हर रोज रात 8 बजे जब ओडिशा के मलकानगिरि जिले के डोगिगुडा गांव के लोग सोने की तैयारी कर रहे होते हैं, तो एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा) के तौर पर काम करने वाली सीमा हालदार के लिए ठीक यही वक्त गांव का चक्कर लगाने का होता है। वे एक घर से दूसरे घर का दौरा कर एक मशीन से खास तरह की आवाज निकालती हैं। ये आवाज लोगों के लिए एक संदेश है कि सोने से पहले अनिवार्य तौर पर मच्छरदानी लगानी है।
हालदार ये काम पिछले सात महीने से कर रही हैं। वे कहती हैं, “मुझे इस बात की खुशी है कि मेरी कोशिशें रंग ला रही है। पहले इस गांव में हर महीने मलेरिया के कम से कम सात मामले सामने आते थे, लेकिन अभी एक भी मामला सामने नहीं आ रहा है क्योंकि लोग मच्छरदानी का इस्तेमाल कर रहे हैं।”
कोविड-19 महामारी के कारण लागू हुए तमाम प्रतिबंधों के बावजूद मलेरिया के मामलों में देश के सबसे बुरी तरह प्रभावित जिलों में एक मलकानगिरि मलेरिया मुक्त जिला बनने के करीब है। हालांकि, पिछले चार सालों से इस जिले में मलेरिया के मामलों में कमी आ रही है। लेकिन इस साल जुलाई से इसमें तेजी से गिरावट आनी शुरू हुई है। इस साल जुलाई से अक्टूबर के बीच मलेरिया के मामलों में इसी अवधि में पिछले साल के मुकाबले 63.18 प्रतिशत की गिरावट आई है। जिला प्रशासन के मुताबिक, इस साल दिसम्बर तक जिले में मलेरिया का शून्य मामला रहेगा।
मलकानगिरी जिले की चीफ मेडिकल ऑफिसर संध्यारानी होता कहती हैं,“मलेरिया पर काबू करना संभव हो सका है क्योंकि शीर्ष स्तर पर सही प्लानिंग की गई है और सभी विभागों के आपसी सहयोग से जमीनी स्तर पर उस प्लानिंग को अंजाम दिया गया।
मलेरिया हॉटस्पॉट
मलकानगिरि देश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की आबादी 6.1 लाख है, जिनमें से 57.8 प्रतिशत आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती है। आबादी का 61 प्रतिशत हिस्सा गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर करता है। यहां शिशु मृत्यु दर हर 1,000 में 50 है। ओडिशा में शिशु मृत्यु दर 41 और राष्ट्रीय स्तर पर ये दर 32 है। जानकार उच्च शिशु मृत्यु दर के पीछे कुपोषण के अलावा मलेरिया को जिम्मेवार मानते हैं।
लंबे समय से ये जिला मलेरिया का हॉटस्पॉट बना हुआ था। ओडिशा में मलेरिया के कुल जितने मामले सामने आते थे, उनमें से 40 प्रतिशत मामले सिर्फ मलकानगिरि जिले के होते थे। स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि मलकानगिरि की परिस्थितिक (इकोलॉजिकल) स्थितियां जैसे पहाड़ी इलाका, जलजमाव, उच्च नमीयुक्त तापमान और सलाना 1,700 मिलीमीटर बारिश मलेरिया के मच्छरों के पनपने में मदद करते हैं।
नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम के मुताबिक, साल 2014 में अकेले मलकानगिरि में मलेरिया के 18,687 मामले दर्ज किए गए थे, जो साल 2015 में बढ़कर 29,610 पर पहुंच गए थे। वहीं, साल 2016 में 27,000 मामले दर्ज हुए थे। हालांकि, जिला स्वास्थ्य अधिकारियों का कहना है कि असली आंकड़े इससे बहुत ज्यादा रहे होंगे।
प्रशंसनीय प्रयास
