2022 में संवेदना कार्यक्रम शुरू होने के बाद स्वास्थ्यकर्मियों ने दुर्ग के ग्रामीण क्षेत्रों के करीब 3 लाख घरों का सर्वेक्षण कर मानसिक रोगियों का पता लगाया  (फोटो: पुष्पेंद्र कुमार मीणा)
स्वास्थ्य

ग्राउंड रिपोर्ट: मनोरोगियों के लिए आदर्श बना दुर्ग जिला

एक कार्यक्रम के जरिए छत्तीसगढ़ का दुर्ग जिला मनोरोगियों की पहचान और उनके इलाज के लिए आदर्श बन गया

Bhagirath

  • संवेदना कार्यक्रम ने दुर्ग जिले में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को सुदृढ़ किया है

  • इस पहल के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में मानसिक रोगियों की पहचान कर उन्हें उचित उपचार और काउंसलिंग प्रदान की गई

  • कार्यक्रम की सफलता का श्रेय प्रशिक्षित स्वास्थ्य कर्मियों और व्यापक सर्वेक्षण को जाता है, जिससे हजारों लोग मानसिक विकारों से मुक्त हो सके

  • 2024-25 में पूरे दुर्ग जिले में 65,601 मानसिक रोगियों का इलाज किया गया

वह साल 2021 की दीवाली के आसपास का दिन था। सुभाष नगर कॉलोनी के ज्यादातर घरों में त्योहार की खुशियां थीं, लेकिन 41 साल के राहुल सोनवानी (परिवर्तित नाम) के घर का दरवाजा बंद था। वह अपनी 10 साल की बेटी और पत्नी के साथ एक खतरनाक मंशा के साथ घर पर थे। पत्नी और बेटी की हत्या करने के बाद वह आत्महत्या की योजना बना रहे थे।

बीमा कंपनी में इन्वेस्टीगेशन का काम करने वाले राहुल के पिछले कुछ साल भारी अवसाद में गुजर रहे थे। उन्हें रह रहकर आत्महत्या के विचार आते थे। स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, उन्हें मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर (एमडीडी) था। इस मानसिक विकार में उदासी व निराशा, अनिद्रा, थकान, चिड़चिड़ापन व आत्महत्या के विचार जैसी समस्याएं पैठ बना लेती हैं।

इन्हीं परेशानियों के कारण वह पत्नी पर बेमतलब गुस्सा करते थे और मारपीट पर उतर आते थे। खुद और परिवार को खत्म कर राहुल अपने इस मानसिक विकार से मुक्ति पा लेना चाहते थे। लेकिन इससे पहले कि वह आत्मघाती कदम उठाते, उनके दरवाजे पर स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंच गई। घर में दाखिल होने के बाद परिवार के लोगों के हावभाव देखकर टीम तुरंत समझ गई कि कुछ गुड़बड़ जरूर है।

स्वास्थ्य विभाग की टीम काफी देर बात करने पर इस निष्कर्ष पर पहुंच गई कि राहुल की मानसिक हालत ठीक नहीं है और राहुल ने उनके सामने अपनी मंशा भी जाहिर कर दी। जिला स्वास्थ्य विभाग की टीम ने घर में ही काफी देर उनकी काउंसलिंग की और उन्हें एंबुलेंस से तुरंत दुर्ग के जिला अस्पताल लेकर पहुंच गई। अस्पताल में क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट ने उनकी घंटों काउंसलिंग की।

स्वास्थ्य विभाग की टीम के समय रहते दखल के बाद राहुल और उनका परिवार बच गया। राहुल का दुर्ग जिले में 2022 में शुरू किए गए संवेदना कार्यक्रम के अंतर्गत करीब साढ़े तीन साल तक इलाज चला। वह अब अपने मानसिक विकार से पूरी तरह से उबर चुके हैं। राहुल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वह स्वास्थ्य विभाग की टीम के शुक्रगुजार हैं जो उस दिन समय रहते उनके घर पहुंची और वह आत्मघाती कदम उठाने से बच गए।

राहुल छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के उन हजारों लोगों में एक हैं जो मानसिक विकारों से जूझ रहे थे। इस सूची में पाटन ब्लॉक के विशाल कुमार (परिवर्तित नाम) का भी नाम है। 25 साल के विशाल 18 साल की उम्र से ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर (ओसीडी) बीमारी से पीड़ित थे।

