सम्राट अकबर के एडवेंचरस स्वभाव के किस्से पृथ्वी से चांद तक मशहूर थे। एक दिन अकबर ने बीरबल से कहा,“हम जनता का हाल खुद जानना चाहते हैं।”
प्लान के मुताबिक एक रात अकबर और बीरबल ने चादर लपेटी, भेष बदला और जनता का हाल देखने-जानने के लिए निकल पड़े।
राजधानी की सिक्स लेन सड़क को पार कर वे गांव देहात के रास्ते से गुजर रहे थे जो ठेकेदार-मनरेगा-विधायक का शिकार बना हुआ था। थोड़ी देर में दोनों को एक बड़ी-सी इमारत दिखी जिसके बाहर बहुत भीड़ जमा थी। अकबर तरन्नुम में बोले, “बीरबल! ये कहां आ गए हम, यूं ही साथ चलते–चलते?”
दोनों इमारत के पास जा पहुंचे जिसके बाहर लिखा था, “प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, गांव बहादुरपुर, ब्लॉक कान्ति, जिला मुजफ्फरपुर, बिहार” बीरबल ने फुसफुसा कर अकबर से कहा, “हुजूर यह तो कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र लगता है।”
अकबर बोले, “बहुत स्मार्ट मत बनिए बीरबल जी। अनपढ़ हूं तो क्या हुआ, मेरा मन कह रहा है कि यह एक स्वास्थ्य केंद्र है!”
अकबर की “मन की बात” ठीक थी। स्वास्थ्य केंद्र में फटेहाल कपड़ों में मां-बाप, चीथड़ों में लिपटे अपने बेहोश बच्चों को लेकर इधर से उधर भाग रहे थे। बदबू, अराजकता, गंदगी और मातम चारों ओर था। अकबर बोले, “आज क्रिकेट वर्ल्ड कप का सेमीफाइनल है। उस रोमांचक मैच को छोड़कर लोग यहां क्या कर रहे हैं?”
अचानक बीरबल में मानो किसी पत्रकार की आत्मा प्रवेश कर गई। सामने से आ रहे एक व्यक्ति को रोककर बीरबल ने पूछा “एक्सक्यूज मी, नेशन वांट्स टू नो, आपका नाम?”
“जी विजय कुमार” उस आदमी ने अचकचा कर कहा।
“आपको यहां कैसा लग रहा है?” बीरबल ने पूछा।
“हमार बिटवा को चमकी बुखार हो गया है साहब। आज सुना है डागदर बाबू आए हैं” कहते हुए विजय एक कमरे के बाहर लगी लाइन में लग गए।
कुछ घंटों के बाद विजय कुमार का नंबर आया तो सम्राट अकबर और बीरबल भी डॉक्टर के कमरे में जा घुसे। पर यह क्या? उस कमरे में तो कोई नहीं था! डॉक्टर की कुर्सी खाली थी। विजय कुमार मरीज की कुर्सी पर बैठे और डॉक्टर की खाली पड़ी कुर्सी से बात करने लगे।
अकबर और बीरबल भी अचंभित थे।
अकबर ने विजय कुमार से पूछा, “आप किससे बातें कर रहे हैं?”
विजय कुमार ने कहा, “मैं डागदर बाबू से बात कर रहा हूं।”
अकबर ने बीरबल की ओर देखा और बीरबल ने अकबर की ओर। फिर बीरबल ने पूछा, “मुझे तो यहां कोई डॉक्टर नहीं दिख रहा है।”
विजय कुमार बोले, “डागदर तो भगवान का रूप होता है। आपने भगवान को देखा है? नहीं न? तो क्या इसका मतलब है भगवान भी नहीं है? देखो साहब, जो देश अपने बजट का दो फीसदी से भी कम जन-स्वास्थ्य पर खर्च करता है वहां किस बात की स्वास्थ्य सुविधा और कैसा डागदर बाबू? हम गरीबों के लिए भगवान और स्वास्थ्य केंद्रों में डागदर दोनों आस्था की चीज है।”
बीरबल ने अकबर को आंखों ही आंखों में कुछ इशारा किया। दोनों ने अपने चेहरे को अच्छी तरह चादर में छुपाया और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से बाहर निकल आए।
यह कहना मुश्किल था कि दोनों अपना चेहरा जनता से छिपा रहे थे या बचा रहे थे।