स्वास्थ्य

डिजिटिल असाक्षर ग्रामीण कैसे बुक करें टीके का स्लॉट, यूपी के गांवों से दूर है टीकाकरण अभियान

18 से 44 आयु वालों के लिए टीके का संकट बना ही हुआ है इस बीच 45 से अधिक आयु वालों के टीके को सीमित करने के लिए सरकार ने सभी को ऑनलाइन स्लॉट लेने की मजबूरी पैदा कर दी है।

Vivek Mishra

"जब टीका लगाने कोई घर आएगा तभी लगवाएंगे। मोबाइल तक इस्तेमाल नहीं करते हैं, कैसे टीका का बुकिंग कराएं।" 50 वर्षीय आनंद कुमार डाउन टू अर्थ से अपना दुखड़ा बताते हैं। वह उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती जिले के रहने वाले हैं। उन्हें अभी कोई टीका नहीं लगा है। गांवों में टीके के लिए भय भी है और लगवाने की उत्सुकता भी बनी हुई है। लेकिन टीके की व्यवस्था क्या सचमुच उनके गांव पहुंचने वाला है? जवाब है हाल-फिलहाल नहीं। 

उत्तर प्रदेश में 18 से 44 आयु वर्ग के लिए टीके का संकट पहले से ही चल रहा था। वहीं अब 45 से अधिक उम्र के लोगों के लिए टीके की पहली और दूसरी डोज हासिल करना थोड़ा जटिल हो गया है।  वैक्सीन केंद्र पर पहुंचकर यानी वॉक-इन के जरिए टीके के स्लॉट हासिल करने की योजना को यूपी सरकार ने अब बंद कर दिया है। इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार ने बीते सप्ताह सभी जिलाधिकारियों को नोटिफेकशन जारी किया है। इस कदम के बाद ग्रामीण जनता को इससे बड़ा झटका लग सकता है क्योंकि उत्तर प्रदेश में डिजिटिल साक्षरता काफी कम है।

सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश में बीते 13 दिनों में 45 वर्ष से अधिक उम्र वाले सिर्फ 13 लाख लोग ही टीके की पहली डोज हासिल कर सके हैं। जबकि दूसरी डोज में प्रतिदिन एक लाख से भी कम डोज लग रहे हैं। इस रफ्तार से करीब एक वर्ष का समय इस आयु वर्ग को पहला टीका लगाने में लगेगा। 

प्रदेश में 18 से 44 आयु वर्ग के लिए करीब 10 करोड़ वैक्सीन डोज का इंतजाम करना है। जबकि टीके की बेहद सीमित उपलब्धता के कारण  बीते 11 दिनों में महज 1.67 लाख को ही पहला डोज लगाया गया है। टीके की उपलब्धता संकट के कारण राज्य के सिर्फ सात जिलों में सीमित नगरीय जिला केंद्र पर टीका लगाया गया। इसमें वाराणसी, प्रयागराज, लखनऊ, कानपुर, बरेली, मेरठ, गोरखपुर शामिल थे। अब 11 मई से कुल 18 जिलों में करीब 275 केंद्रों पर टीका लगाने की बात कही जा रही है। लेकिन इसमें ग्रामीण जनता अब भी दूर है क्योंकि टीके के लिए खुद से ऑनलाइन स्लॉट बुक करने की बाध्यता ने कई लोगों को हतोत्साहित किया है। 

उत्तर प्रदेश में कुल 16 करोड़ से ज्यादा की आबादी ग्रामीण है लेकिन इनमें से एक फीसदी से भी कम लोग डिजिटल साक्षर हैं।  

08 जनवरी, 2019 को 16वीं लोकसभा की स्थायी समिति की ओर से लोकसभा में पेश की गई राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन की समस्याएं व चुनौतियों की समीक्षा रिपोर्ट के मुताबिक 2014 में राष्ट्रीय डिजिटल साक्षरता मिशन औऱ 2016 में डिजिटल साक्षरता अभियान चलाया गया। इन दोनों अभियान के तहत कुल 53.67 लाख लोगों को प्रशिक्षित किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक इसमें 42 फीसदी करीब 22 लाख लोग ग्रामीण थे। 

इन दोनों अभियान के तहत उत्तर प्रदेश में ग्रामीण और शहरी मिलाकर महज 782617 लोग ही डिजिटल प्रशिक्षित हो पाए। 

अभी डिजिटिल साक्षरता अभियान को प्रधानमंत्री ग्रामीण डिजिटल शिक्षा अभियान के नाम से फरवरी, 2017 में आगे बढ़ाया गया है, जिसका लक्ष्य देश के छह करोड़ ग्रामीण परिवार के एक सदस्य को डिजिटल साक्षर बनाना था। यह अभियान भी रफ्तार नहीं पकड़ सका है। 

वहीं, अमीर और गरीब के बीच की डिजिटल खाई बढ़ती जा रही है। इसकी भुक्तभोगी ग्रामीण जनता ही है। ऐसे में वैक्सीन का ऑनलाइन स्लॉट लेना अब भी ग्रामीण जनता के लिए बेहद दुरूह काम है। 

वैक्सीन संकट के बीच इस तरह के तकनीकी कदम उठाकर सरकार वैक्सीन आपूर्ति के लिए उठ रही आलोचना को शायद कम करना चाहती है। 

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 28 अप्रैल को उत्तर प्रदेश सरकार के आधिकारिक आंकड़ों  के मुताबिक हेल्थ केयर वर्क, फ्रंट लाइन वर्कर, 45 वर्ष से अधिक आयु वाले नागरिकों को मिलाकर कुल 1,19,47,728 लोगों का टीकाकरण किया गया था। इसमें 98,83,945 लोगों को टीके की सिर्फ प्रथम डोज मिल पाई थी। जबकि महज 20,63,783 लोगों को ही दूसरी डोज मिल सकी।

वहीं, 45 आयु वर्ग से अधिक वालों में 10 मई तक कुल 1,1138216 लोगों ने पहली डोज हासिल की जबकि कुल 2928572 लोग ही दूसरी डोज हासिल कर सके।  

उत्तर प्रदेश सरकार ने 18 से 44 आयु वर्ग वालों के लिए बीते हफ्ते कुल 5 लाख टीके हासिल किए। इनमें 3 लाख कोविशील्ड और 1.5 लाख को-वैक्सीन का टीका शामिल था। हालांकि अभी कोविशील्ड टीका ही लगाया जा रहा है। को-वैक्सीन टीके का इस्तेमाल अगले सप्ताह किया जाएगा। 

45 वर्ष से अधिक उम्र वालों में टीका लगाने की धीमी पड़ती रफ्तार यह भी बताती है कि केंद्र की ओर से मिलने वाले टीके की आपूर्ति भी कुछ मंद पड़ गई है। बहरहाल 22 करोड़ से अधिक आबादी वाले उत्तर प्रदेश में ग्रामीण जनता को डिजिटल माध्यम से खुद टीके का स्लॉट लेने की बाध्यता उन्हें टीके से काफी दूर ले जा सकती है।