पुणे और भारत के अन्य भागों में रिपोर्ट किए गए गुइलेन बैरे सिंड्रोम (जीबीएस) का प्रकोप का बड़ा कारण दूषित पानी माना जा रहा है। एक विशेषज्ञ ने तो यहां तक कहा है कि दूषित पानी का स्रोत प्रयागराज महाकुंभ जैसी जगह भी हो सकता है, क्योंकि वहां जीबीएस को ट्रिगर करने वाले प्राथमिक संक्रमण बहुत कम समय में लाखों लोगों में फैल सकते हैं।
पेशे से डॉक्टर और एक स्वतंत्र शोधकर्ता जेसी स्कारिया ने कहा है कि जीबीएस को ट्रिगर करने वाले पूर्ववर्ती संक्रमण फिकल (मल) या ओरल (मुख) या ड्रॉपलेट (बूंदों) ट्रांसमिशन के माध्यम से भी भीड़ में फैल सकते हैं।
प्राथमिक जांच से पता चला है कि पुणे और उसके आसपास के क्षेत्रों में जीबीएस का प्रकोप कैम्पिलोबैक्टर जेजुनी और नोरोवायरस के कारण हुआ है। स्कारिया ने कहा कि ये दोनों रोगाणु मल व प्रदूषित पानी में बड़ी संख्या में हो सकते हैं और गैस्ट्रोएंटेराइटिस का कारण बनने की उनकी क्षमता के साथ जीबीएस को भी ट्रिगर कर सकते हैं।
जनवरी के अंत में पुणे और पड़ोसी जिलों जैसे सतारा, सांगली, खेड़, तालेगांव और अन्य से जीबीएस के मामले 163 तक पहुंच गए हैं जो शहर की सीमा से काफी बाहर हैं। स्कारिया ने कहा कि बीमारी सिंहगढ़ जैसे कुछ हिस्सों में केंद्रित है, वहीं भौगोलिक रूप से दूर के अन्य क्षेत्रों में कई छिटपुट मामले केवल संक्रमण के एक बड़े स्रोत की ओर इशारा करते हैं। और ये संभावित रूप से एक ही समयाअवधि में अलग-अलग स्थानों पर इन सभी रोगियों को प्रभावित कर सकता है।
गत 5 फरवरी तक पुणे नगर निगम ने 19 निजी आरओ शुद्धिकरण संयंत्रों की पहचान की है। इनमें संदूषण था और उन्हें बंद कर दिया है। पुणे के अलावा महाराष्ट्र के अन्य भागों में व भारत के अन्य राज्यों में भी कई मामले सामने आए हैं।
स्कारिया ने कहा कि चूंकि जीबीएस एक अधिसूचित बीमारी नहीं है इसलिए यह जानना लगभग असंभव है कि वर्तमान में भारत में इसके कितने मामले हैं। उन्होंने डाउन टू अर्थ को बताया कि दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में कुल मिलाकर 100 से अधिक मामले होने की एक रिपोर्ट है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कोई भी इसके बारे में चिंतित क्यों नहीं है।
पुणे नगर निगम की स्वास्थ्य प्रमुख नीना बोराडे ने कहा कि हमने पिछले दो महीनों में सभी रोगियों की यात्रा की पूरी जानकारी और सक्रिय संक्रमणों व एंटीबॉडी के लिए जीका, डेंगू और अन्य प्रमुख वायरसों की जांच की है, जो संभावित रूप से जीबीएस को ट्रिगर कर सकते हैं लेकिन सभी परीक्षण नकारात्मक आए हैं। स्कारिया ने जोर देकर कहा कि सभी रोगियों को ट्रिगरिंग संक्रमण के संपर्क में आने के लिए कुंभ मेले की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं है। तीर्थ स्थल से लाए गए गंगा जल या प्रसाद का सेवन या मेले में प्राथमिक संक्रमण को पकड़ने वाले किसी व्यक्ति के संपर्क जैसे किसी भी संबंध से इन जीबीएस रोगियों में ट्रिगरिंग संक्रमण हो सकता है।
स्कारिया ने कहा कि पुणे में प्रारंभिक प्रकोप भी समझ में आता है क्योंकि वहां से बहुत से निवासी कुंभ की यात्रा कर चुके हैं और प्राथमिक संक्रमण नोरोवायरस या एस्चेरिचिया कोली जैसे अन्य के साथ वापस आ सकते हैं जो अंततः इसे कई संपर्कों में तेजी से सीधे और अप्रत्यक्ष रूप से फैलाते हैं।