स्वास्थ्य

कैसे टीबी के जीवाणु एंटीबायोटिक दवाओं के असर को तेजी से खत्म कर रहे है

Dayanidhi

धीरे-धीरे बढ़ने वाले सूक्ष्म जीव जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस को दोगुना कर देते हैं, ये ऐसे रोगजनक (पैथोजन) हैं, जिसके कारण तपेदिक (टीबी) की बीमारी होती है। शोधकर्ता इस बारे में पता लगा रहे हैं कि किस तरह ये सूक्ष्म जीव एंटीबायोटिक दवाओं के असर से अपने आप को बचा रहे हैं। टीबी रोग फैलाने वाले सूक्ष्म जीवों में एंटीबायोटिक दवाओं के लिए प्रतिरोध का विकास हफ्तों से लेकर महीनों तक होता है।

अब सैन डिएगो स्टेट यूनिवर्सिटी के टीबी शोधकर्ताओं ने इस रहस्य का पर्दाफाश किया है। उन्होंने कहा कि जीन का विकास आनुवंशिक डोमेन के बजाय एपिजेनेटिक डोमेन में हो रहा है, जिस पर अधिकांश वैज्ञानिकों ने अपने प्रयासों को केंद्रित किया है। उनकी यह खोज नए जांच (डायग्नोस्टिक्स), चिकित्सा और वैक्सीन निर्माण के लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकती है।

एपिजेनेटिक्स जीन में होने वाले बदलावों का अध्ययन है, जिसमें मुख्य डीएनए अनुक्रम (सीक्वेंस) के आधार पर परिवर्तन नहीं होता है। जिसका अर्थ है कि फेनोटाइप में परिवर्तन, लेकिन जीनोटाइप में किसी परिवर्तन का नहीं होना है। यह डीएनए की केवल शारीरिक संरचना को प्रभावित करता है, डीएनए मिथाइलेशन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से जहां कुछ जीनों को काम करने से रोकने या सुविधाजनक बनाने के लिए डीएनए में एक रासायनिक 'कैप' जोड़ा जाता है।

शोधकर्ता तेजी से होने वाली इस प्रतिक्रिया की घटना के बारे में बताते हैं, जिसे उन्होंने 'इंटरसेल्यूलर मोज़ेक मिथाइलेशन' के रूप में खोजा है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस में विविधता आती है, जो प्रत्येक को अपने खुद के फेनोटाइप के साथ कई उप-समूह बनाता है। जबकि एंटीबायोटिक्स इनमें से कई  रोगज़नक के समूहों को मार सकते हैं, इनमें कुछ जीवित रहते हैं और दवा प्रतिरोध विकसित करते हैं।

एसडीएसयू के स्कूल ऑफ पब्लिक के टीबी विशेषज्ञ फरमराज वलाफर ने कहा कुछ रोगियों की जांच, उपचार के विफल होने के बारे में पता क्यों नहीं लगा पाते हैं, कुछ महीने बाद ये रोगी अधिक प्रतिरोधी अवस्था में क्यों आते हैं। कई ठीक हो चुके रोगियों के फेफड़ों के सीटी स्कैन देखने पर जीवाणु गतिविधि के साथ घाव भी देखे गए हैं। यह अध्ययन ईलाइफ में प्रकाशित हुआ है।

दुनिया भर में होने वाली शीर्ष 10 मौत के कारणों में से टीबी एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 2018 में इसके कारण 15 लाख (1.5 मिलियन) लोग मारे गए और लगभग 1 करोड़ (10 मिलियन) लोग हर साल इसकी वजह से बीमार पड़ते हैं।

वलाफर की टीम ने दुनिया भर में टीबी शोधकर्ताओं के साथ सहयोग के द्वारा भारत, चीन, फिलीपींस और दक्षिण अफ्रीका के साथ-साथ यूरोप के जीवाणुओं की दवा प्रतिरोधी किस्मों के सैकड़ों नमूने एकत्र किए।

कोंकले-गुटिरेज़ ने कहा हम दशकों से जानते हैं कि बैक्टीरियल एपिजेनेटिक्स कुछ जीनों के काम को प्रभावित कर सकते हैं, समान जीनोटाइप होने पर भी ऐसा हो सकता है। हमने टीबी जीवाणु में होने वाली इस घटना के सबूत की खोज की है।

एंटीबायोटिक प्रतिरोध आमतौर पर जीनोमिक म्यूटेशन के कारण होता है, लेकिन यह जीवाणु कई में से एक है जो एपिजेनेटिक क्षेत्र (डोमेन) में तेजी से ढल जाता है। मोडलिन ने कहा हमने पाया कि उनमें से कुछ में बदलाव आया था जिसके कारण डीएनए मिथाइलेशन और उनके एपिजीनोम में बहुत अधिक विविधता थी, इस प्रकार यहां दवा प्रतिरोधी होने की अधिक आशंका थी।

शोधकर्ताओं ने कोई सेट पैटर्न नहीं पाया और मिथाइलेशन का भी कोई क्रम नहीं था। उन्होंने एक रोगी कोशिकाओं में भिन्नता की पहचान करने के लिए तुलनात्मक जीनोमिक और एपिजेनेटिक तकनीकों का उपयोग किया, जिसमें छोटे बदलाव भी शामिल थे, जो फिर भी जीन को प्रभावित कर रहे थे। ऐसा करना संभव था, क्योंकि जीनोम की एक आम संरचना होती है, उन्होंने प्रत्येक जीनोम का फिर से एपिजेनेटिक हस्ताक्षर का विश्लेषण किया।

मोडलिन ने कहा हमने अलग तरह का बदलाव पाया और अगर हम उस बदलाव करने वाले तंत्र को रोक दे तो हम अल्पकालिक एपिजेनेटिक प्रतिरोध को रोक सकते हैं और जीनोम में उत्परिवर्तन से पहले बैक्टीरिया को मार सकते हैं। यह हो सकता है कि कुछ जीवाणु आबादी उपचार से बच जाते है और रोगी को अधिक से अधिक एंटीबायोटिक प्रतिरोध होने से फिर से बीमार बना देते हैं।