उन्होंने डाउन टू अर्थ को अपनी बीमारी की जानकारी देते हुए बताया कि वह एक पैर से ज्यादा चलते थे, घंटों नहाते थे और नहाते समय बार-बार निजी अंग धोते रहते थे, बार-बार पेशाब करने जाते थे, परीक्षा में उत्तर पुस्तिका फाड़ देते थे, टंग क्लीनर को जीभ में इतना रगड़ते थे कि खून निकल आता था।

विशाल ने अपनी समस्या कई बार परिवार को बताई लेकिन कोई सदस्य उनकी परेशानी नहीं समझ रहा था। पिता को लगता था कि बेटा नाटक कर रहा है। दिसंबर 2022 में आखिर वह पाटन के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में पहुंचा। यहां उन्हें गाढ़ाडीह स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (पीएमसी) में डॉक्टर दीपक क्षत्रीय से मिलने की सलाह दी गई। 15 दिसंबर 2022 को विशाल गाढ़ाडीह पहुंचे और अपनी समस्या डॉक्टर दीपक क्षत्रीय को बताई। डॉक्टर ने उनकी मानसिक विकार की पहचान की और काउंसलिंग के साथ ही उनकी दवाई शुरू कर दी।

विशाल ने बताया कि परिजन दवाई के खिलाफ थे और उन्हें दवाई खाने से हतोत्साहित करते थे। लेकिन जब डॉक्टर ने परिजनों से बात कर उन्हें विशाल की मानसिक स्थिति से अवगत किराया तो वह सहयोग करने लगे। विशाल का छह महीने तक गाढ़ाडीह के पीएमसी में डॉक्टर दीपक की निगरानी में इलाज चला। इसके बाद उन्हें दुर्ग जिला अस्पताल भेजा गया जहां विशेषज्ञ डॉक्टर की निगरानी में विशाल की इलाज हुआ। विशाल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वह अब 80 प्रतिशत तक ठीक हो चुके हैं।

इसी तरह का एक मामला दुर्ग के छाटा गांव की भी है। इस गांव में रहने वाले एक नाबालिग बच्चे को उनके पिता ने पढ़ाई के लिए हॉस्टल में भेजा था। हॉस्टल में जाने के बाद बच्चा सो नहीं पाता था, उसे तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती थीं, रात को वह उठकर रोने लगता था, घर आने पर हॉस्टल जाने का मन नहीं करता था और अक्सर उसके मन में आत्महत्या के विचार आते थे।

पेशे से पत्रकार उनके पिता ने अपने बच्चे के व्यवहार में हुए इस बदलाव की जानकारी पाटन सीएचसी को दी तो उन्हें डॉक्टर दीपक से मिलने की सलाह दी गई। 2023 के शुरुआती महीनों में डॉक्टर से मिलने पर बच्चे की काउंसलिंग शुरू हुई और 4-5 महीने में बच्चा सामान्य हो गया।

डॉक्टर दीपक ने बताया कि हॉस्टल में बच्चे को सब बुली (प्रताड़ित) करते थे, जिससे उसके मन में डर बैठ गया था। उन्होंने डाउन टू अर्थ को आगे बताया कि ग्रामीण इलाकों में मानसिक समस्याओं के मामले सामाजिक कुरीतियों की वजह से सामने नहीं आ पाते थे। लोग यह सोचकर परेशानी किसी को नहीं बताते कि कहीं लोग उसे पागल न समझने लगें। लेकिन दुर्ग जिले में अब लोग खुलकर सामने आ रहे हैं।

संवेदना कार्यक्रम को इस बदलाव का श्रेय देते हुए डॉक्टर दीपक कहते हैं कि 2022 में इस कार्यक्रम के तहत जिले के सभी डॉक्टरों को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य और तंत्रिका विज्ञान संस्थान (विमहंस) द्वारा ट्रेनिंग मिली जिसे चैंप नाम दिया गया। ट्रेनिंग के पहले बैच में 78 और दूसरे बैच में 82 डॉक्टर और आरएमए (रजिस्टर्ड मेडिकल असिस्टेंड) शामिल हुए।

