स्वास्थ्य

हर दिन औसतन साढ़े तीन हजार जिंदगियां लील रहा हेपेटाइटिस, रोजाना सामने आ रहे 6,000 से ज्यादा मामले

विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार हेपेटाइटिस के कारण हर साल 13 लाख लोगों की मौत हो रही है। इनमें 83 फीसदी हेपेटाइटिस-बी और 17 फीसदी हेपेटाइटिस-सी के शिकार हो रहे हैं

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि हर दिन 6,000 से ज्यादा लोग हेपेटाइटिस से संक्रमित हो रहे हैं। इतना ही नहीं, यह यह वायरल संक्रमण रोजाना औसतन साढ़े तीन हजार जिंदगियां निगल रहा है। यह जानकारी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा जारी 'वर्ल्ड हेपेटाइटिस रिपोर्ट 2024' में सामने आई है। इस रिपोर्ट को नौ अप्रैल 2024 को विश्व हेपेटाइटिस शिखर सम्मेलन के दौरान जारी किया गया है।

गौरतलब है कि यह वायरल हेपेटाइटिस पर विश्व स्वस्थ्य संगठन द्वारा जारी पहली व्यापक रिपोर्ट है। इस रिपोर्ट में दुनिया भर में इस बीमारी के प्रसार, सेवाओं और उपचार की उपलब्धता के बारे में जानकारी साझा की गई है। डब्ल्यूएचओ ने अपनी इस रिपोर्ट में 187 देशों में इसके प्रभाव और आवश्यक सेवाओं की उपलब्धता के नवीनतम आंकड़ों को उजागर किया है। रिपोर्ट में वायरल हेपेटाइटिस के कारण होने वाली मौतों की दिन प्रतिदिन बढ़ती संख्या को लेकर भी चेताया है।

रिपोर्ट में आगाह करते हुए लिखा है कि यह बीमारी, वैश्विक स्तर पर संक्रामक बीमारियों से होने वाली मौतों का दूसरा प्रमुख सबसे प्रमुख कारण है। आंकड़ों के मुताबिक यह बीमारी हर साल 13 लाख मौतों के लिए जिम्मेवार है।

इस बारे में डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक डॉक्टर टैड्रॉस ऐडहेनॉम घेबरेयेसस ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, "यह रिपोर्ट एक चिन्ताजनक तस्वीर पेश करती है। इसके संक्रमण को रोकने में वैश्विक स्तर पर होती प्रगति के बावजूद, मौतों का आंकड़ा बढ़ रहा है।" उनके मुताबिक बहुत कम हेपेटाइटिस पीड़ितों में रोग का निदान व इलाज हो पा रहा है, जो बढ़ती मौतों की वजह बन रहा है।

क्या है हेपेटाइटिस, स्वास्थ्य को कैसे करता है प्रभावित

आंकड़ों से पता चला है कि वायरल हेपेटाइटिस से होने वाली मौतों की संख्या 2019 में 11 लाख दर्ज की गई थी, जो 2022 में 18 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 13 लाख पर पहुंच गई है। इनमें से 83 प्रतिशत मौतें हेपेटाइटिस बी के कारण, जबकि 17 फीसदी मौतों के लिए हेपेटाइटिस सी जिम्मेवार है।

स्वास्थ्य संगठन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात की भी जानकारी दी है कि 2022 में 25.4 करोड़ लोग हेपेटाइटिस बी से जबकि पांच करोड़ लोग हेपेटाइटिस सी के साथ अपना जीवन व्यतीत करने को मजबूर थे। इतना ही नहीं हेपेटाइटिस बी और सी से गम्भीर रूप से संक्रमित आधे से ज्यादा लोगों की उम्र 30 से 54 वर्ष के बीच है। वहीं 12 फीसदी बच्चे भी इसका शिकार हैं। आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि इससे संक्रमित लोगों में 58 फीसदी पुरुष हैं।

हेपेटाइटिस मूल रूप से लीवर से जुड़ी बीमारी है, जो वायरल इन्फेक्शन के कारण होती है। इस बीमारी के कारण लीवर में सूजन आ जाती है। हेपेटाइटिस के पांच प्रकार के वायरस होते हैं, जिन्हें ए,बी,सी,डी और ई के रूप में जाना जाता है।

आज जिस तरह से लोग हेपेटाइटिस के चपेट में आ रहे हैं उसके कारण यह महामारी जैसी बनती जा रही है। यही वजह है कि साल दर साल इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा भी बढ़ रहा है। इतना ही नहीं हेपेटाइटिस बी और सी की वजह से लाखों लोग क्रोनिक बीमारी का शिकार बन रहे हैं।

