़ है। देखा जाए तो 2008 के बाद यह पहला मौका है जब स्थिति इतनी खराब हुई है।

इसे तरह हर पांच में से एक बच्चा खसरा जैसे जानलेवा बीमारी से सुरक्षित नहीं है। वहीं करीब सात में से आठ बच्चियां एचपीवी टीकाकरण से वंचित हैं, जो सर्वाइकल कैंसर का कारण बन सकता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शून्य-खुराक वाले बच्चे वे हैं जिन्हें जीवनरक्षक टीके डिप्थीरिया, पर्टुसिस (काली खांसी) और टेटनस यानी डीटीपी1 की पहली खुराक नहीं मिला है। वहीं आंशिक टीकाकरण से तात्पर्य उन बच्चों से हैं जिन्हें इसकी पहली खुराक तो मिली है लेकिन वो इसकी तीसरी खुराक से चूक गए हैं।

रिपोर्ट के अनुसार इसके लिए गरीबी, असमानता, अशिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था की खराब स्थिति जिम्मेवार है। देखा जाए तो दुनिया में शून्य खुराक वाले चार में से तीन बच्चे 20 देशों में रहते हैं जिनमें भारत-पाकिस्तान शामिल हैं।

महामारी के दौरान टीकाकरण में आई गिरावट को लेकर यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ ने पहले भी चेताया था कि कोविड-19 महामारी के चलते कुछ देशों में टीकाकरण की दर में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है।

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) ने बुधवार को जानकारी दी है कि 2019 से 2021 के बीच कोविड-19 महामारी और संघर्ष के चलते टीकाकरण में आए व्यवधानों के कारण दुनिया भर में करीब 6.7 करोड़ बच्चे एक या एक से अधिक जरूरी टीकाकरण से वंचित रह गए थे। देखा जाए तो महामारी के दौरान नियमित टीकाकरण से चूक गए इन बच्चों में से करीब आधे अफ्रीकी में हैं।

कुल मिलाकर देखें तो निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जहां शहरी क्षेत्रों में रह रहे 10 में से एक बच्चे और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले छह में से एक बच्चे को टीके की एक भी नियमित खुराक नहीं मिली थी। यूनिसेफ का कहना है कि जो बच्चे छूट गए हैं वे सबसे गरीब और दूरदराज के समुदायों में रहते हैं। ये समुदाय ग्रामीण क्षेत्रों या शहरी स्लम में रह रहे हैं, जो कई बार संघर्ष से प्रभावित हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक महामारी के दौरान 112 देशों में टीकाकरण का स्तर घटा है। जो पिछले 30 वर्षों में बच्चों को दिए जा रहे टीकों में सबसे बड़ी गिरावट को दर्शाता है। यूनिसेफ के मुताबिक इसके लिए कहीं न कहीं टीकों के बारे में समाज में फैली भ्रामक जानकारी भी एक वजह है।

इस बारे में में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल का कहना है कि महामारी के चरम पर, वैज्ञानिकों ने उससे बचने के लिए तेजी से जीवन रक्षक टीके विकसित किए, लेकिन इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बावजूद, अन्य सभी प्रकार के टीकों के बारे में भय और गलत जानकारी वायरस के रूप में फैली।

वैक्सीन को लेकर बढ़ रही है हिचकिचाहट

यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि इस बारे में अध्ययन किए गए 55 में से 52 देशों में कोविड-19 महामारी के दौरान बच्चों के लिए टीकों के महत्व की सार्वजनिक धारणा में गिरावट आई है।

यह सही है कि बिखरी स्वास्थ्य व्यवस्था और घर पर रहने के प्रतिबंधों के चलते महामारी के दौरान बच्चों को दिए जा रहे टीके करीब-करीब हर जगह बाधित हुए हैं। लेकिन बच्चों को दिए जा रहे इन टीकों के प्रति भरोसे में आई गिरावट की प्रवृत्ति चिंताजनक संकेत देती है। गौरतलब है कि कई देशों में तो इसमें 44 अंकों तक की गिरावट आई है।

हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक चीन, भारत और मैक्सिको ऐसे देश थे जहां टीकों के महत्व को लेकर धारणा या तो स्थिर रही या या फिर उसमें सुधार हुआ है। अध्ययन किए गए 55 देशों में से करीब आधे देशों में, सर्वे का उत्तर देने वालों का एक बड़ा हिस्सा (80 फीसदी से अधिक) बच्चों के लिए टीकों को "महत्वपूर्ण" मानता है।

