स्वास्थ्य

मिर्गी रोगियों के इलाज के लिए आइआइटी दिल्ली ने खोजी नई उन्नत तकनीक, लाखों मरीजों के लिए साबित होगी वरदान

मिर्गी दुनिया सबसे आम न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो नर्वस सिस्टम को प्रभावित है। इस विकार में रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। इस अवस्था में रोगी का अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता है

Lalit Maurya

भारत में मिर्गी रोगियों के इलाज के लिए आइआइटी दिल्ली ने एक ऐसी नई तकनीक विकसित की है, जिसकी मदद से रोगी के दिमाग के उस स्थान का आसानी से पता चल सकेगा, जहां सजर्री की जरूरत है। इस तकनीक को शोधकर्ताओं ने 'नान इनवेसिव ईईजी बेस्ड ब्रेन सोर्स लोकलाइजेशन' नाम दिया है। इस तकनीक की मदद से न केवल इस प्रक्रिया में लगने वाले समय की बचत होगी साथ ही यह रोगी के लिए कम कष्टदायक और असुविधाजनक है।

गौरतलब है कि मिर्गी दुनिया का चौथा सबसे आम तंत्रिका संबंधी विकार यानी न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है जो आमतौर पर नर्वस सिस्टम को प्रभावित है। आज दुनियाभर में करोड़ों लोग इसका शिकार बन चुके हैं। इस विकार में रोगी को बार-बार दौरे पड़ते है। इस अवस्था में रोगी का अपने शरीर पर नियंत्रण नहीं रहता है।

आमतौर पर यह समस्‍या बच्चों में पाई जाती है। हालांकि यह विकार हर उम्र के लोगों को प्रभावित कर सकता है। यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों पर गौर करें तो वैश्विक स्तर पर करीब पांच करोड़ लोग इस बीमारी की चपेट में हैं। वहीं भारत में यह आंकड़ा 20 लाख के करीब है।

काफी हद तक मिर्गी को दवाओं की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है, हालांकि, जब दवाएं दौरे को नियंत्रित करने में विफल हो जाती हैं, तो उसे दवा प्रतिरोधी मिर्गी कहा जाता है।

देखा जाए तो दवा प्रतिरोधी मिर्गी के मस्तिष्क की संरचनात्मक असामान्यताओं के कारण उत्पन्न होने की सम्भावना सबसे ज्यादा होती है। ऐसे में मस्तिष्क की सर्जरी ही इन रोगियों के लिए पूर्ण इलाज प्रदान कर सकती है, बशर्ते कि एक न्यूरोसर्जन द्वारा उस  मस्तिष्क में पैदा हुई असामान्यता और इलेक्ट्रिकल सिग्नल की उत्पत्ति की समय पर सटीक पहचान की जाए।

लेकिन इस सर्जिकल उपचार में सबसे ज्यादा जटिल और मुश्किल काम शरीर में पैदा होने वाली इस विषमता की उत्पत्ति का निर्धारण और उसे मस्तिष्क की संरचनात्मक असामान्यता के साथ जोड़ना है।

यह संरचनात्मक असामान्यताएं इतनी सूक्ष्म होती हैं कि इन्हें केवल एमआरआई तकनीक की मदद से ही पहचाना जा सकता है और हमेशा इलेक्ट्रोएन्सेफलोग्राम (ईईजी) मूल्यांकन के साथ इसकी व्याख्या की जा सकती है।

इसके साथ ही न्यूरोसर्जन इसकी पहचान के लिए अन्य तरीके जैसे पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी (पीईटी) स्कैन और मैग्नेटोएन्सेफलोग्राफी (एमईजी) का उपयोग करते हैं। पीईटी स्कैन के लिए  रेडियोएक्टिव पदार्थों का उपयोग किया जाता है, जबकि भारत में एमईजी की सुविधा बहुत सीमित और कुछ गिने चुने संस्थानों में ही उपलब्ध है।

इसी तरह क्रेनियोटोमी और रोबोटिक की मदद से की जाने वाली सर्जरी बहुत जटिल होती हैं जहां चिकित्सक दिमाग में इलेक्ट्रोड लगाने के लिए खोपड़ी में छेद करते हैं। देखा जाए तो एपिलेप्टोजेनिक जोन डिटेक्शन में 2 से 8 घंटे का समय लगता है और इसमें मरीजों को बहुत कष्ट और असुविधा होती है।

ऐसे में आईआईटी दिल्ली के प्रोफेसर ललन कुमार के नेतृत्व में शोधकर्ताओं ने मिर्गी फोकल डिटेक्शन के लिए एक गैर-इनवेसिव ईईजी आधारित ब्रेन सोर्स लोकलाइज़ेशन (बीएसएल) फ्रेमवर्क तैयार किया हैं जो कहीं ज्यादा बेहतर है और मरीजों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। इस तकनीक की मदद से क्रेनियोटोमी की जरूरत नहीं पड़ेगी।

उन्होंने जानकारी दी है कि इस तकनीक में मरीज के सिर के ऊपर कुछ सेंसर लगाए जाएंगे और चंद मिनटों में यह पता चल जाएगा कि मस्तिष्क के किस हिस्से में इलेक्ट्रिकल सिग्नल और संरचना असामान्य है।

ऐसे में डाक्टर आसानी से यह जान सकेंगें कि दिमाग के किस हिस्से में सर्जरी करने की जरुरत है। आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ता अब इस तकनीक के आधार पर इसका प्रोटोटाइप तैयार करने में जुट गए हैं। इस तकनीक के बारे में प्रोफेसर ललन कुमार का कहना है कि इससे न केवल समय की बचत होगी साथ ही मरीजों की सुविधा को देखते हुए यह तकनीक एक महत्वपूर्ण खोज है।