स्वास्थ्य

कामकाज के दौरान आंखों की देखभाल जरूरी, रोजगार के चलते 1.3 करोड़ लोगों को हैं नजर में दिक्कत

जिन श्रमिकों को दृष्टि सम्बन्धी विकार होते हैं, उन्हें दूसरे कामगारों की तुलना में रोजगार मिलने की सम्भावना 30 फीसदी तक कम होती है

Lalit Maurya

दुनिया भर में करीब 1.3 करोड़ लोग अपने रोजगार के चलते दृष्टि संबंधी समस्याओं से जूझ रहे हैं। इतना ही नहीं हर साल काम के दौरान 35 लाख श्रमिकों को आंखों में चोट का सामना करना पड़ता है। देखा जाए तो यह चोटें कार्यस्थल पर लगने वाली सभी गैर-जानलेवा चोटों का एक फीसदी है।

यह जानकारी अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) और दृष्टिहीनता की रोकथाम के लिए अन्तरराष्ट्रीय एजेंसी (आईएपीबी) द्वारा पांच सितम्बर को जारी नई रिपोर्ट "आई हेल्थ एंड द वर्ल्ड ऑफ वर्क" में सामने आई है। देखा जाए तो आंखे हमारे शरीर का एक बेहद जरूरी हिस्सा है। ऐसे में इसके स्वास्थ्य और सुरक्षा का ख्याल रखना भी बेहद जरूरी है।

रिपोर्ट की मानें तो आंखों का स्वास्थ्य श्रम बाजार को भी काफी हद तक प्रभावित करता है। यही वजह है कि जिन श्रमिकों को दृष्टि सम्बन्धी विकार होते हैं, उनको अन्य कामगारों की तुलना में रोजगार मिलने की सम्भावना 30 फीसदी तक कम होती है। ऐसे में रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कामकाजी लोगों की आंखों की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए कहीं ज्यादा कदम उठाए जाने की जरूरत है।

रिपोर्ट की मानें तो कहीं न कहीं आर्थिक विकास का स्तर भी आंखों से जुड़ी समस्याओं का एक अहम पहलू है। एक तरफ जहां समृद्ध देशों में श्रमिकों की आंखों के बचाव और स्वास्थ्य के लिए बेहतर विकल्प मौजूद हैं वहीं कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में स्वास्थ्य और बचाव से जुड़े साधनों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। यही वजह है कि समृद्ध देशों की तुलना में कमजोर और मध्यम आय वाले देशों में आंखों को होने वाले नुकसान के करीब चार गुणा ज्यादा मामले सामने आते हैं।

इस रिपोर्ट में आईएलओ ने कार्यस्थल पर आंखों सम्बन्धी समस्याओं से जूझ रहे असम के चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों का भी जिक्र किया है। जिनमें ज्यादातर औसतन 47 वर्ष की महिलाएं थी। इन महिला श्रमिकों को देखने में कठिनाई होती थी, लेकिन इसके बावजूद वो चश्मा नहीं पहनती थीं।

गौरतलब है कि चाय बागानों में काम करने वाले श्रमिकों को इस आधार पर मेहनताना दिया जाता है, जितना वो दिन भर में चाय चुनती हैं। अध्ययन से पता चला कि इन श्रमिकों को पास की नजर (प्रेसबायोपिया) और मोतियाबिंद जैसी समस्या थी।

उनके इलाज के बाद श्रमिकों की उत्पादकता में 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। देखा जाए तो यह उदाहरण स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि कैसे कार्यस्थल पर सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों के बीच एक साझा प्रयास श्रमिकों की आंखों की रौशनी को बचा सकता है, और उनके कल्याण में मददगार साबित हो सकता है।

मौजूदा समाधानों से हल की जा सकती हैं नेत्र सम्बन्धी 90 फीसदी समस्याएं

रिपोर्ट के अनुसार चूंकि आंखे भी श्रमिक स्वास्थ्य का एक अभिन्न पहलू हैं, ऐसे में श्रमिकों का कल्याण सुनिश्चित करने के लिए नेत्रों के स्वास्थ्य से जुड़ी वैश्विक, राष्ट्रीय और कार्यस्थल संबंधी साझा पहलों की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि पहले से मौजूद कम लागत वाले समाधानों की मदद से 90 फीसदी से अधिक नेत्र संबंधी समस्याओं से बचा या उन्हें ठीक किया जा सकता है।

अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी जोर दिया है कि श्रमिकों की दृष्टि की रक्षा के लिए व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य (ओएसएच) से जुड़े कार्यक्रम, तीन लक्ष्यों को ध्यान में रखकर तैयार किए जाने चाहिए, इनमें सबसे पहले कार्यस्थल पर विशिष्ट खतरों के सम्पर्क में आने से बचाव; दूसरा श्रमिकों की दृष्टि के मौजूदा स्वास्थ्य की सुरक्षा और तीसरा स्वाभाविक रूप से होने वाली दृष्टिहानि के जोखिम का आंकलन करने के लिए प्रणाली बनाना है।

इन उपायों के साथ-साथ श्रमिकों को उन खतरों से अवगत कराना भी जरूरी है, जिससे उनकी आंखों के स्वास्थ्य को नुकसान हो सकता है। रिपोर्ट में श्रमिकों से उनके नेत्रों के स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रमों और कार्यस्थलों सम्बन्धित उपायों के बारे में भी सलाह लेने की बात कही है। रिपोर्ट में दुनिया भर के नियोक्ताओं से, अपने कर्मचारियों की आंखों के स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने का भी आहवान किया गया है।

इस बारे में आईएलओ में श्रम प्रशासन, निरीक्षण और व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रमुख, जोआकिम पिंटाडो नून्स का कहना है कि अंतराष्ट्रीय श्रम संगठन श्रमिकों के नेत्रों समेत, उनकी सुरक्षा एवं स्वास्थ्य की रक्षा के महत्व पर जोर देता है।"

उनके मुताबिक आंखों के स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता और प्रभावी कार्यान्वयन को प्राथमिकता देकर, यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि श्रमिकों को कामों के लिए सुरक्षित व स्वस्थ माहौल मिल सके। यह उनका बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है। जो असमानताओं को कम करने के साथ उत्पादकता को बढ़ाने में मदगार हो सकता है।