इस बारे में रसेल ने जोर देकर कहा है कि, "हम नियमित टीकाकरण के प्रति भरोसे को महामारी का एक और शिकार नहीं बनने दे सकते। वर्ना मृत्यु की अगली लहर खसरा, डिप्थीरिया जैसी बीमारियों से आएगी, जिनकी रोकथाम मुमकिन है।“

रिपोर्ट से पता चला है कि महामारी से ठीक पहले या उसके दौरान पैदा हुए बच्चे अब उम्र के उस पड़ाव को पार कर चुके हैं जब आमतौर पर टीका लगाया जाता है। यह अंतराल बच्चों को उन बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है, जिनकों टीकों की मदद से टाला जा सकता है। यूनिसेफ ने इसे 'बाल अस्तित्व संकट' का नाम दिया है।

आंकड़ों के मुताबिक 2022 में, वैश्विक स्तर पर खसरे के मामले 2021 की तुलना में दोगुने हो गए है। इसी तरह पोलियो से लकवाग्रस्त हुए बच्चों की संख्या में भी साल-दर-साल 16 फीसदी की वृद्धि हुई। 2019 से 2021 के बीच इन तीन वर्षों में पोलियो से पिछले तीन वर्षों की तुलना में आठ गुना अधिक बच्चों को लकवा मारा है।

यूनिसेफ ने जोर देकर कहा है कि महामारी ने टीकाकरण से जुड़ी मौजूदा असमानताओं को बढ़ा दिया है। रिपोर्ट में इस बात को भी कहा है कि "बहुत से बच्चों,  विशेष रूप से सबसे ज्यादा हाशिए पर रह रहे समुदायों के लिए टीकाकरण अभी भी आसानी से उपलब्ध, सुलभ या सस्ती नहीं है।"

ऐसे में यूनिसेफ ने अपनी इस रिपोर्ट में रिपोर्ट महिला सशक्तिकरण की भूमिका को भी रेखांकित किया है जो बच्चे को टीका लगाने के परिवार के फैसले में अहम भूमिका निभा सकती हैं। आंकड़े भी इस बात को दर्शाते हैं कि जिन बच्चों की माएं कम पढ़ी लिखी होती है उन्हें पारिवारिक फैसलों में उनके सुझावों को तवज्जो नहीं दी जाती। इसका प्रभाव बच्चों के टीकाकरण पर भी स्पष्ट दिखता है। 

रिपोर्ट में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं को को मजबूत करने और टीकाकरण को बढ़ावा देने के लिए अग्रिम पंक्ति में तैनात स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर भी निवेश को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है, जिससे टीकाकरण के प्रयासों को सुनिश्चित किया जा सके। इनमें मुख्य रूप से महिलाऐं शामिल हैं जिन्हें कम वेतन, औपचारिक प्रशिक्षण और अवसरों की कमी के साथ-साथ सुरक्षा जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों से जूझना पड़ता है।

हर एक रुपए का निवेश पहुंचाएगा 26 रुपए का फायदा

ऐसे में यूनिसेफ ने अपनी इस रिपोर्ट में इन मुद्दों पर गंभीरता से विचार करने की बात कही है। साथ ही देशों से संसाधनों को बढ़ाने पर जोर दिया है, जिससे टीकाकरण के लिए किए जा रहे प्रयासों में तेजी लाई जा सके और उसके प्रति खोए हुए भरोसे को दोबारा मजबूत किया जा सके। रिपोर्ट में महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और स्थानीय वैक्सीन निर्माण को समर्थन देने के साथ स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने की बात कही है।

यह टीकाकरण कितनी जरूरी हैं इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह वैक्सीन हर साल 44 लाख लोगों की जान बचा रही हैं। अनुमान है कि 2030 तक यह आंकड़ा बढ़कर 58 लाख पर पहुंच जाएगा। देखा जाए तो इस टीकाकरण पर किया हर एक रुपए का निवेश 26 रुपए का फायदा पहुंचाएगा।

कैथरीन रसेल ने भी जोर देकर कहा है कि भविष्य में महामारियों से होने वाली मौतों और पीड़ा को रोकने के लिए नियमित टीकाकरण और सशक्त स्वास्थ्य प्रणालियां सबसे अच्छा उपाय हैं।