मुजफ्फरपुर में गॉल ब्लैडर कैंसर खतरनाक होता जा रहा, फोटो : सत्यम कुमार झा 
स्वास्थ्य

मुजफ्फरपुर में गॉल ब्लैडर कैंसर बना जानलेवा संकट, पीबीसीआर डेटा में सर्वाइवल दर शून्य

2018 में दर्ज 40 मामलों में 85 फीसदी मौत पहले ही वर्ष में हो गई

Satyam Kumar

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के मथैया मोतीपुर गांव में रहने वाली 60 वर्षीय सुमित्रा देवी एक साधारण ग्रामीण महिला थीं। उनके बेटे प्रमोद कुमार पासवान बताते हैं कि "मां को अचानक पेट में तेज दर्द हुआ। हमने सोचा कि यह सामान्य गैस या अपच की समस्या है, लेकिन दर्द बढ़ता गया। हम उन्हें मुजफ्फरपुर के एक निजी अस्पताल ले गए। वहा़ं डॉक्टर ने जांच की और कहा कि पित्त की थैली (गॉलब्लैडर) में पथरी हो गई है, ऑपरेशन करना पड़ेगा। पहले उन्होंने लैप्रोस्कोपिक (मशीन से) ऑपरेशन का वादा किया, लेकिन हुआ नहीं, फिर ओपन सर्जरी की।"

ऑपरेशन के बाद सुमित्रा देवी की हालत और बिगड़ गई। प्रमोद याद करते हैं, "डॉक्टर ने कहा कि इन्फेक्शन हो गया है। पित्त की थैली में इन्फेक्शन होने पर बहुत मुश्किल हो जाती है। हम वहां करीब 12 दिन रहे, लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ। फिर रेफर करके पटना के एक बड़े निजी अस्पताल में ले गए। वहां जांच से पता चला कि शायद कैंसर हो गया है। 15 दिन रखा, रिपोर्ट कन्फर्म हुई – गॉलब्लैडर कैंसर। फिर वाराणसी दिखाया, वहां डॉक्टर ने साफ कहा कि अब ऑपरेशन नहीं हो सकता, स्टेज बहुत एडवांस्ड है। पता चलने के सिर्फ तीन महीने के अंदर मां की मौत हो गई।"

प्रमोद की आवाज में दर्द झलकता है, "हमने सोचा निजी अस्पताल में जल्दी ठीक हो जाएंगी, लेकिन न ठीक हुईं और करीब 6 लाख रुपये भी लग गए।" सुमित्रा देवी की कहानी मुजफ्फरपुर के ग्रामीण इलाकों में हजारों महिलाओं की हकीकत है, जहां पथरी का इलाज शुरू होता है, लेकिन देर से पता चलता है कि वह गॉलब्लैडर कैंसर था।

मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर (टीएमसी) द्वारा स्थापित बिहार की पहली पॉपुलेशन-बेस्ड कैंसर रजिस्ट्री (पीबीसीआर) ने 22 अगस्त 2025 को अपनी रिपोर्ट जारी की, जो ईकैंसर जर्नल (2025) में प्रकाशित हुई। यह रिपोर्ट 2018-2021 के बीच मुजफ्फरपुर के पांच ब्लॉक (कांटी, मोतीपुर, मुरौल, मुसहरी, सकरा) में कैंसर के बोझ पर आधारित है। कुल आबादी करीब 20 लाख, जिसमें 78.4 फीसदी ग्रामीण है। 2018-2021 में 2,916 कैंसर मामले दर्ज हुए – पुरुष 1,436 (49.2%), महिलाएं 1,480 (50.7%)। मृत्यु के 2,076 मामले।

रजिस्ट्री ने जो सबसे चौंकाने वाला नतीजा दिया, वह था शहरी-ग्रामीण अंतर। आमतौर पर भारत में शहरी क्षेत्रों में कैंसर ज्यादा होता है, लेकिन मुजफ्फरपुर में ठीक उल्टा हुआ। कुल मिलाकर शहरी क्षेत्रों में दर ग्रामीण से 40-60% ज्यादा थी, लेकिन कुछ कैंसर ग्रामीण क्षेत्रों में खतरनाक रूप से ज्यादा थे।

