स्वास्थ्य

मास्क पहनना कितनी जरूरी है?

Anil Ashwani Sharma

मास्क पहनना कितना जरूरी है और यह कितना सुरक्षित है? ये सवाल इस समय भारत सहित पूरी दुनिया में लोगों की जुबां पर हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति हाल ही में कोरोना से संक्रमित हो गए। ऐसे में इस बहस ने और जोर पकड़ा कि चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति लगातार मास्क का उपयोग नहीं करते थे इसलिए वे कोरोना के शिकार हुए। हालांकि इसके विपक्ष में भी तर्क हैं। लेकिन इसके लिए विज्ञान क्या कहता है, इस पर बात करना अधिक जरूरी है। विज्ञान के अनुसार कोरोना महामारी में जिंदगियां बच रही हैं लेकिन फिर भी मास्क की क्रेडिबिलिटी पर लगातार बहस चल रही है। दुनियाभर के विश्विद्यालयों में शोधकर्ता और विशेषज्ञ कोरोना महामारी में मास्क पहनने को लेकर अलग-अलग रायशुमारी है और अब तक इस पर कई शोध किए गए हैं। वैश्विक स्वास्थ्य शोधकर्ता क्रिस्टीन बेन के अनुसार अस्पतालों में इस्तेमाल किए जा रहे मेडिकल मास्क कोविड को रोकने में सक्षम हैं लेकिन घरों और दुकानों में बनाए जा रहे लोकल मास्क के बारे में अभी डेटा गड़बड़ है। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प को भी कोरोना संक्रमित होने से पहले मास्क का बहिष्कार करते हुए देखा गया है (मास्क ना पहनना)।

महामारी की शुरुआत में मेडिकल एक्सपर्ट्स के पास इस बात के पुख्ता सबूत नहीं थे की कोविड को फैलने से कैसे रोका जा सकता है या आम जनता को मास्क पहनने के तरीके को कैसे समझाया जाए पहले मास्क N95 जैसे स्टैंडर्ड पहनने की मांग बहुत बढ़ी लेकिन जैसे-जैसे महामारी बढ़ती गई आम लोगों के बीच N95 मास्क की सप्लाई काम हो गई। तभी इसी बीच क्लॉथ मास्क को पहनने की तादाद बढ़ने लगी। लेकिन मेडिकल एक्सपर्ट्स लोकल और क्लॉथ पहनने पर लगातार चिंताएं जाहिर कर रहे हैं। जून के महीने में मास्क की क्रेडिबिलिटी पर चिंताएं तब ज्यादा बढ़ गईं जब दो हेयर स्टाइलिस्ट डबल लेयर्ड मास्क पहनने के बावजूद कोरोना संक्रमित पाए गए। ऐसे ही तमाम मामले अभी तक सामने आ रहे हैं। एक अध्ययन में पाया गया है की जिन देशों और राज्यों में सरकार द्वारा मास्क की सिफारिश की गई थी, वहां अन्य क्षेत्रों के मुकाबले मोर्टेलिटी रेट चार गुना कम है। तकरीबन 200 देशों में किए गए शोध से पता चलता है की जहां जनवरी से मास्क पहनने की शुरुआत हो गई थी, वहां कोविड-19 से संबंधित कोई भी मृत्यु दर्ज नहीं की गई है।

नेचर पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार मास्क की क्रेडिबिलिटी चेक करने के लिए हांगकांग विश्विद्यालय में माइक्रोबायोलॉजिस्ट क्वॉक युंग ने आसपास के पिंजरों में स्वस्थ और संक्रमित जानवरों (हैम्स्टर्स) को रखा। मई में प्रकाशित इस शोध पेपर के अनुसार लगभग 2 तिहाई असंक्रमित जानवरों को कोविड-19 ने पकड़ा और मास्क के साथ संरक्षित किए गए 25 प्रतिशत जानवर कोरोना संक्रमित हो गए जो की बिना मास्क लगाए पड़ोसी जानवरों से कम बीमार थे।

वहीं दूसरी तरफ, कैलिफ़ोर्निया विश्विद्यालय की संक्रामक रोग चिकित्सक मोनिका गांधी कहतीं हैं मास्क पहनने से ना केवल कोरोना संक्रमण से बल्कि गंभीर बीमारी से बचा जा सकता है। वह और उनकी टीम यूएस के अस्पतालों में विश्लेषण कर रहे हैं की मास्क पहनने के दिशा-निर्देशों से पहले और बाद में संक्रमण की कमी आई है या नहीं। मास्क पर होने वाली यह डिबेट एक और जरूरी प्रश्न खड़ा कर देती है की कोरोना वायरस हवा के माध्यम से कैसे संक्रमण फैलाता है। जिस समय कोई भी व्यक्ति सांस लेता है, बातचीत करता है, छींकता है या खांसता है तो ऐसे में तरल कण हवा में उड़ते हैं, जिन्हें एरोसोल के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इन तरल कणों पर सार्स-कोव-2 उनके व्यवहार और आकार को निर्धारित करता है। संक्रमण की वजह से बूंदें हवा और जमीन के माध्यम से किसी व्यक्ति की आंख,नाक और मुंह में जा सकता हैं। इसके अलावा एरोसोल हवा में सिगरेट के धुएं की तरह बिना रुके कमरे में फैल कर घंटों तैर सकता है।

