स्वास्थ्य

कोविड-19 वैक्सीन का सबसे बड़ा उत्पादक बन सकता है भारत: हॉटेज

ग्लोबल वैक्सीनेशन में भारत की भूमिका, इसकी चुनौतियां, वैक्सीन विरोधी अभियान और इस पर हो रही राजनीति पर हॉटेज ने डाउन टू अर्थ से बात की

Banjot Kaur

कोरोनावायरस संक्रमित बीमारी (कोविड-19) ने सारी दुनिया को डरा के रख दिया है। दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं ढुलमुल हो गयी हैं, काम करने वाली जनता निराश है और सरकारें असहाय हैं। "इस बीमारी की वैक्सीन कहां है"? ये सवाल अक्सर सुना जाता है- इसके पीछे धारणा ये है कि ये वैक्सीन सब कुछ ठीक कर देगी जिससे जीवन पहले की तरह अच्छा हो जायेगा।

लेकिन क्या ऐसा होगा? 

"वैक्सीन को कोरोनावायरस के जादुई उपाय के रूप में प्रचारित नहीं किया जाना चाहिए। ये वैक्सीन जरूरी नहीं है, बल्कि पब्लिक हेल्थ के लिए सहयोगी तकनीक हैं। यह सलाह वैक्सीनोलॉजिस्ट पीटर हॉटेज ने दी है - वो भी ऐसे समय में जब सारी दुनिया ये उम्मीद लगाए बैठी है कि कोई वैक्सीन कोरोनावायरस को हरा सकेगी।

हॉटेज पीएलओएस नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीज जर्नल के फाउंडिंग एडिटर, वैक्सीन पर आधारित तीन किताबों के लेखक और टेक्सास के बेयर कॉलेज में प्रोफेसर हैं। हॉटेज ने डाउन टू अर्थ के साथ एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में वैक्सीन को विस्तार में बातचीत की। उन्होंने वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में भारत की भूमिका, इसकी चुनौतियां, वैक्सीन विरोधी अभियान और वैक्सीन को लेकर होने वाली राजनीति पर बातचीत की।

बनजोत कौर: अगर इस साल के अंत तक या अगले साल की शुरुआत में कोई सुरक्षित वैक्सीन बना भी ली जाती है, तो आपके हिसाब से अपनी बड़ी आबादी तक वैक्सीन पहुंचाने में भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा ?

पीटर हॉटेज़ : भारत में निर्माण के लिए कम से कम चार बड़ी कोविड-19 वैक्सीन पर जोर दिया जा रहा है। सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ  इंडिया AstraZenea-Oxford वैक्सीन पर काम कर रहा है। हैदराबाद स्थित भारत बायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड एक इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन तैयार कर रहा है और बायोलॉजिकल ई दो वैक्सीन पर काम कर रही है, जिसमें से एक अमेरिका में तैयार हो रही है,  लेकिन वैक्सीन को इतनी जल्दी सब लोगों तक पहुंचना मुश्किल होगा।

दूसरी समस्या यह है कि इन वैक्सीन के खिलाफ अभियान खड़े हो रहे हैं, वैक्सीन विरोधी लोगों का मानना है कि ये वैक्सीन सुरक्षित नहीं हैं या इन्हें ठीक तरह से जांचा नहीं गया है। इंटरनेट पर बहुत सारी गलत जानकारी डाल दी गयी है। इससे निपटने का तरीका खोजा जाना जरूरी है।

तीसरा ये कि हमें याद रखना होगा कि अलग अलग वैक्सीन की वायरस से लड़ने की क्षमता अलग होती है। कुछ वैक्सीन सिर्फ आंशिक तौर पर सुरक्षा प्रदान करती हैं और ऐसे में हमें कॉन्टैक्ट-ट्रेसिंग के ज़रिये संक्रमित लोगों की पहचान करना जारी रखना होगा। 

लिहाजा वैक्सीन का निर्माण हो जाने और लोगों तक इसके पहुंच जाने के बाद भी अतिरिक्त उपाय अपनाने का संदेश फैलाना काफी मुश्किल होगा।

बनजोत: क्या आपको लगता है कि भारत अपनी आबादी के बड़े हिस्से तक वैक्सीन पहुंचा पाएगी?  

