स्वास्थ्य

भारत में महिलाएं क्यों निकलवा रही हैं गर्भाशय, रिसर्च से पता चली यह वजह

S Suresh Ramanan

सर्जरी के जरिए शरीर से गर्भाशय हटाने की प्रक्रिया को हिस्टरेक्टमी कहा जाता है। अजीब बात यह है कि यह महिलाओं के लिए दूसरी सबसे ज्यादा की जाने वाली सर्जरी है। 21वीं सदी में कई देश जहां पहले हिस्टरेक्टमी सर्जरी का बहुत अधिक प्रचलन था, वहां अब ये सर्जरी कम हो गई हैं। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में भारत में इस सर्जरी के मामले बढ़ने की कई रिपोर्ट सामने आई हैं। उदाहरण के तौर पर अमेरिका में 1000 में से 6 महिलाओं हिस्टरेक्टमी सर्जरी करवाती हैं जबकि भारत में 1000 में 17 महिलाएं इस सर्जरी को चुनती हैं, जो अमेरिका के मुकाबले तकरीबन तीन गुना है।

रिसर्चर्स यह जानना चाहते थे कि भारतीय महिलाओं को ऐसी कौन सी स्वास्थ्य समस्याएं होती हैं, जिनके कारण वे हिस्टरेक्टमी करवाती हैं। रिसर्चर्स ने यह भी देखा कि जहां महिलाएं सर्जरी करवाती हैं, वहां उन्हें कैसी स्वास्थ्य सेवाएं मिलती हैं। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे डाटा (2015-16) में हिस्टरेक्टमी के बारे में डाटा इकट्‌ठा किया गया। इसमें 'हिस्टरेक्टमी कितने वर्ष पहले हुई',  'हिस्टरेक्टमी सरकारी अस्पताल में हुई या निजी अस्पताल में', 'हिस्टरेक्टमी करवाने का कारण' जैसे सवालों को शामिल किया गया। इस डाटा से रिसर्चर्स से को हिस्टरेक्टमी के बढ़ते ट्रेंड के कारणों का पता लगाने में मदद मिली।

रिसर्च में सामने आया कि हिस्टरेक्टमी का प्रमुख कारण अत्यधिक माहवारी है। राज्यों के बीच हिस्टरेक्टमी के मामलों की तुलना में पता चला कि आंध्र प्रदेश और बिहार में हिस्टरेक्टमी की सबसे ज्यादा सर्जरी कराई जाती हैं और इसमें से अधिकतर सर्जरी निजी अस्पतालों में की गईं। 1997 से पहले सिर्फ 43 फीसदी हिस्टरेक्टमी सर्जरी निजी अस्पतालों में होती थीं, लेकिन 2016 के अंत तक इन सर्जरी की संख्या बढ़कर 74 फीसदी हो गई।

इस अध्ययन में सामने आया कि पूर्वोत्तर राज्यों में हिस्टरेक्टमी के केस भी कम हैं और उनमें से भी अधिकतर सरकारी अस्पतालों में की जाती हैं। इससे इन राज्यों में स्थानीय स्तर के मजबूत सरकारी स्वास्थ्य सेवा ढांचे के बारे में पता चलता है। साथ ही सरकारी अस्पतालों में लोगों के भरोसे की भी झलक दिखती है।

कई बार डॉक्टर महिलाओं को यह सर्जरी कराने की सलाह देते हैं, जबकि इसके बिना भी उनका इलाज किया जा सकता है। हरिहर साहू के साथ यह सर्वे करने वाली मुंबई के इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज की तृप्ति मेहर ने बताया कि मेडिकल साइंस में हुई तरक्की के बाद कई मामलों में हिस्टरेक्टमी की जरूरत नहीं पड़ती है। महिलाएं माहवरी के दौरान अत्यधिक रक्तस्त्राव और फिबरॉयड्स के लिए दवाओं, हॉर्मोनल इंजेक्शन समेत कई अन्य विकल्पों को चुन सकती हैं।

सामान्य तौर पर जो महिलाएं हिस्टरेक्टमी करवाती हैं, उन्हें लगता है कि सर्जरी से उनकी गायनाकोलॉजिकल परेशानी दूर हो जाएगी, लेकिन इससे उन्हें नई स्वास्थ्य समस्याएं होने की संभावना रहती है। इस बारे में मेहर ने कहा कि महिलाओं को इस सर्जरी के दीर्घकालिक परिणामों के बारे में जानकारी नहीं दी जाती है। सर्जरी के बाद महिलाओं को पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द और जोड़ों में दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं। सर्जरी के बाद एक आम समस्या है तेजी से वजन बढ़ना, जिसके चलते महिलाओं की दक्षता कम होती है और इससे उनकी काम करने की क्षमता प्रभावित होती है।

कई अध्ययनों में हिस्टरेक्टमी और डायबिटीज, हड्‌डी कमजोर होना, हृदय रोग, डिप्रेशन के बीच संबंध पाया गया है। रिसर्चर्स का कहना है कि हिस्टरेक्टमी का चलन बढ़ने के पीछे हेल्थकेयर फैसिलिटी चुनने समेत कई अन्य फैक्टर्स भी हैं। इसके बावजूद यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि निजी हेल्थ सेक्टर को रेगुलेट किया जाए और उनकी निगरानी की जाए जिससे वे चिकित्सकीय आदर्शों का पालन करना न भूलें। (साइंस वायर)