स्वास्थ्य

बिहार में इस साल कैसे नियंत्रित हुआ चमकी बुखार?

इस साल 30 जून तक बिहार में चमकी बुखार से सिर्फ 12 बच्चों की मौत हुई, जबकि 2019 में इस अवधि में 164 बच्चों की मौत हुई थी

Pushya Mitra

बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा है कि 30 जून तक राज्य में चमकी बुखार से सिर्फ 12 बच्चों की मौत हुई और 95 बच्चे ही इससे पीड़ित हुए, जबकि पिछले साल इस अवधि में 164 बच्चों की मौत हुई थी और 653 बच्चे बीमार पड़े थे। वे इसे अपनी सरकार की व्यापक तैयारी और जनजागरूकता का असर बता रहे हैं, लेकिन इसकी वजह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने एक विश्लेषण किया। 

क्या स्पेशल पीकू वार्ड की वजह से रोग काबू में आया?

सुशील मोदी कहते हैं कि मुजफ्फरपुर के श्री कृष्णा मेडिकल कॉलेज कम हॉस्पीटल (एसकेएमसीएच) में 100 बेडों के पिडियाट्रिक इंटेंसिव केयर यूनिट (पीकू) वार्ड तैयार होने और प्रभावित 11 जिलों में 406 एंबुलेंसों की तैनाती की वजह से रोग काबू में रहा। मगर आंकड़े बताते हैं कि इस साल अब तक एसकेएमसीएच में 49 एइएस पीड़ित बच्चे ही भर्ती हुए। शेष बच्चों के स्थानीय अस्पतालों में ही इलाज कराने की सूचना है। जाहिर सी बात है कि ऐसे में नव निर्मित स्पेशल पीकू वार्ड की कोई बड़ी भूमिका नजर नहीं आती। वैसे भी यह वार्ड जून महीने में चालू हो पाया था। 

मौसम का फैक्टर

क्या इस साल चमकी बुखार का असर कम होने के पीछे गर्मियां अहम फैक्ट हैं? मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक मुजफ्फरपुर के इस साल और पिछले साल के तापमान की तुलना करने पर यह बात साफ-साफ नजर आती है। 2019 में अप्रैल से जून के बीच 40 डिग्री से अधिक तापमान वाले दिन 48 थे, जबकि 2020 में इन महीनों के दौरान 3 दिन ही तापमान 40 डिग्री से अधिक पहुंचा। इसी तरह 2019 में अप्रैल से जून के बीच 32 दिन तक तापमान 35 से 40 डिग्री के बीच रहा, जबकि 2020 में 44 दिन ऐसा हुआ। वहीं, 2019 में 11 दिन तापमान 35 डिग्री से कम था, जबकि 2020 में 44 दिन तक 35 डिग्री से कम तापमान रहा।

इन आंकड़ों से साफ है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल गर्मियों का असर बहुत कम रहा। हीट स्ट्रोक जो इस बीमारी के पीछे एक महत्वपूर्ण कारक माना जाता है, वह आया ही नहीं। जून महीने में इस बीमारी से सबसे अधिक बच्चे बीमार पड़ते हैं। जबकि इस साल जून महीने में एक भी दिन तापमान 40 डिग्री से अधिक नहीं गया।

मुजफ्फरपुर के जाने-माने चिकित्सक और इस बीमारी पर पिछले दो दशक से नजर रखने वाले डॉ. निशींद्र किंजल्क कहते हैं कि यह अपने आप में बड़ा फैक्टर है। मैं तो इस बीमारी को हीट स्ट्रोक की तरह ही देखता हूं। कई चिकित्सक इसका इलाज भी हीट स्ट्रोक की तरह ही करते हैं। सच तो यह है कि इस साल मुजफ्फरपुर में गर्मियां पड़ी ही नहीं, ऐसा लगा कि ठंड के बाद सीधे बारिश का मौसम आ गया। इसी वजह से पिछले साल के मुकाबले इस साल बच्चे बीमार भी कम पड़े। सिर्फ 95 बच्चे।

डॉ किंजल्क की यह बात सच मालूम होती है। पिछले एक दशक के आंकड़ों का जायजा लेने के बाद मालूम पड़ता है कि इस साल बीमार पड़ने वाले बच्चों की संख्या भी काफी कम है। राज्य में चमकी बुखार को नियंत्रित करने के अभियान से जुड़ी संस्था यूनिसेफ के भी शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ हुबे अली इस साल गर्मियों के कम पड़ने की एक महत्वपूर्ण वजह बताते हैं। मगर साथ ही वे कहते हैं कि इस बार सरकार की तैयारी भी मुकम्मल थी।

कैसी थी सरकार की तैयारी?