वैज्ञानिक अभी भी अनिश्चित हैं की कोविड-19 इ-ट्रांसमिशन के लिए कौन से आकार का कण महत्वपूर्ण है। कई लोगों का मानना है की एसिम्पटोमैटिक ट्रांसमिशन कोविड-19 महामारी को ज्यादा फैलाने में जिम्मेदार हैं जो यह बताते हैं की आमतौर पर छींकने या खांसने से वायरस बहार नहीं निकलता है। इसलिए अब यह जानना बेहद जरूरी हो गया है की कौन से मास्क एरोसोल को रोक सकते हैं। एक अंतराष्ट्रीय शोध दल का अनुमान है की मास्क पहनने वालों की सुरक्षा में सर्जिकल और कपड़े के मास्क 67 प्रतिशत प्रभावी हैं।

एक अप्रकाशित शोध कार्य में वर्जीनिया टेक में पर्यावरण इंजीनियर लिनसे मार और उनकी टीम ने पाया की एक कॉटन की टी-शर्ट लगभग 80 प्रतिशत एरोसोल को रोक सकती है। वहीं, एक और अध्ययन में पाया गया है की कॉटन और रेशम से बने मास्क सिंगल मटेरियल के मास्क के मुकाबले जल्दी लेते हैं। इसका एक उदाहरण क्रिस्टीन बेन ने पेश किया है। उन्होने डेनिश इंजीनियर्स के साथ मिलकर मेडिकल ग्रेड मानदंडों का उपयोग करके टू लेयर के मास्क का परीक्षण किया, जिसमें पाया गया है की उनका मास्क न केवल 11- 19 प्रतिशत एरोसोल को 0.3 माइक्रोन के निशान के नीचे रोकने में सक्षम है। क्योंकि ज्यादातर ट्रांसमिशन 1 माइक्रोन के कणों के हिसाब से हो रहा है ,जिसके चलते N95 और दूसरे मास्क की प्रभावशीलता में बहुत बड़ा अंतर नहीं हो सकता है।

उत्तरी कैरोलीना के ड्यूक यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ मेडिसीन में शोधकर्ता एरिक वेस्टमेन ने मास्क की प्रभावशीलता का परीक्षण किया। उनकी टीम ने लेजर और स्मार्ट फोन का इस्तेमाल कर 14 अलग-अलग कपड़े के मास्क की तुलना कर देखा की कैसे एक व्यक्ति के बोलने के दौरान बूंदों को रोका जा सकता है। परिणामस्वरूप उनके कई मास्क काम कर रहे थे सिवाए पॉलीस्टर से बने मास्क के। उन्होने कहा, ऐसा लग रहा था जैसे बूंदों का आकार कम हो रहा है और इससे बुरा कुछ नहीं हो सकता है। मिल मैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ इन न्यूयॉर्क सिटी के एक वायरोलॉजिस्ट एंजेला रामसुमेन कहती हैं बहुत सारी जानकारियां होने की वजह से सभी साक्ष्यों को एक साथ रखना भ्रामक है। हमारे पास अभी भी बहुत जानकारियों का अभाव है। तमाम अध्ययनों और मिलेजुले संदेशों से जनता काफी भ्रमित हो गई है। अप्रैल के एक अध्ययन में मास्क पहनना अप्रभावी पाया गया है लेकिन जुलाई में यही अध्ययन वापस हो गया। इसी बीच विश्व स्वास्थ्य संगठन  और यूएस सेंटर फॉर डिसीस कंट्रोल एन्ड प्रिवेंशन ने शुरुआत में मास्क के इस्तेमाल की सिफारिश करने से मना कर दिया था लेकिन अप्रैल में फिजिकल डिस्टैन्सिंग से बचने के लिए एकमात्र ऑप्शन के तौर पर मास्क पहनने की सिफारिश की थी।

राजनीतिक मंचों पर भी तमाम राजनीतिक नेताओं ने भी मास्क पहनने के समर्थन में जागरूकता दिखाई है फिर भले खुद ही कई पब्लिक मीटिंग्स में मास्क पहनना भूल गए हों या मास्क को गलत ढंग से पहना है। अमेरिका से लेकर भारत में कई राजनीतिक नेताओं में मास्क पहनने को लेकर लगातार निरंतरता की कमी देखी गई है। डेनमार्क में एक शोध समूह ने 6,000 लोगों को नामांकित कर कार्य स्थल पर आधे फेस मास्क का इस्तेमाल करने को कहा।

हालांकि अध्ययन पूरा हो चुका है लेकिन प्रमुख जांचकर्ताओं में से थॉमस बेनफील्ड का कहना है की उनकी टीम किसी भी तरह के परिणाम को साझा करने के लिए तैयार नहीं है। यह समूह 40,000 लोगों को नामांकित करने की प्रक्रिया में हैं। कई वैज्ञानिक परिणाम देखने के लिए उत्साहित हैं लेकिन कैलिफ़ोर्निया के स्क्रिप्स रिसर्च ट्रांसलेशन इंस्टिट्यूट के निदेशक एरिक टोपोल कहते हैं, ऐसे शोध कमजोर आबादी का शोषण कर रहे हैं, आप हर चीज के लिए परीक्षण नहीं कर सकते। इस पर मोनिका गांधी कहती हैं महामारी को रोकने के लिए मास्क बहुत जरूरी है। ठीक वैसे ही डीगार्ड कहते हैं मास्क काम कर रहे हैं लेकिन पूरी तरह से कोरोना महामारी को रोने में सक्षम नहीं हैं इसलिए दूरी बनाए रखने में ही भलाई है।