रिपोर्ट में गॉलब्लैडर कैंसर ( जीबीसी) पर विशेष फोकस है। महिलाओं में यह तीसरा प्रमुख कैंसर है। महिलाओं में इसकी दर एक लाख आबादी पर 5.2 मामले है। पुरुषों में यह चौथे नंबर पर है, दर 1.9 प्रति लाख। खास बात यह है कि यह बीमारी महिलाओं को पुरुषों से दोगुने से भी ज्यादा प्रभावित करती है – यह ट्रेंड पूरे गंगा क्षेत्र में लगातार देखा जा रहा है।

2018 के जीबीसी मामलों (लगभग40केस) का 2023 तक फॉलो-अप में 3-वर्षीय और 5-वर्षीय रिलेटिव सर्वाइवल (बचने का दर) जीरो फीसदी रहा। रिपोर्ट में स्पष्ट उल्लेख है किलगभग 85 फीसदी मरीज डायग्नोसिस के पहले साल में ही मर गए। यह भारत के किसी पीबीसीआर में सबसे खराब सर्वाइवल दरों में से एक है।सुमित्रा देवी की तरह ज्यादातर मामले एडवांस्ड स्टेज में पहुंचते हैं। रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि कई मामले दर्ज नहीं हो पाते (अंडर-रिपोर्टिंग)। करीब 22.8 फीसदी मामलों की जानकारी सिर्फ परिवार वालों से बात करके (वर्बल ऑटोप्सी) मिली, क्योंकि मेडिकल रिकॉर्ड नहीं थे या परिवार ने छिपाया।

गॉलब्लैडर कैंसर महिलाओं में तीसरा प्रमुख कैंसर है,जो उत्तर भारत में आम है।गॉलब्लैडर कैंसर (जीबीसी) पित्ताशय की दीवारों से शुरू होने वाला एक दुर्लभ लेकिन अत्यंत घातक कैंसर है। पित्ताशय लीवर के नीचे स्थित एक छोटा अंग है जो पित्त (बाइल) को स्टोर करता है, जो वसा पाचन में मदद करता है। जीबीसी ज्यादातर महिलाओं को प्रभावित करता है, और भारत में खासकर गंगा बेसिन (उत्तर भारत: बिहार, यूपी, पश्चिम बंगाल) में यह एक महामारी का रूप ले चुका है। ग्लोबोकैन 2022 के अनुसार, भारत में जीबीसी के नए मामले सालाना 21,780से अधिक रिपोर्ट किए गए।

डॉ. नरेश गुप्ता, जो होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र के प्रोफेसर और मेडिसिन विशेषज्ञ हैं, कहते हैं कि "गॉल ब्लैडर कैंसर उत्तर भारत की एक समस्या है। इसके बारे में विस्तार से बात करते हुए कहते हैं कि एक तो यह कैंसर एडवांस स्टेज पर डायग्नोस होता है, दूसरी बात यह है कि यह बहुत जल्दी से फैल जाता है और कई बार पता भी नहीं लगता। जब तक मरीज हमारे पास आते हैं तब तक यह फैल चुका होता है। इसका सबसे अच्छा तरीका है तो रिमूवल होता है ट्यूमर का लेकिन जब तक हमारे पास आता है तब तक ऐसे स्टेज में नहीं होता है कि ऑपरेशन हो सके। उनको सिर्फ कीमोथेरेपी का ही सहारा रहता है। कीमोथेरेपी के बावजूद भी इसका सर्वाइवल ज्यादा नहीं है। इसीलिए इस कैंसर में सर्वाइवल बहुत कम होता है।"

डॉ. गुप्ता आगे बताते हैं, "विशेषकर यह कैंसर महिलाओं में ज्यादा होता है इसके लक्षण है कि पेट में हल्का दर्द होता है फिर ठीक हो जाता है फिर वह सोचते हैं कि पेट में गैस की बीमारी है। ज्यादातर लोग इसे नजरंदाज कर देते हैं, या ज्यादातर जिन्हें पथरी की बीमारी होती है उन्हें यह कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है। ज्यादातर लोग एडवांस स्टेज में ही आते हैं इसीलिए इसमें सर्वाइवल रेट बहुत कम है।"