यूनिसेफ के शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ अली कहते हैं कि इस साल न सिर्फ इस बीमारी का प्रकोप कम रहा, बल्कि केस फेटलिटी रेट भी नियंत्रण में रहा। अमूमन इस बीमारी का केस फेटलिटी रेट, यानी बीमार बच्चों के मुकाबले मृत बच्चों का प्रतिशत 30 फीसदी के आसपास रहता है। इस साल यह 13 फीसदी के पास पहुंच गया है। इसके पीछे सरकार की तैयारियों को एक अहम फैक्टर माना जा सकता है।

वे कहते हैं कि हमलोगों ने सरकार के साथ मिलकर इस बार फरवरी महीने से ही अपनी तैयारियां शुरू कर दी थीं। लगातार स्वास्थ्य कर्मियों की ट्रेनिंग हुईं। 316 ऐसे गांवों की पहचान की गयी, जहां इस बीमारी का प्रकोप अधिक रहता है। उन गांवों में जागरूकता के लिए रात्रि चौपालों का आयोजन किया गया। प्रचार प्रसार के लिए जागरूकता रथ निकाले गये। इसके अलावा इलाज की व्यवस्था का विकेंद्रीकरण किया गया। प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज की हर तरह की सुविधा उपलब्ध करायी गयी। वहां डॉक्टरों और स्वास्थ्यकर्मियों की लगातार उपस्थिति सुनिश्चित की गयी। इन सबका बड़ा असर पड़ा।

एसकेएमसीएच पर कम रहा दबाव

इस साल कई बच्चों का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ही हो गया। इस साल चमकी बुखार से बीमार होने वाले 95 बच्चों में से 49 ही इस बीमारी के इलाज के सबसे बड़े केंद्र एसकेएमसीएच अस्पताल पहुंचे। मुजफ्फरपुर जिले में ही 11 बच्चों के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इलाज कराकर स्वस्थ होने की सूचना है। मगर इस वजह से गड़बड़ियां भी हुईं। 11 मई को सीतामढ़ी जिले के रुन्नीसैदपुर के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में इलाज के लिए लायी गयी एक बच्ची का ठीक से इलाज नहीं हुआ और उसकी मौत हो गयी। बाद में उस केंद्र के प्रभारी चिकित्सक को प्रोटोकॉल के मुताबिक इलाज न करने का दोष साबित होने पर सेवामुक्त कर दिया गया। मुजफ्फरपुर जिले के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में भी ऐसी गड़बड़ी हुई थी, वहां भी इस मामले की सघन जांच हुई।

क्या सचमुच तैयारियां मुकम्मल थीं

डॉ निशींद्र किंजल्क सरकारी तैयारी के मुकम्मल होने के दावे से असहमत दिखते हैं। वे कहते हैं कि उनके पास लगातार ऐसी खबरें आयीं कि ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 24 घंटे नहीं खुल पा रहे थे। 24 घंटे एंबुलेंस सेवा की बात भी पुख्ता नहीं दिखी। लॉकडाउन के कारण ही सही जागरूकता अभियान ठीक से नहीं चल पाया। अगर इस बार मौसम प्रतिकूल रहता तो शायद तैयारियों की ठीक से समीक्षा हो पाती। लॉकडाउन के कारण अमूमन लोग घरों में कैद रहे, सरकारी अस्पतालों तक पहुंचने में भी कतराते रहे कि कहीं कोरोना न हो जाये। ऐसे में अगर कई बच्चे बीमार होने की वजह से घरों में ही रहे हों या घरों में ही उनकी मौत हो गयी हो यह कहना मुश्किल है। मगर इसके बावजूद यह कहा जा सकता है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल सरकारी महकमे में थोड़ी सजगता थी।

पहले भी होता रहा है नियंत्रण

यह पहला अवसर नहीं है कि चमकी बुखार को काबू में किया गया हो। 2015 के बाद से इस रोग पर कई बार नियंत्रण पाया गया है। यूनिसेफ द्वारा उपलब्ध कराये गये आंकड़ों के मुताबिक 2018 में 33 और 2017 में 54 बच्चों की ही मौत हुई थी। बेहतर जागरूकता और स्वास्थ्य विभाग द्वारा तैयार किये गये स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर के अनुपालन से रोग को कई दफा काबू में रखने में सफलता मिली है।