कोरोनावायरस संक्रमण से प्रभावित मरीज जब ठीक होते जा रहे हैं तो उनके सूंघने की शक्ति और यहां तक कि उनकी जीभ का स्वाद भी जाता रहा है। यह स्थिति औसतन सात से आठ माह तक बनी रहती है। इसके बाद ही कोविड से ठीक हुए मरीज की स्थिति में सुधार होता है।
यह स्थिति अकेले भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया भर में कोरोनावायरस प्रभावितों मरीजों की बनी हुई है। हर कोई इस बात से परेशान है कि आखिर कोरोनावायरस मनुष्य की गंध को कैसे खत्म करता है? यह यक्ष प्रश्न अकेले भारत में ही नहीं विश्व भर के देशों में प्रभावित लोग रह-रह कर पूछ रहे हैं।
ऐसे में शोधकर्ताओं ने कई शोध किए और अब तक हुए शोध के बाद शोधकर्ताओं ने पाया है कि वास्तव में वायरस तंत्रिका कोशिकाओं को संक्रमित नहीं करता है जो गंध का पता लगाते हैं। इसके बजाय यह वायरस आसपास की सहायक कोशिकाओं पर हमला करता है।
इस संबंध में पहली बार इटली के पियासेंजा में कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ सेक्रेड हार्ट में एक कार्यशाला का आयोजन गत जुलाई, 2021 में किया गया। इस कार्यशाला में तमाम शोधकर्ताओं ने लंबे समय तक कोविड से पीड़ित लोगों की गंध के खत्म होने और उसके वापस लाने पर विस्तृत विचार-विमर्श किया।
वैज्ञानिकों ने अब इसके लिए जिम्मेदार जैविक तंत्र की जटिलताओं को उजागर किया है, यह हमेशा से एक रहस्य का विषय रहा है। गंध का पता लगाने वाले न्यूरॉन्स में रिसेप्टर्स की कमी होती है जो कोरोनोवायरस कोशिकाओं में प्रवेश करने के लिए उपयोग में आते हैं।
नए शोध में इस बात की नई जानकारी मिल सकती है कि कोरोनोवायरस अन्य प्रकार की मस्तिष्क कोशिकाओं को कैसे प्रभावित कर सकता है, जिससे “ब्रेन फॉग”( ब्रेन फॉग कोई मेडिकल टर्म नहीं है बल्कि यह एक आम भाषा है जिसके जरिए दिमाग से जुड़ी कई समस्याओं के समूह के बारे में बताया जाता है) जैसी स्थितियां पैदा हो सकती हैं और संभवतः लंबे कोविड के पीछे के जैविक तंत्र की व्याख्या करने में मदद मिल सके। ऐसे लक्षण जो हफ्तों या महीनों तक बने रहते हैं।
नया शोध पूर्व में किए गए अध्ययनों के साथ इस बात और महत्वपूर्ण बनाता है कि कोरोनोवायरस तंत्रिका कोशिकाओं को संक्रमित करता है, जो गंध का पता लगाते हैं लेकिन ऐसा नहीं है। वास्तव में शोधकर्ताओं ने पाया कि वायरस अन्य सहायक कोशिकाओं पर हमला करता है।
संक्रमित कोशिकाएं वायरस छोड़ती हैं और मर जाती हैं, जबकि प्रतिरक्षा कोशिकाएं वायरस से लड़ने के लिए इस क्षेत्र में अपनी संख्या में तेजी से बढ़ोतरी करती हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि यह प्रक्रिया न्यूरॉन्स में जीन के परिष्कृति को बदल देती हैं।
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल में न्यूरोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर संदीप रॉबर्ट दत्ता ने कहा कि उनका पेपर इस बात की समझ को आगे बढ़ाता है कि गंध के लिए महत्वपूर्ण कोशिकाएं वायरस से कैसे प्रभावित होती हैं।
इस तथ्य के बावजूद कि वे सीधे संक्रमित नहीं हैं। दत्ता कहते हैं कि यह एक सामान्य सिद्धांत हो सकता है कि वायरस हमारे लिए जो कुछ कर रहा है, वह सूजन पैदा करने की क्षमता का परिणाम है।
नया अध्ययन न्यूयॉर्क में कोलंबिया विश्वविद्यालय में जकरमैन इंस्टीट्यूट और इरविंग मेडिकल सेंटर में किए गए शोध पर आधारित है। शोध फरवरी की शुरुआत में प्रकाशित हुआ था।वैज्ञानिकों ने 23 रोगियों के मानव ऊतक के नमूनों की जांच की, जिन्होंने कोविड के कारण दम तोड़ दिया था।
कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बाद, वैज्ञानिकों ने प्रभावितों के साथ उनके घ्राण तंत्र या आल्फैक्टरी सिस्टम (नासिका घ्राणतंत्र का अंग हैं) को हुए नुकसान पर लगातार नजर रखी।
वायरस ने न्यूरॉन्स पर आक्रमण नहीं किया। शोधकर्ताओं ने पाया कि केवल कोशिकाएं जो घ्राण प्रणाली में सहायक भूमिका निभाती हैं लेकिन यह पास के न्यूरॉन्स के कार्य को बदलने के लिए पर्याप्त था, जिससे गंध प्रभावित हुई। प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया ने न्यूरॉन्स में जीन की स्थिति को बदल दिया। गंध रिसेप्टर्स के उत्पादन को बाधित कर दिया।
न्यूयार्क टाइम्स में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं ने कहा कि तंत्रिका कोशिकाएं वायरस की मेजबानी नहीं कर रही हैं, लेकिन वे वह नहीं कर रही हैं जो उन्होंने पहले किया था। संदेश भेजने और प्राप्त करने के लिए घ्राण रिसेप्टर्स की क्षमता बाधित होती है लेकिन न्यूरॉन्स मरते नहीं हैं और इसलिए बीमारी के ठीक होने के बाद सिस्टम ठीक हो सकता है।
जकरमैन इंस्टीट्यूट में पहले किए गए काम से पता चला है कि गंध का पता लगाने वाले न्यूरॉन्स में जटिल जीनोमिक संगठनात्मक संरचनाएं होती हैं जो गंध रिसेप्टर्स के निर्माण के लिए आवश्यक होती हैं और रिसेप्टर जीन आपस में बहुत गहनता से संवाद करते हैं।
संक्रमित कोशिकाओं से एक संकेत जारी होता है जो न्यूरॉन्स द्वारा प्राप्त होता है जो सामान्य रूप से गंध का पता लगाता है और उन्हें घ्राण रिसेप्टर जीन की अभिव्यक्ति को पुनर्गठित करने के लिए कहता है।