भारतीय महिलाओं में शिक्षा का प्रसार, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए वरदान साबित हो सकता है। रिसर्च से पता चला है कि बच्चियों और महिलाओं की शिक्षा दर में होती वृद्धि, ने केवल शहरों में बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर को कम करने में मददगार हो सकती है। यह गिरावट मुख्य रूप से महिलाओं की शिक्षा में सुधार के साथ-साथ जीवन स्तर में वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं तक बेहतर पहुंच पर निर्भर है।
ग्रामीण और शहरी भारतीय महिलाओं में शिक्षा और पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर के बीच संबंध को मापने वाला यह अध्ययन ऑस्ट्रिया के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एप्लाइड सिस्टम्स एनालिसिस (आईआईएएसए) के शोधकर्ताओं समीर के सी और मोरध्वज द्वारा किया गया है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल हेल्थ एंड प्लेस में प्रकाशित हुए हैं।
यदि आंकड़ों पर गौर करें तो 1990 से 2020 के बीच भारत में पांच साल से कम उम्र आयु के बच्चों की होने वाली मौतों में प्रभावशाली रूप से गिरावट दर्ज की है। जो 1990 में 34 लाख से, 2020 में 76 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 8.24 लाख रह गई है। इसी तरह 2020 में प्रति हजार जीवित जन्मों पर पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में मृत्युदर घटकर 33 रह गई है। जो 1990 में 126 दर्ज की गई थी। वहीं 2019 में यह आंकड़ा 35 दर्ज किया गया था। जो शहरी क्षेत्रों में 23 और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति हजार जीवित बच्चों पर 39 रिकॉर्ड किया गया था।
भारत में पहली बार ग्रामीण और शहरी संदर्भ में किए गए इस अध्ययन का उद्देश्य मातृ शिक्षा और बच्चों के स्वास्थ्य के बीच संबंधों की खोज करना था। साथ ही यह जानना था कि क्या भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर पर माओं की शिक्षा का प्रभाव पड़ रहा है। वहीं पिछले तीन दशकों में स्थिति में कैसे और कितना बदलाव आया है।
अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने 1992 से 2021 के बीच भारत में किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के पांच दौरों का विश्लेषण किया है। वहीं पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर का विश्लेषण, एक प्रश्नावली के माध्यम से एकत्र किए आंकड़ों की मदद से की गई है।
इस सर्वे में महिलाओं के गर्भधारण से जुड़ी जानकारी एकत्र की गई थी, विशेष तौर पर बच्चे के जन्म की तारीख, कितने बच्चे जीवित रहे, मृत्यु के समय बच्चे की उम्र कितनी थी, इस तरह के आंकड़े इस सर्वेक्षण में एकत्र किए गए थे। साथ ही सर्वे में महिलाओं की उम्र, शिक्षा, धर्म, जाति, प्रजनन और स्वास्थ्य के सन्दर्भ में भी जानकारी जुटाई गई थी।
रिसर्च के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक एनएफएचएस के पांचों दौरों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर, शहरों की तुलना में ग्रामीण भारत में ज्यादा रही। शोधकर्ताओं के मुताबिक इसके लिए वहां की खराब सामाजिक-आर्थिक स्थिति और स्वास्थ्य देखभाल के बदतर हालात जिम्मेवार थे।
भर रही है शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच की खाई
शोध के मुताबिक शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में पांचों सर्वेक्षणों के दौरान पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर 50 फीसदी ज्यादा रही। हालांकि, सामाजिक आर्थिक और मातृ स्वास्थ्य देखभाल में सुधार जैसे कारकों को समायोजित करने के बाद यह अंतर कम जरूर हुआ है।
हालिया सर्वेक्षण इस बात की ओर भी इशारा करते हैं कि एनएफएचएस एक से तीन के बीच अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में मृत्यु का जोखिम बढ़ा था। वहीं पिछले दो सर्वेक्षणों (एनएफएचएस IV और V) में ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं दर्ज किया गया है।
रिसर्च के मुताबिक जिस तरह से महिलाओं में शिक्षा के स्तर (विशेष रूप से माध्यमिक शिक्षा) का विकास हुआ है, उसके कारण सभी सर्वेक्षणों में बच्चों की मृत्यु दर में गिरावट दर्ज की गई है।
इसी तरह 58 देशों पर किए एक अध्ययन के मुताबिक माओं की शिक्षा में एक अतिरिक्त वर्ष का इजाफा पांच वर्ष या उससे कम आयु के बच्चों की मृत्यु में 34 फीसदी की कमी कर सकता है।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता मोरध्वज का कहना है कि "हाल के वर्षों में जो माएं कम शिक्षित या जिनकी शिक्षा प्राथमिक स्तर की थी, उनके पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर में कोई बड़ा अंतर नहीं आया है।" हालांकि उनके अनुसार अतीत में मातृ शिक्षा का प्रभाव ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में बच्चों की मृत्यु दर पर भिन्न-भिन्न था।
उन्होंने बताया कि शहरी क्षेत्रों में रहने वाली वह महिलाएं जिनकी शिक्षा माध्यमिक स्तर की थी, उन्होंने अपने ग्रामीण समकक्षों की तुलना में बाल मृत्यु दर का कम अनुभव किया था। हालांकि यह प्रभाव हाल के सर्वेक्षणों में नहीं देखा गया है। शोध के मुताबिक शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में पांचों सर्वेक्षणों के दौरान पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्युदर 50 फीसदी ज्यादा रही।
ऐसे में शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि माओं में, विशेष रूप से माध्यमिक स्तर तक शिक्षा, ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में बच्चों की मृत्यु दर को कम करने का एक सुरक्षात्मक कारक बनी हुई है।
ऐसे में शोधकर्ता समीर का कहना है कि, "ऐसा लगता है कि वर्तमान नीतियां सही ढर्रे पर है। लेकिन फिर भी शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में माध्यमिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जिससे पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर में आती गिरावट को बरकरार रखा जा सके।" उनके अनुसार इसके लिए देश में शैक्षिक अवसरों को बढ़ाना देना महत्वपूर्ण है।