डॉ. शरविका अकोतकर, जो होमी भाभा कैंसर अस्पताल एवं अनुसंधान केंद्र (एचबीसीएच एंड आरसी), मुजफ्फरपुर में कंसल्टेंट सर्जन और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जिकल ऑन्कोलॉजिस्ट हैं, गॉलब्लैडर कैंसर के बढ़ते मामलों पर अपनी विशेषज्ञ राय देती हैं, वे कहती हैं"गॉलब्लैडर कैंसर के मामलों का वितरण बिल्कुल असमान है। बिहार में पटना, वैशाली, सीतामढ़ी, मुजफ्फरपुर और समस्तीपुर जैसे जिले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। ये सभी जिले गंगा नदी के किनारे या उसके बाढ़ प्रभावित मैदानी इलाकों में स्थित हैं। कई अध्ययनों से पता चलता है कि गंगा की मुख्य धारा के साथ वाले जिलों में इस कैंसर का खतरा सामान्य से 1.7 गुना ज्यादा होता है। यह क्लस्टरिंग कोई संयोग नहीं है, यह स्पष्ट रूप से पर्यावरणीय कारकों से जुड़ी हुई है।"

डॉ. अकोतकर आगे बताती हैं, "भूजल में आर्सेनिक की मिलावट इस कैंसर का सबसे बड़ा संदिग्ध कारण है। गंगा के मैदानी इलाकों में उथले कुओं और हैंडपंप का पानी अक्सर आर्सेनिक से दूषित होता है। बिहार के कई जिलों – जैसे भोजपुर, पटना, वैशाली और बेगूसराय में आर्सेनिक का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से काफी ज्यादा पाया गया है। लंबे समय तक इस दूषित पानी का सेवन करने से आर्सेनिक शरीर में जमा होता जाता है और गॉलब्लैडर में कैंसर का खतरा बढ़ाता है। अध्ययनों में साफ दिखा है कि उच्च आर्सेनिक वाले जिलों में गॉलब्लैडर कैंसर के मामले 1.45 गुना ज्यादा होते हैं।"

वे कहती हैं, "बिहार में सरसों का तेल मुख्य रूप से खाना पकाने में इस्तेमाल होता है। इसके लंबे समय तक इस्तेमाल से गॉलब्लैडर की अंदरूनी दीवार में लगातार जलन होती रहती है, जो कैंसर का खतरा बढ़ाती है। कभी-कभी तेल में अर्गेमोन (एक जहरीला तेल) की मिलावट भी हो जाती है, जो और ज्यादा नुकसान पहुंचाती है।

लेकिन ये कारक अकेले नहीं काम करते। जहां पथरी की समस्या आम है, आहार में चर्बी और तले हुए खाने की मात्रा ज्यादा है, सफाई की व्यवस्था खराब है और टाइफाइड जैसे संक्रमण बार-बार होते रहते हैं, वहां गॉलब्लैडर लगातार सूजन (इन्फ्लेमेशन) की स्थिति में रहता है। खासकर टाइफाइड का पुराना संक्रमण (क्रॉनिक कैरियर स्टेट) गॉलब्लैडर कैंसर का खतरा कई गुना बढ़ा देता है। दूषित पानी, खाने की आदतें और संक्रमण मिलकर एक ऐसी स्थिति पैदा करते हैं जहां कैंसर आसानी से पनप जाता है।"

डॉ. अकोतकर निष्कर्ष निकालती हैं, "ये सभी कारक मिलकर बिहार के गंगा मैदानी इलाकों में गॉलब्लैडर कैंसर को एक स्थानीय महामारी का रूप दे रहे हैं। इसे रोकने का एकमात्र रास्ता है – लोगों में जागरूकता बढ़ाना, साफ और सुरक्षित पीने का पानी उपलब्ध कराना, और शुरुआती स्टेज में ही अल्ट्रासाउंड जैसी साधारण जांच को बढ़ावा देना। अगर हम अभी सजग नहीं हुए, तो यह समस्या और विकराल हो जाएगी।"

संक्षेप में, मुजफ्फरपुर में गॉलब्लैडर कैंसर खासकर महिलाओं के लिए बड़ा खतरा है। देर से पता चलना और इलाज की कमी से यह बहुत घातक साबित हो रहा है। रिपोर्ट कहती है किजागरूकता और बेहतर सुविधाओं की सख्त जरूरत है।