इस ट्रेनिंग ने मानसिक रोगों को समझने में और उनके निदान में बहुत मदद की। इसके बाद सभी आशा वर्कर, मितानिन, आरएचओ (रूरल हेल्थ ऑफिसर) और सीएचओ (कम्यूनिटी हेल्थ ऑफिसर) को प्रशिक्षित किया गया।

डॉक्टर दीपक के अनुसार, 10 महीने चली इस ट्रेनिंग के बाद स्वास्थ्य कर्मियों में आत्मविश्वास आया और मानसिक रोगों के प्रति उनकी समझ विकसित हुई। इसके साथ-साथ सभी पीएमसी और सीएचसी में मानसिक रोगों की दवा उपलब्ध कराई गई। उन्होंने कहा कि ट्रेनिंग लेने के बाद कई आशा वर्कर और मितानिनों ने अपनी खुद की मानसिक समस्याएं खुलकर सामने रखीं और उनका भी इलाज चला।

ट्रेनिंग के बाद स्वास्थ्य कर्मियों ने गांव-गांव जाकर करीब 3 लाख घरों का सर्वेक्षण कर मानसिक रोगियों की पहचान की और उन्हें पीएमसी, सीएचसी और जिला अस्पताल लेकर गए।

आमालोरी गांव की आशा वर्कर लक्ष्मी मटियारी ने डाउन टू अर्थ को अपना अनुभव साझा करते हुए कहा कि उन्हें अपने गांव में सर्वेक्षण के दौरान एक ऐसी महिला मिली जो सिजोफ्रेनिया की शिकार थी। 2022 में पति की मौत के बाद उनमें यह समस्या आ गई थी।

लक्ष्मी के अनुसार, उस महिला को सीएचसी तक लाना बहुत मुश्किल था क्योंकि वह गालीगलौज और मारपीट करने लगती थी और कपड़े तक नहीं पहनती थी। वह अपनी मां और बहन को पीटती थी जिससे वे अलग रहने लगी थीं।

लक्ष्मी ने बताया कि एंबुलेंस की मदद से पहले उसे पाटन सीएचसी लाया गया फिर अक्टूबर 2024 में जिला अस्पताल भेजा गया। तीन दिन तक भर्ती करने के बाद उसे वापस घर भेजा गया है। फिर उसका इलाज पाटन सीएचसी से चला। अब वह काफी हद तक ठीक हो चुकी है और कोई गलत हरकत नहीं करती। लक्ष्मी ने बताया कि सर्वेक्षण के दौरान वह 400 से अधिक घरों में गईं और उन्हें तीन मानसिक रोगी मिले।

डॉक्टर दीपक स्वीकार करते हैं कि 2022 में संवेदना कार्यक्रम के तहत पीएमसी में मानसिक रोगियों को देखने की सुविधा शुरू हुई। इससे पहले पीएमसी में मानसिक रोगियों को नहीं देखा जाता था क्योंकि डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ को इन बीमारियों की समझ नहीं थी। ऐसे सभी मामले जिला अस्पताल रेफर कर दिए जाते थे।

संवेदना कार्यक्रम के तहत मानसिक रोगों की ट्रेनिंग लेने वाले दीपक बताते हैं कि अब उनके पीएमसी में महीने ग्रामीण क्षेत्रों से कम से कम 30 मानसिक रोगियों को हर महीने देखा जाता है, जिनमें करीब 10 फालोअप हैं और 20 नए मामले होते हैं।

संवेदना कार्यक्रम

दुर्ग के ग्रामीण क्षेत्रों से मानसिक रोगियों की पहचान करने वाले संवेदना कार्यक्रम की शुरुआत तत्कालीन कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने की थी। मीणा जुलाई 2022 से जनवरी 2024 तक दुर्ग के कलेक्टर थे। दुर्ग कलेक्टर बनते ही उन्होंने मानसिक रोगियों के इलाज के लिए संवेदना कार्यक्रम शुरू कर दिया।

इससे पहले छत्तीसगढ़ के कोंडागांव में कलेक्टर के रूप में उन्होंने इस कार्यक्रम का सफल क्रियान्वयन किया था। कोंडागांव में एक मानसिक विक्षिप्त लड़की को 2020 में बेड़ियों से बंधा देखने के बाद उनके मन में इसका विचार आया। मई 2020 से जुलाई 2022 के दौरान कोंडागांव में संवेदना कार्यक्रम की बदौलत 2,000-2,500 लोगों की पहचान कर उनका इलाज किया गया।

