स्वास्थ्य

जीनोम सीक्वेंसिंग में आया सामने, महामारी को बढ़ा सकते हैं कोरोनोवायरस के नए वैरिएंट

जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चला है कि कोरोनोवायरस के नए वेरिएंट की उपस्थिति के चलते संक्रमण के मामले में वृद्धि हो सकती है

Lalit Maurya

सार्स-कोव-2 वायरस जो कोविड-19 महामारी के लिए जिम्मेवार है। उसके हजारों नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चला है कि कोरोनोवायरस के नए वेरिएंट की उपस्थिति के चलते संक्रमण के मामले में वृद्धि हो सकती है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया द्वारा किए एक नए शोध में सामने आई है जोकि जर्नल साइंटिफिक रिपोर्टस में प्रकाशित हुआ है।

यह जानकारी इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में भारतीय सार्स कोव-2 जीनोमिक्स कंसोर्टियम (आईएनएसएसीओजी) द्वारा भारत में कोविड-19 के नमूनों की जीनोम सीक्वेंसिंग से पता चला था कि भारत में कोरोना वायरस के 771 चिंताजनक और एक नए तरह का वैरिएंट भी मौजूद है। इस जीनोम सीक्वेंसिंग में ब्रिटेन के वायरस बी.1.1.7 के 736 पॉजिटिव नमूने, दक्षिण अफ्रीकी वायरस लिनिएज (बी.1.351) के 34 पॉजिटिव नमूने और ब्राजील लिनिएज (पी.1) वायरस का एक नया मामला सामने आया था।

गौरतलब है कि पिछले कुछ समय में भारत में कोरोना के मामलों में भी तेजी से वृद्धि हो रही है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि क्या इन नए वैरिएंट का भारत में मिलना और मामलों का बढ़ना बस एक संयोग है या इनके पीछे इन नए वैरिएंट का हाथ है। जिसका जवाब शायद इस नए शोध से मिल सकता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफ़ोर्निया में प्रोफेसर और इस शोध से जुड़े बार्ट वीमर के अनुसार जैसे ही वैरिएंट उभरता है, इसका मतलब है कि आप नए प्रकोप का सामना करने जा रहे हैं। जीनोमिक्स के साथ क्लासिकल महामारी विज्ञान का संगम एक उपकरण प्रदान करता है जिसका उपयोग महामारी के बारे में भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है। फिर चाहे वो कोरोनावायरस हो या इन्फ्लूएंजा या कुछ नए रोगजनक हो।

हालांकि इसमें सिर्फ 15 जीन हैं इसके बावजूद सार्स-कोव-2 वायरस लगातार म्युटेट हो रहा है। हालांकि इन परिवर्तनों में बहुत कम ही अंतर होता है। लेकिन इससे कभी-कभी वायरस बहुत ज्यादा और कभी बहुत कम भी फैल सकता है। 

क्या कुछ निकलकर आया अध्ययन में सामने 

इस शोध में शोधकर्ताओं ने शुरुवात में सार्स-कोव-2 के 150 उपभेदों के जीनोम का विश्लेषण किया था, जो ज्यादातर 1 मार्च, 2020 से पहले एशिया में फैले थे। साथ ही उन्होंने इनकी एपिडेमियोलॉजी और फैलने का भी विश्लेषण किया था। उन्होंने रोगजनक जीनोम की पहचान के लिए इससे जुड़ी सभी जानकारी को एक मीट्रिक जेएनआई में डालकर विश्लेषित किया था। जिससे पता चला है कि जैसे ही इनमें आनुवांशिक भिन्नता आई थी उसके तुरंत बाद मामले में भी तेजी से वृद्धि हुई थी। उदाहरण  के लिए फरवरी के अंत में दक्षिण कोरिया में और सिंगापुर में, हालांकि वायरस में आई भिन्नता छोटे प्रकोप से जुड़ी थी जिसे स्वास्थ्य अधिकारी जल्दी से नियंत्रण में लाने में सक्षम थे।

शोधकर्तओं ने फरवरी से अप्रैल 2020 के बीच यूके से एकत्र किए वायरस के करीब 20,000 नमूनों का जीनोम सीक्वेंसिंग किया था और उन्हें मामलों से सम्बन्धी आंकड़ों के साथ जोड़कर देखा था। उन्हें पता चला कि मामों की संख्या में वृद्धि के साथ जेएनआई में परिवर्तन के स्कोर के साथ मामलों की संख्या भी बढ़ी थी।

मार्च के अंत में जब ब्रिटिश सरकार ने लॉकडाउन कर दिया था तो नए मामलों का बढ़ना रुक गया था, लेकिन इसके बावजूद जेएनआई स्कोर में वृद्धि हुई थी। इससे पता चलता है कि वायरस के  तेजी से विकसित होने की स्थिति में बीमारी को फैलने से रोकने के लिए लोगों को इकठ्ठा होने से रोकना, मास्क का उपयोग और सामाजिक दूरी जैसे उपाय काफी प्रभावी हैं।

साथ ही यह 'सुपरस्प्रेडर' की घटनाओं को समझाने में भी मदद कर सकता है। जहां सावधानी में ढील दिए जाने पर बड़ी संख्या में लोग एक ही व्यक्ति और घटना के चलते संक्रमित हो जाते हैं। वीमर को उम्मीद है कि स्वास्थ्य अधिकारी वायरस की भिन्नता को मापने और इसे स्थानीय स्तर पर फैलने से जोड़ने का दृष्टिकोण अपनाएंगे। इस तरह से नए प्रकोप के आने से बहुत पहले ही प्रारंभिक चेतावनी प्राप्त कर सकते हैं।