इस साल की शुरुआत में महाराष्ट्र के अमरावती की रहने वाली पूनम (बदला हुआ नाम) ने अपने चार महीने के बेटे को खो दिया। उसके बेटे के दिल में छेद था, जिसकी सर्जरी हुई थी। सर्जरी के बाद बच्चे ने दम तोड़ दिया।
इस भारी दुख के बीच पूनम को अपने जीवन का एक ऐसा मकसद मिला, जिसने उसे जीने क हौसला दिया। पूनम बताती हैं, “मेरे बेटे को मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में नवजात गहन चिकित्सा यूनिट (एनआईसीयू वार्ड) में भर्ती कराया गया था।
इस वार्ड में दो अन्य बच्चे भी थे। एक की मां अपने नवजात को दूध नहीं पिला सकती थी। इसलिए मैंने उसके बच्चे को अपना दूध देने की पेशकश की। अपने बेटे को खोने के बाद पूनम ने स्तनपान रोकने के लिए दवा लेने के बजाय अपना दूध दान में देते रहने का फैसला किया।
वह कहती हैं, “अमरावती लौटने के बाद मैंने पंजाबराव देशमुख मेमोरियल मेडिकल कॉलेज स्थित मानव दूध बैंक जाना शुरू कर दिया और एक महीने से अधिक समय तक रोज 100-120 मिलीलीटर दूध दान किया।” पूनम जैसी महिलाएं भारत के मानव दूध बैंक नेटवर्क की रीढ़ हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि मां का दूध शिशुओं के लिए आदर्श भोजन है। इसमें उनके शुरुआती दिनों के लिए जरूरी पोषक तत्व और एंटीबॉडी होते हैं। डब्ल्यूएचओ अनुशंसा करता है कि शिशुओं को पहले छह महीनों के लिए विशेष रूप से स्तनपान कराया जाए। यदि मां का दूध उपलब्ध नहीं है, तो दान किया गया दूध सबसे अच्छा विकल्प है।
मानव दूध बैंकों के सफल नेटवर्क के लिए ब्राजील एक प्रमुख उदाहरण है। वहां पहली सुविधा 1943 में स्थापित की गई थी। आज, इसके पास दुनिया का सबसे बड़ा मानव दूध बैंक नेटवर्क है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन देशों के आर्थिक आयोग के अनुसार, 2015 तक इस क्षेत्र के 301 मानव दूध बैंकों में से अकेले ब्राजील में 218 ऐसे बैंक हैं।
बाल रोग विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में ऐसे मजबूत नेटवर्क की सख्त जरूरत है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों से पता चलता है कि देश में एक साल में पैदा हुए 2.7 करोड़ बच्चों में से 75 लाख का जन्म के समय कम वजन होता है और 35 लाख बच्चे समय से पहले पैदा होते हैं।
मंत्रालय के मुताबिक, 2017 तक नीकू वार्ड में लगभग 30-50 प्रतिशत शिशुओं और विशेष नवजात देखभाल यूनिट में 10-15 प्रतिशत शिशुओं को दान में मिलने वाले मानव दूध की आवश्यकता होती है। समय से पहले जन्मे बच्चे को प्रतिदिन 30 मिलीलीटर दूध की आवश्यकता होती है जबकि एक स्वस्थ बच्चे को 150 मिलीलीटर तक दूध की आवश्यकता हो सकती है।
2017 में मंत्रालय ने देश में स्तनपान प्रबंधन केंद्रों की स्थापना के लिए दिशानिर्देश जारी किए और जिला और उप-जिला स्तर पर स्थित स्वास्थ्य केंद्रों में मानव दूध बैंक स्थापित करना अनिवार्य कर दिया।
ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई) के संस्थापक अरुण गुप्ता एक बाल रोग विशेषज्ञ हैं। बीपीएनआई संगठनों और व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है, जो स्तनपान को बढ़ावा देते हैं।
गुप्ता कहते हैं कि यह व्यवस्था नाममात्र की है। वह कहते हैं, “मानव दूध बैंकों के विकास और पैमाने के संदर्भ में भारत जो कर रहा है, वह ब्राजील की सफलता के आसपास भी नहीं है।” बाल पोषण और मातृ स्वास्थ्य पर काम करने वाले स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के नेटवर्क ह्यूमन मिल्क बैंकिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय संयोजक सतीश तिवारी बताते हैं, “वर्तमान में दूध बैंक अपने अस्पतालों की मांग को पूरा करते हैं।
