स्वास्थ्य

कोरोना से पहले आर्थिक तंगी से मरने लगे किसान

कोरोना के विस्तार से उपजे हालात के कारण मार्च में प्राकृतिक आपदा के मारे सारे किसानों की तकरीबन यही स्थिति है

Malick Asgher Hashmi

कोविड-19 का साइड इफेक्ट दिखने लगा है। हरियाणा के पलवल जिले के आली ब्राह्रमण गांव के 42 वर्षीय किसान दुर्गाराम ने आर्थिक तंगी से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। उन्होंने खुद की तीन एकड़ और पट्टे की सात एकड़ जमीन लेकर रबी फसल लगाई थी। खेती के लिए उन्होंने गांव के दो साहूकारों से करीब सवा लाख रुपए का कर्ज भारी ब्याज पर लिया था। प्रदेश सरकार और मौसम विभाग ने रबी की फसल के लिए इस बार माहौल अनुकूल बताया था। इससे दुर्गाराम को उम्मीद बंधी थी कि अच्छी फसल से अच्छा मुनाफा होने पर वह कर्ज  की अदायगी कर देंगे।

मार्च की 1 से 6 और फिर 13,14,15 और 16 तारीख को तेज हवा के साथ हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि ने दुर्गाराम के सारे सपने धूल-धूसरित कर दिए। इस प्राकृतिक आपदा ने उसकी सारी फसल नष्ट कर दी। दुर्गाराम की पत्नी कमला कहती हैं कि उनके पति बेलदारी का काम करते थे। अच्छी फसल होने की उम्मीद में उन्होंने रबी की फसल लगाई थी। मगर फसल बर्बाद होने के बाद जब समय पर गिरदावरी नहीं हुई और नष्ट फसल का काफी भागदौड़ के बावजूद मुआवजा नहीं मिला तो वह परेशान रहने लगे और 23 मार्च को खेत पर जाकर जहर खा लिया। दुर्गाराम की चार बेटियां हैं जिनकी शादी हो चुकी है। एक बेटा है जोे बारहवीं का छात्र है। दिव्यांग भाई नानकचंद भी दुर्गाराम पर ही आश्रित है। अब परिवार के सारे सदस्य इस बात को लेकर परेशान हैं कि आगे जीवन-यापन कैसे होगा।

कोरोना के विस्तार से उपजे हालात के कारण मार्च में प्राकृतिक आपदा के मारे सारे किसानों की तकरीबन यही स्थिति है। आपदा प्रबंधन विभाग की ओर से 9 मार्च को हिसार, गुरुग्राम, रोहतक, भिवानी, महेंद्रगढ़ और नारनौल के जिला प्रशासन को पत्र भेजकर तुरंत गिरदावरी के आदेश दिए गए थे। प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से भी इसी तरह के आदेश आने पर हरियाणा के मुख्यमंत्री ने मैनुएल के साथ इस बार ड्रोन से गिरदावरी कराने का निर्णय लिया था। तब इन जिलों के 52 गांवों में फसलें 25 प्रतिशत से अधिक नष्ट होने की जानकारी सरकार के पास थी। अभी गिरावरी कराने की तैयारी हो ही रही थी कि 15 मार्च के आसपास प्रदेश में फिर जोरदार बारिश और ओलावृष्टि हो गई। इसके चलते पलवल और मेवात सहित प्रदेश के बाकी जिलों की भी हजारों एकड़ में लगी सरसों एवं गेहूं की फसलें नष्ट हो गईं।

मेवात के रशीद अहमद एडवोकेट, बीसरू गांव के तौफीक खां, हिंगनपुर के आदिल आदि ने दावा किया है कि उनके जिले में सरसों की फसल को तकरीबन 60 फीसदी नुकसान पहुंचा है। मेवात और रेवाड़ी जिले सरसों की पैदावार के लिए देशभर में पहचान रखते हैं। प्रदेश सरकार ने इस बार सरसों पैदावार का लक्ष्य 6.12 लाख हेक्टेयर से बढ़ाकर 6.36 लाख हेक्टेयर किया था। मार्च के प्राकृतिक आपदा से इस लक्ष्य को भी भारी झटका लगा है।

अखिल भारतीय किसान सभा के भिवानी जिलाध्यक्ष डॉक्टर बलबीर सिंह ठाकन कहते हैं कि कोरोना के कारण सरकार की सरगर्मी बढ़ने से पहले जिलों में प्रदर्शन कर तीन दिनों में किसानों से आवेदन लेने, सात दिनों में सर्वे करा कर तत्काल 30,000 रुपए प्रति एकड़ के हिसाब से नुकसान की भरपाई की मांग की थी। तब सरकार ने एक नहीं सुनी। अब ऐसे हालात पैदा हो गए हैं कि कोई बताने को भी तैयार नहीं कि बर्बाद फसलों की गिरदावरी होगी भी या नहीं अथवा होगी तो कब। 15 अप्रैल तक लॉकडाउन है। उसके बाद भी स्थिति सामान्य होगी, इसकी कोई गारंटी नहीं। इस वक्त तमाम सरकारी महकमा के लोग आपातकालीन सेवाओं में लगे हैं।

मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट्टर ने 28 मार्च को किसानों के लिए आर्थिक पैकेज के ऐलान की बात कही है। प्रदेश सरकार ने इस बार कृषि एवं किसान कल्याण के लिए 6481.48 करोड़ रुपए का प्रावधान रखा है। विपक्ष के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा कहते हैं कि सरकार के लिए यही वक्त है किसानों की दिल खोल कर मदद करने की। लॉकडाउन के चलते सेक्टरों में लगने वाली तमाम सब्जी मंडियां और किसान बाजार बंद कर दिए गए हैं। यहां किसान अपने उत्पाद सीधे ग्राहकों को बेचते थे, जिससे उन्हें खासा मुनाफा होता था। अब सरकार ऐसे किसानों की मदद को आगे आए।