पीएच : भारत ने अब तक वैक्सीन के मामले में अच्छा काम किया है। भारत जीएवीआई एलायंस, गेटस फाउंडेशन, विश्व स्वास्थ्य संगठन, और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष के साथ काम कर रहा है। भारत अच्छा काम कर रहा है, खासतौर पर देश की गरीबी को देखते हुए। मुझे लगता है कि वैश्विक मंच पर खुद को सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता के रूप में स्थापित करने का यह भारत के लिए एक अच्छा मौका है। सवाल ये है कि क्या बड़ी फार्मा कंपनियां सारी दुनिया तक ये वैक्सीन पहुंचा पाएंगी।

मेरे हिसाब से ये भारत के लिए राष्ट्रीय गर्व दिखाने का एक अवसर है, सेना के जरिये नहीं बल्कि इस शांतिकाल में शक्ति के प्रदर्शन से। मेरे हिसाब से ये भारत के लिए गेम चेंजर साबित होगा। 

बनजोत : भारत में हर रोज सबसे ज्यादा केस रजिस्टर हो रहे हैं, और भारत साफ तौर पर इस वायरस से निपटने के लिए काफी प्रयासरत है। आपके हिसाब से भारत किस हद तक वैक्सीन पर निर्भर हो सकता है? या हम वैक्सीन से अधिक उम्मीद लगा रहे हैं?  

पीएच: जैसा मैंने पहले बताया कि अलग-अलग वैक्सीन की रोगों से लड़ने की क्षमता अलग होती है। ऐसे में अगर ये वायरस भारतीय आबादी को तेजी से संक्रमित कर रहा है तो भारत को ऐसी ही आक्रामकता से जन स्वास्थ्य के उपाय अपनाते रहना होगा। 

मेरे हिसाब से कई बार वैक्सीन को रोगों के जादुई समाधान के तौर पर प्रचारित किया जाता है। वैक्सीन जरूरी हैं, लेकिन ये याद रखा जाना चाहिए कि ये सिर्फ सहयोगी तकनीक हैं। वैक्सीन जन स्वास्थ्य बनाये रखने में मदद तो करती हैं लेकिन उनकी जगह नहीं ले सकती है।

बनजोत: रूस ने भारत को अपनी वैक्सीन की 10 करोड़ डोज देने की योजना बनाई है। किसी भी अन्य संप्रभु देश की तरह भारत को भी इमरजैंसी यूज ऑथराइजेशन (ईयूए) की राह ले सकता है। अगर भारत ऐसा करता है तो यह कैसे काम करेगा?

पीएच : गमालेया इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडर्मोलोजी एंड माइक्रोबायोलॉजी की बनाई रूसी वैक्सीन के बारे में काफी कम डाटा मौजूद है। फेज-1 अध्ययन का डाटा ठीक नजर आता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है कि ये वैक्सीन उसी तकनीक से बनी अन्य वैक्सीन से किसी भी मामले में बेहतर होगी।

उदाहरण के तौर पर, सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया ठीक उसी अडिनोवायरस प्लेटफार्म के साथ एक वैक्सीन बना रही है जो रूसी वैक्सीन में इस्तेमाल किया जा रहा है। भारतीय कंपनी बायोलॉजिकल ई के साथ भी यही मामला है। इसलिए इन दो भारतीय वैक्सीन को छोड़कर रूसी वैक्सीन के पीछे जाने का मुझे कोई फायदा नजर नहीं आता है। मुझे नहीं लगता कि भारत को रूसी वैक्सीन की कोई जरूरत पड़ेगी।

बनजोत : क्या आपको लगता है कि भारत के लिए ईयूए के साथ जाना सही रहेगा?   

(ईयूए से आशय है कि किसी वैक्सीन ट्रायल के पहले दो चरणों के नतीजों के आधार पर ही और तीसरे चरण के नतीजों का इंतजार किए बिना उसके उपयोग की इजाजत दे देने से है) 

पीएच : ये इस बात पर निर्भर करेगा कि ईयूए कैसे काम करता है। उदाहरण के तौर पर हमने अमेरिका में किसी भी बड़ी वैक्सीन के लिए ईयूए नहीं लिया। लिहाजा वैज्ञानिक समुदायों में बहुतों को पता भी नहीं है कि ये है क्या? आप ईयूए की कार्यप्रणाली पर टिप्पणी नहीं कर सकते हैं क्योंकि ईयूए को देश खुद तैयार करते हैं। और यही सबसे मुश्किल भाग होने वाला है। यह देखना दिलचस्प होगा कि अगर भारत में ईयूए के आधार पर वैक्सीन को अनुमति मिल भी जाती है तो क्या वे तीसरे चरण के ट्रायल जैसी विस्तारित प्रक्रिया के आसपास होगी या नहीं।

बनजोत : ब्रिटेन ने घोषणा की है कि वह ह्यूमन चैलेंज ट्रायल्स (एचसीटी) के साथ आगे बढ़ेगा। प्रस्ताव का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि इस महामारी के चलते बड़ी संख्या में मौत हो चुकी हैं, जिसके बाद खतरे मोल लेने की सम्भावना नहीं रह गई है, जबकि जो लोग इसके विरोध में हैं उनका कहना है कि ब्रिटेन को इस दिशा में आगे नहीं बढ़ना चाहिए, क्योंकि इस महामारी का कोई इलाज मौजूद नहीं है। इस मामले में आपका क्या कहना है?