हालांकि, इस दूध की जरूरत वाला हर बच्चा अस्पताल में होगा, जरूरी नहीं है।” जाहिर है, कई शिशु इसका लाभ लेने से वंचित रह जाएंगे। वह कहते हैं कि 2013 तक कुछ राज्यों में मानव दूध बैंकों की संख्या 8 से 10 तक स्थिर रही।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देशों के अनुसार, 2017 में यह बढ़कर 80 बैंकों तक पहुंच गया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को भी अपना पहला मानव दूध बैंक लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज में 2017 में मिला। तिवारी कहते हैं, “अब कुल संख्या बढ़कर 100 हो गई है। लेकिन आदर्श रूप से सभी मेट्रो शहरों में कम से कम 50 दूध बैंक होने चाहिए। वर्तमान में मुंबई, बेंगलुरु और चेन्नई में पांच से छह बैंक हैं, दिल्ली में दो से पांच और कोलकाता में एक या दो हैं।”
ऐसी पहली सुविधा 1989 में मुंबई के सायन अस्पताल में स्थापित की गई थी, तब से आज तक की यह वृद्धि काफी धीमी ही है। इसी अस्पताल के नियोनेटोलॉजी के पूर्व प्रोफेसर अर्मिडा फर्नांडीस याद करती हैं कि 1970 और 1980 के दशक में समय से पहले जन्मे बच्चों में मृत्यु दर उच्च थी।
वह कहती हैं, “मौत के कारणों में फार्मूला दूध का उपयोग भी शामिल था।” फर्नांडिस को जब ब्रिटेन के ऑक्सफोर्ड में इसी तरह के एक बैंक के बारे में पता चला था, उसी के बाद उन्होंने भारत में भी इसी तरह के एक मानव दूध बैंक स्थापित करने का सुझाव दिया था।
वह कहती हैं, “हमने समय से पहले जन्मे बच्चों के केयर यूनिट में माताओं को जाने की अनुमति देने पर जोर दिया। हमने तय किया कि शुरू में एक मां का दूध उसके खुद के बच्चे के लिए संग्रहित किया जाएगा। वह कहती हैं कि हालांकि, कुछ माताएं दूध देने में असमर्थ थीं तो हमने निर्णय लिया कि हम ऐसे बच्चे को दूसरे मां से मिला दूध देंगे। उस समय इस निर्णय को अवैज्ञानिक माना जाता था, लेकिन मैंने देखा कि इससे मृत्यु दर कम हो रही है।”
शोषण के जोखिम
आपूर्ति से संबंधित मुद्दों के अलावा विनियमित दूध बैंक प्रणाली की कमी से महिलाओं के शोषण का जोखिम उभर सकता है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ शोध सहयोगी सारा स्टील द्वारा 2020 की एक स्टडी में कहा गया है कि भारत और कुछ अन्य देशों में लाभ कमाने वाला मानव दूध बाजार बढ़ रहा है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) स्तन दूध के व्यवसायिक उपयोग की अनुमति नहीं देते। फिर भी बेंगलुरु स्थित नीयोलैक्टा लाइफसाइंसेज प्राइवेट लिमिटेड कथित तौर पर 4,500 रुपए में 300 मिलीलीटर फ्रोजन ब्रेस्ट मिल्क बेचती है। यह खुद को मानव दूध प्रसंस्करण सुविधा वाली भारत और एशिया की पहली कंपनी होने का दावा करती है।
जून 2020 में बीपीएनआई ने सूचना का अधिकार आवेदन दायर किया, जिसमें उस लाइसेंस के बारे में पूछताछ की गई जिसके तहत नियोलैक्टा मानव दूध बेचती है। आरटीआई के जवाब में कहा गया है कि लाइसेंस एफएसएसएआई की राज्य इकाई द्वारा जारी किया गया था, लेकिन उसे रद्द कर दिया गया था।
2021 में एफएसएसएआई ने नियोलैक्टा का निरीक्षण किया और पाया कि उसने उस वर्ष नवंबर में केंद्रीय आयुष मंत्रालय से “पॉजिटिव हेल्थ प्रोमोटर आयुर्वेद प्रोप्राइटरी मेडिसिन” के रूप में स्तन दूध बेचने का लाइसेंस प्राप्त किया था। मंत्रालय में 29 अगस्त को आदेश जारी कर नियोलैक्टा का लाइसेंस रद्द कर दिया। पत्रिका के छपने तक न तो नियोलैक्टा और न ही मंत्रालय ने लाइसेंस के विषय पर डाउन टू अर्थ के सवालों का जवाब दिया है।
रिव्यू ऑफ इंटरनेशनल पॉलिटिकल इकोनॉमी में प्रकाशित, यूके स्थित शोधकर्ताओं द्वारा दिसंबर 2020 के एक अध्ययन में दावा किया गया है कि नियोलैक्टा कम से कम चार राज्यों के गांवों की महिलाओं से दूध प्राप्त करती है। रिपोर्ट में लिखा गया है,“ये महिलाएं काफी हद तक अशिक्षित हैं और उन्हें समझाना मुश्किल है।
इससे उन्हें या तो वित्तीय सहायता या भोजन मिल जाता है।” जाहिर है, मानव दूध के ऐसे व्यवसायीकरण से महिलाओं और लड़कियों के शोषण और तस्करी को बढ़ावा मिल सकता है।