मीणा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि कोंडागांव जैसे छोटे जिलों में मनोचिकित्सक मिलना मुश्किल होता है। इसलिए सरकार की जिम्मेदारी है कि जिन पर कोई ध्यान नहीं देता, उनका खयाल रखे।

इसी को ध्यान में रखते हुए उन्होंने संवेदना कार्यक्रम शुरू कर ऐसे लोगों की पहचान, इलाज, काउंसलिंग और पुनर्वास पर ध्यान देना शुरू किया। इसके लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के बड़े स्टाफ को प्रशिक्षित किया और फील्ड स्टाफ से घर-घर सर्वेक्षण कराया और चिन्हित किए गए लोगों की सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में स्क्रीनिंग की गई।

उन्होंने बताया कि हमने फॉलोअप का पूरा सिस्टम बनाया और सर्वेक्षण में पता चले सभी मानसिक रोगियों की लिस्ट एएनएम को दी और टेलिकंसलटेशन की व्यवस्था की। उन्होंने संवेदना कार्यक्रम की सफलता का हवाला देते हुए कहा कि करीब 90 प्रतिशत मानसिक रोगियों की रिकवरी हुई जबकि प्राइवेट डॉक्टरों के इलाज में रिकवरी की दर 30 प्रतिशत ही रहती है। मीणा कहते हैं कि कोंडागांव में करीब 40 बेसहारा लोग ठीक होने के बाद अपने घर पहुंचे। उपचार के बाद उन्होंने खुद अपने घर का पता बताया।

कोंडागांव की सफलता से उत्साहित होकर उन्होंने दुर्ग में भी इस कार्यक्रम को लागू किया। घर-घर हुए सर्वेक्षण के दौरान उनकी टीम ने करीब 3,000 मानसिक रोगियों की पहचान की। उनका दावा है कि इनमें से 95 प्रतिशत रोगी उपचार के बाद ठीक हो गए। मीणा डाउन टू अर्थ को आगे बताते हैं, “ऐसे रोगियों पर विशेष ध्यान दिया गया जिन्हें आत्महत्या के विचार आते थे। इक्का-दुक्का ऐसे मामले भी सामने जहां रोगियों ने आत्महत्या कर ली लेकिन अधिकांश लोगों को हमारी टीम बचाने में कामयाब रही।”

दुर्ग जिले में शुरुआत से संवेदना कार्यक्रम से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष प्रकाश जामोर्या कहते हैं कि जिला अस्पताल में 2015 से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के तहत राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) के तहत मानसिक रोगियों को देखा जा रहा है, लेकिन जिला अस्पताल में चलने वाली इस ओपीडी में ग्रामीण क्षेत्रों से रोगी नहीं पहुंच पाते थे। जिला अस्पताल के आंकड़ों के अनुसार, 2016-17 में ओपीडी में कुल 2,276 रोगियों का उपचार किया गया था।

संवेदना कार्यक्रम ने हालात बदले और बड़े पैमाने पर ग्रामीण इलाकों से आने वाले रोगियों की संख्या जिला अस्पताल की ओपीडी में बढ़ गई। संवेदना कार्यक्रम के चलते 2022-23 अस्पताल में मरीजों की संख्या 11,668 पहुंच गई (देखें, अस्पताल की ओर)। इनमें सर्वाधिक 1,616 मामले साइकोसिस और 1,299 मामले सिजोफ्रेनिया के थे।

इस अवधि में जनरल डिप्रेशिव डिसऑर्डर के 829, जनरलाइज एंजाइटी डिसऑर्डर के 702, ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर के 590, मिक्स्ड एंजाइगी डिप्रेशन के 739, डाइमेंशिया के 609, स्लीप डिसऑर्डर के 840 और बाइपोलर डिसऑर्डर के 630 के मरीजों का ओपीडी में इलाज चला।

जिला अस्पताल में मानसिक रोगियों को देख रहीं नर्सिंग ऑफिसर कविता कहती हैं कि ओपीडी में प्रतिदिन 30-50 रोगी आते हैं। जिला अस्पताल की यह ओपीडी सोमवार से शनिवार तक सुबह नौ से दोपहर एक बजे और शाम को पांच से सात बजे तक चलती है।