(एचसीटी ऐसी ट्रायल प्रक्रिया है, जहां अध्ययन में भाग लेने वाले लोगों को पहले वैक्सीन का डोज दिया जाता है और उसके बाद उनमें लाइव वायरस इंजेक्ट किया जाता है। यह प्रक्रिया वैक्सीन ट्रायल के तीसरे चरण की जगह लेती है, जिसमें प्रतिभागी में लाइव वायरस इंजेक्ट नहीं किया जाता है, बल्कि सिर्फ वैक्सीन का टीका लगाया जाता है और लम्बे समय के लिए निगरानी में रखा जाता है। इसके साथ रिस्क जुड़ा है : अब तक कोविड-19 का कोई भरोसेमंद इलाज नहीं मिला है। अगर प्रतिभागी में गंभीर बीमारी पैदा हो गई तो उसे बचाया नहीं जा सकेगा।) 

पीएच : मुझे नहीं लगता कि कोविड-19 वैक्सीन के लिए हमें एचसीटी की जरूरत पड़ेगी। मुझे लगता है कि हमें इस वैक्सीन के प्रदर्शन की काफी जानकारी मिल जाएगी, क्योंकि भारत, अमेरिका और ब्राजील में इस वायरस का संक्रमण बढ़ता जा रहा है। (अगर लोगों में इस वायरस का पर्याप्त प्रेषण नहीं होगा तो ये अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा कि वायरस के खिलाफ वैक्सीन कितनी असरदार है।)

प्लेसिबो या वैक्सीन के निष्क्रिय रूप की तुलना में वैक्सीन के सक्रिय रूप कितने असरदार हैं, इसका अनुमान लगाने के लिए पर्याप्त प्रेषण हो चुका है। इसके लिए ह्यूमन चैलेंज स्टडी की जरूरत नहीं है।

बनजोत: अगर ब्रिटेन फिर भी इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाता है, जैसा कि खबरें आ रही हैं, तो क्या आपको लगता है कि ये एक सही कदम होगा? 

पीएच : मुझे ह्यूमन चैलेंज स्टडीज की तरफ जाने का तर्क समझ नहीं आता है। ये अध्ययन सिर्फ तब किया जाता है, जब वैक्सीन का आंकलन करने का कोई और रास्ता न हो। लेकिन हमारे पास पर्याप्त संक्रमण हैं जिससे वैक्सीन का आंकलन तेजी से किया जा सकता है। असल में देखा जाए तो ह्यूमन चैलेंज मॉडल को तैयार करने में काफी समय लग सकता है। अब हम अच्छे क्लीनिकल ट्रायल के जरिये तेजी से जवाब पा सकते हैं। 

बनजोत: 150 से ज्यादा देश कोवेक्स में शामिल हुए हैं। लेकिन तीन बड़े देश - अमेरिका, चीन और रूस इससे नहीं जुड़े हैं। दुनिया की सबसे बड़ी ग्लोबल पार्टनरशिप पर इसका क्या प्रभाव पड़ सकता है?

पीएच : मुझे लगता है कि ये असल समस्या है। मेरे हिसाब से कोवेक्स से बाहर आना अमेरिका की बड़ी भूल थी, क्योंकि हम आने वाले दिनों में हो सकता है यह देखें कि इन देशों में यह वैक्सीन बड़ी मात्रा में नहीं पहुंच पाई। दूसरी ओर, अब अमेरिका को रूस और चीन के साथ अलग-अलग समझौते करने पड़ेंगे। मुझे चिंता है कि इस कदम से वैक्सीन की वैश्विक संचालन प्रणाली ढेर हो सकती है। उम्मीद है कि हम इसे ठीक कर सकेंगे। 

बनजोत: द लांसेट में प्रकाशित अध्ययन के मुताबिक कई देशों में वैक्सीन विरोधी अभियान तेज़ी से बढ़ रहा है। कोविड-19 के परिदृश्य में ये कैसे काम करेगा? 

पीएच : हम पहले से ही बड़ी संख्या में अमेरिकियों को वैक्सीन का विरोध करते देख रहे हैं। हम वैश्विक विज्ञान-विरोधी अभियान को बढ़ता देख रहे हैं। मुझे चिंता है। मैं इनका सबसे पहला टारगेट हूं। ये लोग मुझे असल गैंगस्टर कहते हैं क्योंकि मेरी बेटी को ऑटिज़्म है और मैंने और एक किताब लिखी है- वैक्सीन डू नॉट कॉज राशेल ऑटिज्म।  

लिहाजा ये असल समस्या है। अन्य देशों कि तरह ये भारत पर भी असर डालेगी और हमें इससे निपटने के लिए वैश्विक समाधान की जरूरत है।