हीमोफीलिया और अन्य रक्तस्राव विकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल 17 अप्रैल को दुनिया भर में विश्व हीमोफीलिया दिवस मनाया जाता है।
हीमोफीलिया एक दुर्लभ आनुवंशिक विकार है जो खून के ठीक से थक्का जमने की क्षमता पर असर डालता है, जिससे लंबे समय तक रक्तस्राव होता है और आसानी से चोट लग जाती है। यह दिन हीमोफीलिया के बारे में लोगों को शिक्षित करने, प्रभावित लोगों के लिए उपचार और देखभाल तक पहुंच में सुधार करने और इस स्थिति के लिए बेहतर उपचार और इलाज खोजने के लिए शोध प्रयासों का समर्थन करने का अवसर है।
हीमोफीलिया और अन्य रक्तस्राव संबंधी विकार सांख्यिकीय रूप से अन्य पुरानी बीमारियों की तुलना में अधिक दुर्लभ हैं। 10,000 में से केवल एक व्यक्ति हीमोफीलिया से पीड़ित है। इन विकारों को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
इस साल विश्व हीमोफीलिया दिवस की थीम "सभी के लिए पहुंच: महिलाओं और लड़कियों को भी रक्तस्राव होता है"। यह इस विकार से पीड़ित महिलाओं को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।
पूरे इतिहास में इस विकार को पुरुषों की समस्या के रूप में पहचाना जाता रहा है और रक्तस्राव की समस्या से जूझ रही महिलाओं के संघर्ष को अनदेखा किया जाता रहा है। अब समय आ गया है कि हीमोफीलिया के लिए महिलाओं की स्वास्थ्य सेवा तक पहुंच के बीच की खाई को पाटा जाए।
इस साल की थीम इस विकार को पहचानने और इससे पीड़ित लड़कियों और महिलाओं के लिए उचित उपचार तक पहुंच की आवश्यकता पर जोर देती है। इसका उद्देश्य उन महिलाओं के बीच जागरूकता फैलाना है जिनका निदान नहीं हुआ है या जिनका निदान गलत है। वे पुरुषों के समान ही उपचार और पर्याप्त समाधान की हकदार हैं। हीमोफीलिया से पीड़ित किसी भी व्यक्ति को पीछे नहीं छोड़ा जाना चाहिए।
विश्व हीमोफीलिया दिवस की स्थापना 1989 में विश्व हीमोफीलिया महासंघ द्वारा इसके संस्थापक फ्रैंक श्नेबेल के सम्मान में की गई थी, जिन्होंने हीमोफीलिया के बारे में जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और इस विकार से पीड़ित लोगों की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।
समय के साथ यह एक वैश्विक आंदोलन के रूप में विकसित हुआ क्योंकि लोगों ने इस समस्या और उपचार के महत्व को पहचानना शुरू कर दिया। हालांकि मिस्र की रानी के हीमोफीलिया से पीड़ित होने के बाद इस बीमारी को ‘शाही बीमारी’ भी कहा गया।
भारत में हीमोफीलिया के मामले
हीमोफीलिया एक रक्तस्राव संबंधी विकार है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करता है। हीमोफीलिया और हेल्थ कलेक्टिव ऑफ नॉर्थ (एचएचसीएन) के अनुसार, भारत में हीमोफीलिया से पीड़ित लोगों की दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, यहां हीमोफीलिया ए के अनुमानित 1,36,000 मामले हैं।
फिर भी, विश्व हीमोफीलिया महासंघ की मानें तो मात्र लगभग 21,000 रोगी ही पंजीकृत हैं, जिनमें से लगभग 80 फीसदी की जांच नहीं हो पाती है। यह अंतर सीमित स्क्रीनिंग क्षमताओं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच जागरूकता की कमी से उपजा है।
निवारक उपचार की आवश्यकता
हीमोफीलिया (पीडब्ल्यूएच) से पीड़ित लोगों के उपचार के लिए पिछले साल हीमोफीलिया और हेल्थ कलेक्टिव ऑफ नॉर्थ (एचएचसीएन) ने राष्ट्रीय दिशा-निर्देश द्वारा जारी किए गए। ये दिशा-निर्देश रक्तस्राव की घटनाओं को रोकने के लिए रोगनिरोधी उपचार के रूप में एमिसिज़ुमैब जैसे अभिनव उत्पादों के उपयोग की सलाह देते हैं, जो अब भारत में उपलब्ध हैं।
उपचार-जिसमें रक्तस्राव को रोकने के लिए नियमित रूप से जलसेक शामिल है, विकसित देशों में मानक है, जहां अपनाने की दर 80 से 90 फीसदी जितनी अधिक है। हालांकि भारत में, केवल चार फीसदी रोगियों को ही प्रोफिलैक्सिस मिलता है। अप्रैल 2024 में क्यूरियस मेडिकल जर्नल में प्रकाशित शोध के मुताबिक, अधिकांश लोग अभी भी ऑन-डिमांड थेरेपी पर निर्भर हैं, रक्तस्राव का इलाज करते हैं, जो जोड़ों को नुकसान और अन्य समस्याओं का कारण बन सकता है।