दुनिया भर में 50 करोड़ से अधिक लोग हृदय रोगों के शिकार हो रहे हैं। अकेले 2021 में लगभग 2.05 करोड़ लोगों की मौत के लिए हृदय रोग जिम्मेवार थे।
वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन की नई रिपोर्ट के अनुसार, हृदय रोगों (सीवीडी) से होने वाली मौतें दुनिया भर में मौतों का प्रमुख कारण हैं। यह दुनिया भर में 1990 में 1.21 करोड़ से बढ़कर 2021 में 2.05 करोड़ हो गई है, जो कि 60 फीसदी के बराबर है।
इस्केमिक हृदय रोग- जिसे कोरोनरी धमनी रोग भी कहा जाता है, एक ऐसी स्थिति है जब दिल को होने वाली खून की आपूर्ति पर असर पड़ता है। इसके कारण पुरुषों के लिए 146 देशों और महिलाओं के लिए 98 देशों में समय से पहले होने वाली मौतें देखी गई हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया 2010 की तुलना में 2025 तक कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों जैसे गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) से समयपूर्व मृत्यु दर को 25 फीसदी तक कम करने के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को हासिल करना कठिन लग रहा है।
गैर-संचारी रोग भी भारत में एक बढ़ती स्वास्थ्य समस्या है, हाल ही में देश में गैर-संचारी रोगों के कारण होने वाली मौतों का अनुपात कम से कम 63 फीसदी तक बढ़ गया है।
भारत में एक बड़ी चिंता यह है कि दुनिया के इस हिस्से में लोगों को कम उम्र में दिल की बीमारी हो रही है। मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान, शराब का सेवन ये सभी इसके पीछे के कारण हैं।
रिपोर्ट गंभीर खतरे की ओर इशारा करते हुए बता रही है कि, कार्डियोवैस्कुलर बीमारी पूरी दुनिया में खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में उत्पन्न होती है। 80 फीसदी तक समय से पहले दिल के दौरे और स्ट्रोक को रोका जा सकता है।
रिपोर्ट के सह-लेखक और डब्ल्यूएचएफ के पूर्व अध्यक्ष फॉस्टो पिंटो ने कहा, यह महत्वपूर्ण है कि देश सीवीडी से लोगों को बचाने के लिए उपकरणों और नीतियों को लागू करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि उच्च रक्तचाप, वायु प्रदूषण, तंबाकू का उपयोग और उच्च एलडीएल कोलेस्ट्रॉल सीवीडी से होने वाली मौतों में प्रमुख योगदानकर्ताओं में से हैं। रिपोर्ट में विशेषज्ञ एक उपाय के रूप में स्वास्थ्य खर्च में वृद्धि की सलाह देते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, परिवेशी वायु प्रदूषण की वजह से भी हृदय रोगों में इजाफा होता है, दक्षिण एशिया में 2019 में परिवेशी कण प्रदूषण का स्तर, अधिक आय वाले क्षेत्र की तुलना में 5.9 गुना अधिक पाई गई।
रिपोर्ट के मुताबिक, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिस्से के रूप में स्वास्थ्य देखभाल पर अधिक खर्च करने वाले देशों में सीवीडी से होने वाली मृत्यु दर कम होती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दक्षिण एशिया में, स्वास्थ्य पर व्यय के लिए आवंटित जीडीपी का प्रतिशत बांग्लादेश में 2.6 फीसदी, भूटान में 3.6 फीसदी, भारत में 2.9 फीसदी, नेपाल में 4.4 फीसदी और पाकिस्तान में 2.8 फीसदी है।
सिविल सोसाइटी के कई लोगों ने लंबे समय से देशों से अपने सकल घरेलू उत्पाद का न्यूनतम पांच फीसदी स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करने के लिए कहा है ताकि लोगों के जेब से होने वाले खर्च को कम किया जा सके और सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज की खोज में सेवा कवरेज में सुधार किया जा सके।
मारियाचियारा डि सेसारे ने कहा कि, स्वास्थ्य देखभाल में निवेश करके जीवन बचाया जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सिफारिशों के अनुसार, सीवीडी मृत्यु दर और रुग्णता को कम करने में मदद करने के लिए देशों को अपने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का कम से कम पांच फीसदी निवेश करना चाहिए। सेसारे एसेक्स विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड वेलबीइंग से हैं, जिन्होंने डब्ल्यूएचएफ के सहयोग से संकलित आंकड़ों और विश्लेषण किया।
रिपोर्ट में सीवीडी स्वास्थ्य पर प्रगति को पटरी पर लाने के लिए पांच सिफारिशें की गई हैं। इन सिफारिशों में सीवीडी से निपटने के लिए सभी प्रमुख नीतियों को लागू करना, सीवीडी स्वास्थ्य हस्तक्षेपों को पर्याप्त रूप से वित्त पोषित करना सुनिश्चित करना और विशेष रूप से निम्न और मध्यम आय वाले देशों में सीवीडी और उनके खतरों के कारणों के आंकड़ों में सुधार के प्रयासों को शामिल करना शामिल है।
फॉस्टो पिंटो ने कहा, रिपोर्ट की सिफारिशें स्पष्ट करती हैं कि 2030 तक एनसीडी से समयपूर्व मृत्यु दर को एक तिहाई कम करने के लक्ष्य की ओर कार्रवाई में तेजी लाने का अवसर अभी भी है।
वर्ल्ड हार्ट फेडरेशन (डब्ल्यूएचएफ) वर्ल्ड हार्ट विजन 2030 के मुताबिक सभी देशों और हितधारकों को कार्डियोवैस्कुलर बीमारियों जैसे गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) में सुधार के प्रयासों में तेजी लाना होगा, ताकि एनसीडी से एक तिहाई समयपूर्व मृत्यु दर को कम करने के सतत विकास लक्ष्य 3.4 को हासिल किया जा सके।