साल 2017 में ओडिशा सरकार ने मलकानगिरि, कोरापुट, नवरंगपुर, रायगढ़, कालाहांडी, कंधमाल, गजपति और नोआपाड़ा में “दुर्गम अंचलरे मलेरिया निराकरन” नाम से एक विशेष कार्यक्रम शुरू किया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य बड़े पैमाने पर लोगों की स्क्रीनिंग, मलेरिया पीड़ितों का इलाज, मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए उपाय करना, निगरानी बढ़ाना और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाना था।
जनसवास्थ्य के अनुमान के मुताबिक, कुल आबादी में 10 प्रतिशत लोग बुखार से पीड़ित होते हैं। इस हिसाब से मलकानगिरि की आबादी को देखते हुए 67,000 लोगों की मलेरिया रैपिड डाग्नोस्टिक टेस्ट (आरडीटी) के लिए स्क्रीनिंग होनी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी ने कहा, “लेकिन, हमलोग हर साल औसतन 1,60,000 लोगों की जांच कर रहे हैं।” आंगनवाड़ी (चाइल्ड डे केयर सेंटर) और आशा कार्यकर्ताओं को निगरानी और दवाइयां तथा औषधीय मच्छरदानी जिसे इलिंस भी कहा जाता है, के वितरण में लगाया गया था।
इस पहल के परिणाम अब सामने आने लगे हैं। लेकिन, एक अवरोध था। इस साल पहले तीन महीनों में अचानक मलेरिया के मामलों में तेजी से बढ़ोतरी हो गई। इन तीन महीनों में 3,589 मामले सामने आए, जबकि पिछले साल इसी अवधि में केवल 1,582 मामले दर्ज किए गए थे। मगर प्रशासन चौकन्ना था। मलेरिया के मामलों में बढ़ोतरी आने पर जब डोर-टू-डोर सर्वेक्षण किया गया, तो पता चला कि केवल 34 प्रतिशत लोग ही इस विशेष मच्छरदानी का इस्तेमाल कर रहे थे। एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता आशालता विश्वास कहती हैं, सर्वे में हमने पाया कि ज्यादातर लोग मच्छरदानी का इस्तेमाल खेतों में मछलियां पकड़ने में कर रहे थे।
इसके बाद जिला प्रशासन ने अपनी रणनीति में बदलाव किया और “जीरो मलेरिया” अभियान लांच किया। इस अभियान को और प्रभावी बनाने के लिए स्वास्थ्य व परिवार कल्याण, महिला व शिशु विभाग, राजस्व, वन और कृषि विभाग को भी शामिल किया गया। आशा व आंगनवाड़ी वर्कर, शिक्षक और वन कर्मचारियों को डोर-टू-डोर सर्वे में शामिल किया गया, ताकि ये पता लगा जा सके कि लोग मच्छरदानी का इस्तेमाल और मच्छरों के पनपने वाली जगहों को नष्ट कर रहे हैं या नहीं। विश्वास बताती हैं, “इस रणनीति से दो तरह का फायदा हुआ। एक तो मलेरिया पर नियंत्रण हुआ और दूसरा कोविड-19 से लड़ने में भी मदद मिली। हमने लोगों में ये विश्वास जगाया कि मच्छरदानी से फायदा होता है और लोगों ने सहयोग किया।”
इन प्रयासों से जून महीने तक 84 प्रतिशत लोग मच्छरदानी का प्रयोग करने लगे और इससे मलेरिया के मामलों में बेतहाशा गिरावट आई। अधिकारियों ने बताया कि अभी अगम्य क्षेत्रों में रहने वाले कमोबेश सभी लोग मच्छरदानी का इस्तेमाल करते हैं। गांव कल्याण समिति की तरफ से नियमित तौर पर बैठक आयोजित की जाती है, जिसमें मच्छरदानी के इस्तेमाल को लेकर अलर्ट किया जाता है। डीडीटी का छिड़काव, मलेरिया टेस्ट और झाड़ियों की सफाई अब न्यू नॉर्मल बन गया है।
बतरियातला गांव की स्थानीय निवासी निलाखिला कहती हैं, “एंटी-मलेरिया अभियान के कारण हमारा गांव मलेरियामुक्त हो गया है। पिछले कुछ महीनों में मलेरिया का एक भी मामला नहीं आया।” उन्होंने आगे कहा, “ये बहुत जरूरी है कि ये गतिविधियां व निगरानी जारी रहनी चाहिए ताकि मलकानगिरि देश के लिए एक ऐसा मॉडल बन जाये, जो मलरिया के हॉटस्पॉट से ‘जीरो मलेरिया’ जिला बन गया।”