हालांकि रिपोर्ट के मुताबिक 2019 की तुलना में 2022 में इसके नए मामलों में गिरावट आई है। जहां 2019 वायरल हेपेटाइटिस के 25 लाख नए मामले सामने आए थे, जो 2022 में घटकर 22 लाख रह गए। इनमें से 12 लाख मामले हेपेटाइटिस बी के जबकि 10 लाख हेपेटाइटिस सी के थे। लेकिन इसके बावजूद यह आंकड़े दर्शाते हैं कि यह बीमारी हर दिन औसतन छह हजार लोगों को अपनी गिरफ्त में ले रही है।

बता दें कि वैश्विक स्तर पर हेपेटाइटिस के करीब 80 फीसदी मामले 38 देशों में सामने आए हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।

इससे सबसे ज्यादा प्रभावित दस देशों की बात करें तो इनमें बांग्लादेश, चीन, इथियोपिया, भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, फिलीपींस, रूस और वियतनाम शामिल हैं। यह देश दुनिया के हेपेटाइटिस बी और सी के बोझ का करीब दो-तिहाई हिस्सा ढो रहे हैं। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि 2025 तक इन देशों में सभी को रोकथाम, निदान और उपचार मिल सके। अफ्रीकी क्षेत्र में इस दिशा में कहीं ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है ताकि 2030 तक सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल किया जा सके।

हेपेटाइटिस से दुनिया का दूसरा सबसे प्रभावित देश है भारत

आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक स्तर पर हेपेटाइटिस बी और सी के सबसे ज्यादा मामले चीन में सामने आए थे। जहां यह आंकड़ा 8.38 करोड़ दर्ज किया गया। देखा जाए तो दुनिया के 27.5 फीसदी मामले चीन में सामने आए हैं। इसके बाद भारत इस मामले में दूसरे स्थान पर हैं जहां 2022 में हेपेटाइटिस बी और सी के 3.53 करोड़ मामले सामने आए। इनमें हेपेटाइटिस बी के 2.98 करोड़ और हेपेटाइटिस सी के 55 लाख मामले शामिल थे। देखा जाए तो भारत हेपेटाइटिस के वैश्विक बोझ का 11.6 फीसदी ढो रहा है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि आज इसके निदान एवं उपचार के लिए बेहतर उपकरण उपलब्ध हैं और उनकी कीमतों में भी गिरावट आ रही है। लेकिन परीक्षण एवं उपचार की कवरेज दरें नहीं बढ़ पाई हैं।

विश्व स्तर पर देखें तो क्रोनिक हेपेटाइटिस बी से पीड़ित केवल 13 फीसदी लोगों को उचित निदान प्राप्त हुआ था। इसी तरह महज तीन फीसदी यानी 70 लाख लोगों को 2022 के अन्त में एंटीवायरल थेरेपी प्राप्त हुई थी। जो 2030 तक 80 फीसदी को इलाज उपलब्ध कराने के वैश्विक लक्ष्य से काफी पीछे है। क्षेत्र के आधार पर भी वायरल हेपेटाइटिस में असमानताएं मौजूद हैं।

अफ्रीका में हेपेटाइटिस बी के करीब 63 फीसदी नए मामले सामने आते हैं। हालांकि वहां केवल 18 फीसदी नवजात शिशुओं को ही जन्म के समय हेपेटाइटिस बी की खुराक प्राप्त हुई थी। ऐसा ही कुछ पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में भी देखने को मिला है, जहां हेपेटाइटिस बी से 47 फीसदी मौतें होती हैं, हालांकि वहां निदान किए गए केवल 23 फीसदी मरीजों को ही उपचार हासिल है, जो इसकी मृत्यु दर को कम करने के लिए काफी नहीं है।

वहीं हेपेटाइटिस सी से जुड़े आंकड़ों को देखें तो 36 फीसदी में इसके संक्रमण का पता चला था, वहीं 20 फीसदी यानी 1.25 करोड़ लोगों को उपचार हासिल हो सका था। इसके अलावा, वायरल हेपेटाइटिस की सस्ती जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता के बावजूद, कई देश उन्हें कम कीमतों पर नहीं खरीद पाते हैं।

यही वजह है कि रिपोर्ट में वायरल हेपेटाइटिस से निपटने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने की बात कही गई है। इसमें वायरल हेपेटाइटिस के खिलाफ प्रभावी हस्तक्षेप में तेजी लाने के लिए कार्रवाई की रूपरेखा दी गई है, जिससे 2030 तक इस महामारी का उन्मूलन किया जा सके। इसके तहत, परीक्षण व निदान तक पीड़ितों की पहुंच बढ़ाना, प्राथमिक देखभाल और रोकथाम संबंधी प्रयासों को मजबूत करना और सभी को उपचार हासिल हो सके, इसके लिए नीतियां लागू करना शामिल है।

रिपोर्ट में, देशों के बीच स्वास्थ्य असमानताओं को दूर करने और किफायती दरों पर उपकरण उपलब्ध करवाने की रणनीतियों पर भी प्रकाश डाला गया है। हालांकि साथ ही स्वास्थ्य संगठन ने आशा जताई है कि अगर इस मामले में तत्काल कार्रवाई की जाए तो 2030 इसके उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है।