संवेदना कार्यक्रम के तहत 2023 में प्रशिक्षित हुईं कविता मानती हैं कि पहले ओपीडी में अधिक लोग नहीं आते थे लेकिन पिछले 2-3 साल से लोग खुलकर सामने आ रहे हैं। जिला अस्पताल की ओपीडी के आंकड़े इसकी पुष्टि करते हैं। 2024-25 में केवल जिला अस्पताल की ओपीडी में कुल 13,699 मरीजों का इलाज हुआ, जो अब तक सर्वाधिक आंकड़ा है।

वहीं 2024-25 में पूरे दुर्ग जिले में 65,601 मानसिक रोगियों का इलाज किया गया। धामधा और निकुम ब्लॉक में सबसे अधिक मानसिक रोगी मिले। धामधा में कुल 15,346 और निकुम में 14,930 रोगियों का इलाज हुआ। ये आंकड़े जिला अस्पताल की ओपीडी से अधिक हैं जो बताते हैं कि ग्रामीण क्षेत्रों के मानसिक रोगी बड़ी संख्या में पीएमसी और सीएमसी पहुंच रहे हैं।

मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरुकता कार्यक्रमों में अहम भूमिका निभाने वाले जामोर्या के अनुसार, संवेदना कार्यक्रम के तहत वृद्धाश्रमों, बाल संप्रेक्षण गृह और केंद्रीय कारागार जैसे स्थानों पर जागरुकता कार्यक्रम किए गए।

साथ ही सीएचसी स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य शिविर, कार्यस्थल पर तनाव प्रबंधन, आत्महत्या रोकथाम प्रशिक्षण, लाइफ स्कूल ट्रेनिंग, धार्मिक नेताओं के साथ मानसिक स्वास्थ्य पर चर्चा जैसे उपायों ने कार्यक्रम को सफल बनाने में मदद की। 2023-24 में संवेदना के तहत ऐसे 45 हस्तक्षेप हुए।

इसके अलावा राज्य द्वारा दिए गए ऐसे 101 कार्यक्रमों में 61 कार्यों को अंजाम दिया गया। इन उपायों से कुल 4,490 लोगों को फायदा पहुंचा। इसी तरह 2024-25 में संवेदना कार्यक्रम के तहत ऐसे 78 हस्तक्षेप हुए, जिनसे 5,295 लोग लाभान्वित हुए। इन कार्यक्रमों से वरिष्ठ नागरिकों, नाबालिग बच्चों, कैदियों, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता एवं मितानिन, धार्मिक नेताओं, छात्रों, शिक्षकों और ऑफिसकर्मियों को सीधा फायदा पहुंचा।

वर्तमान में जीएसटी कमिश्नर के पद पर तैनात पुष्पेंद्र कुमार मीणा ने संवेदना कार्यक्रम के बारे में बताया कि यह बहुत बड़ी एक्सरसाइज थी। सर्वेक्षण का काम तीन से चार महीने तक चला था। पूरे फील्ड स्टाफ को हमने इसमें लगाया। साथ ही प्रशासनिक अधिकारी भी शामिल किए।

छत्तीसगढ़ में मानसिक रोग

दुर्ग सहित पूरे छत्तीसगढ़ और कई राज्यों के मानसिक रोगी दुर्ग से सटे राजनंदगांव के देवादा चौक में स्थित सेंट्रल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेस (सिमहंस) पहुंचते हैं। सिमहंस के निदेशक प्रमोद गुप्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पूरे छत्तीसगढ़ में मानसिक रोगियों की संख्या साल दर साल बढ़ रही है।

