स्वास्थ्य

हेल्थ इंडेक्स: निचले पायदान पर बने हुए हैं उत्तर प्रदेश-बिहार

नीति आयोग की रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश-बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली देखी जा सकती है

Raju Sajwan

एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम (एईएस) जैसी बीमारी का इलाज मुहैया न करा पाने वाले राज्य बिहार-उत्तर प्रदेश स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में सबसे निचले पायदान पर हैं। नीति आयोग द्वारा जारी स्‍वास्‍थ्‍य सूचकांक (हेल्‍थ इंडेक्‍स) में उत्तर प्रदेश सबसे नीचे और उससे ऊपर बिहार है। दो साल पहले भी ऐसा ही इंडेक्स जारी हुआ था तो ये दोनों राज्य तब भी निचले पायदान पर थे। बल्कि बिहार तो 21 बड़े राज्यों की सूची में 19वें स्थान पर था और दो साल में उसका नंबर गिरकर 20वां हो गया।

नीति आयोग ने मंगलवार को ‘स्‍वस्‍थ राज्‍य, प्रगतिशील भारत’ रिपोर्ट का दूसरा संस्‍करण जारी किया। इसमें राज्‍यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों में दो वर्षों की अवधि (2016-17 और 2017-18) के दौरान हुए स्वास्थ्य सेवाओं में हुए सुधार के आधार पर रैंकिंग दी गई है। इससे पहले 2017 में जारी रिपोर्ट में 2014-15 और 2015-16 के प्रदर्शन के आधार पर रैंकिंग दी गई थी।

रैंकिंग को बड़े राज्यों, छोटे राज्यों और केन्‍द्र शासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकृत किया गया, ताकि एक जैसे निकायों के बीच तुलना सुनिश्चित की जा सके। स्‍वास्‍थ्‍य सूचकांक (हेल्‍थ इंडेक्‍स) एक भारित समग्र सूचकांक है। यह ऐसे 23 संकेतकों पर आधारित है जिन्‍हें स्वास्थ्य परिणामों, गवर्नेंस एवं सूचना और महत्‍वपूर्ण जानकारियों/ प्रक्रियाओं के क्षेत्रों (डोमेन) में बांटा गया है। प्रत्‍येक क्षेत्र को विशेष भारांक (वेटेज) दिया गया है, जो उसकी अहमियत पर आधारित है और जिसे विभिन्‍न संकेतकों के बीच समान रूप से बांटा गया है।

बड़े राज्‍यों में केरल, आंध्र प्रदेश और महाराष्‍ट्र को समग्र प्रदर्शन की दृष्टि से शीर्ष रैंकिंग दी गई है, जबकि हरियाणा, राजस्‍थान और झारखंड वार्षिक वृद्धिशील प्रदर्शन की दृष्टि से शीर्ष तीन राज्‍य हैं। हरियाणा, राजस्‍थान और झारखंड ने विभिन्‍न संकेतकों के मामले में आधार से संदर्भ वर्ष तक स्वास्थ्य परिणामों में अधिकतम बेहतरी दर्शाई है।

21 बड़े राज्यों में पहले स्थान पर केरल, दूसरे पर आंध्रप्रदेश, तीसरे पर महाराष्ट्र, चौथे पर गुजरात, पांचवें पर पंजाब, छठे पर हिमाचल प्रदेश, सातवें पर जम्मू कश्मीर, आठवें पर कर्नाटक, नौंवे पर तमिलनाडु, दसवें पर तेलंगाना, ग्यारवें पर पश्चिम बंगाल, 12वें पर हरियाणा, 13वें पर छत्तीसगढ़, 14वें पर झारखंड, 15वें पर आसाम, 16वें पर राजस्थान, 17वें पर उत्तराखंड, 18वें पर मध्यप्रदेश, 19वें पर ओडिशा, 20वें बिहार व 21वें पर उत्तरप्रदेश है।

 दिलचस्प यह है कि उत्तर प्रदेश और बिहार ने पिछले दो साल में कुछ खास सुधार नहीं किया है। हाल ही में बिहार, जहां एईएस की वजह से लगभग 200 बच्चों की जान जा चुकी है में दो साल में सुधार होने की बजाय हालात बिगड़े हैं। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इंक्रीमेंटल रेंक के मामले में तो बिहार का नंबर 21वां है। वहीं ओवरऑल रेफरेंस ईयर रेंक में बिहार 2017 का नंबर 19वां था, जो इसमें भी गिरावट आई और बिहार 20वें स्थान पर पहुंच गया। जबकि 2017 में 20वें स्थान वाले राजस्थान ने जबरदस्त सुधार करते हुए इस बार 16वां स्थान हासिल किया है।

इस इंडेक्स में बिहार तमाम स्वास्थय सूचकों में फिसड्डी साबित हुआ है। मसलन, कुल जन्म दर (टीएफआर), कम वजन वाले बच्चों का जन्म (एलबीडब्ल्यू), जन्मजात लैंगिक दर (एसआरबी), संस्थागत (अस्पतालों में) डिलीवरी, टीबी की दर, टीबी सफल उपचार की दर, एएनएम और स्टाफ नर्स की रिक्तियां, 24 घंटे सातों दिन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन, जन्म पंजीकरण आदि मसलों में भी बिहार कई राज्यों से काफी पीछे है।