उनकी ओपीडी के आंकड़ों के अनुसार, अप्रैल 2024 से मार्च 2025 के बीच हर महीने औसतन 1,860 और साल में कुल 22,315 मानसिक रोगी इलाज के लिए पहुंचे। 2022-23 में ओपीडी में आने वाले रोगियों की औसत संख्या 1,582 और सालाना आंकड़ा 18,980 था। प्रमोद गुप्ता के अनुसार, कोविड काल के बाद मानसिक रोगियों की संख्या में 41 प्रतिशत की इजाफा हुआ है। उनका मानना है कि कोविड के बाद जिन लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों को खाेया है, उनमें मानसिक विकार पैदा हुए हैं।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएमएचएस) 2016 के अनुसार, छत्तीसगढ़ में मानसिक विकारों की व्यापकता राष्ट्रीय औसत से अधिक है। अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि छत्तीसगढ़ की 11.7 प्रतिशत जनसंख्या किसी न किसी प्रकार के मानसिक विकार से ग्रसित है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आंकड़ा 10.6 प्रतिशत है।

प्रमोद गुप्ता मानते हैं कि मानसिक विकारों का मौजूदा आंकड़ा इससे काफी ज्यादा है। गुप्ता ने बालोद जिले के 12 गांवों में 3,150 लोगों का सर्वेक्षण किया और पाया कि हर 1,000 में से 264 यानी 26.4 प्रतिशत लोगों को मानसिक विकार थे।

यह अध्ययन इंटरनेशनल जर्नल ऑफ सोशल साइंस में 2018 में प्रकाशित हुआ था। गुप्ता ने यह स्पष्ट किया कि सामाजिक-आर्थिक असमानताएं, मादक पदार्थों का दुरुपयोग (विशेषकर शराब और भांग), जागरुकता की कमी और सामाजिक वर्जनाएं इस मानसिक स्वास्थ्य संकट के प्रमुख कारण हैं।

जुलाई 2025 में साइकायट्री रिचर्स में प्रकाशित “टेक्नोलॉजी ड्रिवेन इनोवेटिव मॉडल फॉर इंटीग्रेटिंग मेंटल हेल्थकेयर इनटु प्राइमरी केयर : एंजापल फ्राॅम छत्तीसगढ़, इंडिया” अध्ययन में हरिहर सुचंद्र व अन्य कहा है कि अगस्त 2019 से जनवरी 2024 के बीच छत्तीसगढ़ कम्यूनिटी मेंटल हेल्थ केयर टेली मॉनिटरिंग प्रोग्राम (चैंप) और टेली मॉनिटरिंग फॉर रूरल हेल्थ ऑर्गनाइजर्स ऑफ छत्तीसगढ़ (टोरेंट) कार्यक्रमों के तहत 11,000 से अधिक स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षण दिया गया।

इस अवधि के दौरान, सामुदायिक और ग्रामीण स्वास्थ्य आर्गनाइजरों ने 11,69,520 लोगों की स्क्रीनिंग की। इनमें से 1,05,070 व्यक्तियों (लगभग 9 प्रतिशत) की स्क्रीनिंग सकारात्मक पाई गई और उन्हें आगे के मूल्यांकन के लिए भेजा गया। प्राथमिक देखभाल चिकित्सकों ने 10,02,136 व्यक्तियों का निदान और उपचार किया। इन प्रयासों के फलस्वरूप राज्य भर में एक विकेन्द्रीकृत, पूर्णत: मानसिक स्वास्थ्य देखभाल वितरण नेटवर्क की स्थापना हुई।

अध्ययन के अनुसार, 3.22 करोड़ से अधिक की जनसंख्या वाले छत्तीसगढ़ को मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का भारी बोझ उठाना पड़ रहा है। यहां मानसिक विकारों की आजीवन व्यापकता 14.06 प्रतिशत है, जबकि उपचार में अंतर (ट्रीटमेंट गैप) 88.6 प्रतिशत है। छत्तीसगढ़ के कोंडागांव और दुर्ग में शुरू हुआ संवेदना कार्यक्रम इस खाई को पाटने का काम कर रहा है।

पुष्पेंद्र कुमार मीणा कहते हैं, “अक्सर देखा जाता है कि किसी अधिकारी की पहल उसके तबादले के बाद सुस्त पड़ जाती है लेकिन दुर्ग और कोंडागांव में स्वास्थ्य कर्मी अब भी इस काम को सफलतापूर्वक चला रहे हैं और अच्छे नतीजे मिल रहे हैं। जब स्वास्थ्य कमिर्यों ने अपनी आंखों से हालात बदलते हुए देखा तो उन्हें अपने काम में गर्व महसूस हुआ। यह गर्व उन्हें लगातार प्रेरित कर रहा है।”