स्वास्थ्य

मिट्टी में दबे जहरीले धातु के कणों को फैला रही है जंगल की आग, बन सकता है बड़ा खतरा

अध्ययन में कहा गया है कि जंगल की आग से बदले क्रोमियम पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए ताकि मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए उत्पन्न होने वाले खतरों को और अधिक अच्छी तरह से सामने लाया जा सके।

Dayanidhi

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, जंगल की आग मिट्टी और पौधों में मौजूद सामान्य धातु को जहरीले कणों में बदल सकती है जो आसानी से हवा में फैल जाते हैं।

अध्ययन में क्रोमियम युक्त मिट्टी और पास की जगहों की तुलना में कुछ अलग तरह की वनस्पति वाले जंगलों में जहां आग लगने के कारण खतरनाक क्रोमियम धातु का उच्च स्तर पाया गया, जिसे हेक्सावलेंट क्रोमियम या क्रोमियम-6 के रूप में जाना जाता है। यह अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है

अध्ययन में मुख्य अध्ययनकर्ता अलंड्रा लोपेज ने कहा, जंगल में आग लगने से क्रोमियम के बदले रूप पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए। इसके अलावा हम अतिरिक्त धातुओं का भी अनुमान लगा सकते हैं, ताकि जंगल की आग से लोगों के स्वास्थ्य के लिए उत्पन्न होने वाले खतरों को अच्छी तरह से उजागर किया जा सके। लोपेज स्टैनफोर्ड डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी में सिस्टम विज्ञान के शोधकर्ता है।

एक छुपा हुआ खतरा

जंगल की आग से निकलने वाले धुएं के गुबार गैसों, कार्बनिक एरोसोल और सूक्ष्म कणों सहित खतरनाक वायु प्रदूषकों को ले जाने के लिए जाने जाते हैं, जो अस्थमादिल के दौरे और शीघ्र मृत्यु का कारण बन सकते हैं।

वैज्ञानिकों और नियामकों ने क्रोमियम जैसी धातुओं से होने वाले नुकसान पर उतना गौर नहीं किया है, जो पश्चिमी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, यूरोप, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका की मिट्टी में आम है। शोधकर्ताओं ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण जंगल की आग अधिक बार लगने और खतरनाक होने की आशंका है। वायुजनित क्रोमियम से अग्निशामकों, नजदीकी निवासियों और अन्य लोगों के स्वास्थ्य को होने वाले खतरों को बेहतर ढंग से समझने की आवश्यकता है।

स्टैनफोर्ड डोएर स्कूल ऑफ सस्टेनेबिलिटी में टेरी हफिंगटन प्रोफेसर, अध्ययनकर्ता स्कॉट फेंडोर्फ ने कहा, गैसों और कणों के जटिल मिश्रण में, जो जंगल की आग धुएं के रूप में उगलती है और धूल के रूप में पीछे छोड़ती है, क्रोमियम जैसी भारी धातुओं को काफी हद तक नजरअंदाज कर दिया जाता है

वैज्ञानिक आधार पर पता लगाने का अवसर 

प्रकृति में, क्रोमियम ज्यादातर त्रिसंयोजक क्रोमियम या क्रोमियम-3 के रूप में जाना जाता है, एक आवश्यक पोषक तत्व है जिसका उपयोग हमारा शरीर ग्लूकोज को तोड़ने के लिए करता है। क्रोमियम-6, जो दूषित पेयजल के माध्यम से सांस लेने या शरीर में प्रवेश करने पर कैंसर के खतरे को बढ़ाता है, अक्सर औद्योगिक प्रक्रियाओं के कारण होता है। क्रोमियम-6 का उच्च स्तर ऐतिहासिक रूप से औद्योगिक अपवाह और अपशिष्ट जल से पर्यावरण में प्रवेश कर चुका है।

यद्यपि प्राकृतिक रासायनिक प्रक्रियाएं इस परिवर्तन को गति प्रदान कर सकती हैं, ऑस्ट्रेलिया के दक्षिणी क्रॉस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में प्रयोगशाला प्रयोगों ने 2019 में साक्ष्य प्रदान किए कि जंगल की आग से गर्म सतह की मिट्टी में क्रोमियम-3 से क्रोमियम-6 भी तेजी से बन सकता है।

उन निष्कर्षों के आधार पर, फेंडोर्फ और लोपेज ने इस सिद्धांत का परीक्षण करना शुरू किया कि जंगल की आग क्रोमियम-6 से दूषित मिट्टी को उजागर कर  सकती है। उन्होंने चार पारिस्थितिक संरक्षित क्षेत्रों में जगहों की पहचान की, जो हाल ही में प्राकृतिक रूप से क्रोमियम धातु से बनी मिट्टी जलकर भारी चट्टानों, जैसे सर्पेन्टाइनाइट में बदल गई।

लोपेज ने संरक्षित क्षेत्रों से मिट्टी एकत्र की और सबसे छोटे कणों को अलग किया, हवा इस मिट्टी को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती है। उन्होंने जले हुए और बिना जले हुए क्षेत्रों की धूल में हेक्सावलेंट क्रोमियम की मात्रा को मापा और स्थानीय आग की गंभीरता और मिट्टी, इससे जुड़े भूविज्ञान और खुले घास के मैदानों से लेकर घने जंगलों तक के पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकारों पर आंकड़े एकत्र किए।

शोधकर्ताओं ने पाया कि ये सभी कारक मिट्टी में क्रोमियम-6 के स्तर को प्रभावित करते हैं। भारी क्रोमियम वाले इलाकों में जहां वनस्पति लंबे समय तक भीषण गर्मी के कारण यहां आग लगने के आसार अधिक होते हैं। विषाक्त क्रोमियम की मात्रा असंतुलित क्षेत्रों की तुलना में लगभग सात गुना अधिक देखी गई, जिससे पता चलता है कि क्रोमियम-6 की भारी मात्रा हवा में फैल सकती है।

खतरों को किस तरह किया जा सकता है कम?

आग लगने से विषाक्त क्रोमियम का सामना शुरू में पास रहने वाले लोगों को करना होगा। आग लगना खत्म होने के बाद भी, स्थानीय लोग  इसकी चपेट में आ सकते हैं क्योंकि तेज हवाएं क्रोमियम युक्त मिट्टी के बारीक कणों को अपने साथ ले जा सकती हैं।

शोधकर्ता फेंडोर्फ ने कहा कि हवा में मौजूद हेक्सावलेंट क्रोमियम में सांस के जरिए शरीर के अंदर जाने के खतरे तब कम हो जाएंगे जब पहली बड़ी बारिश में धातु बहकर जमीन में समा जाएंगे।

फिर भी बारिश आने से पहले, जिसमें कई महीने लग सकते हैं, खासकर जब जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया के कई इलाकों में बार-बार खतरनाक सूखा पड़ता है। जले हुए क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने या पुनर्निर्माण करने के लिए काम करने वाले लोगों के साथ-साथ जले हुए निशानों की जांच करने वाले लोगों के लिए भी खतरा मंडराएगा।

फेंडोर्फ ने कहा, यदि आग लगने के कारण क्रोमियम-6 जलमार्गों या भूजल में बह रहा है तो पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य के लिए होने वाले खतरों को समझने के लिए और अधिक शोध की जरूरत पड़ेगी।

फेंडोर्फ ने बताया कि जंगल की आग से संबंधित विषाक्त क्रोमियम के खतरे को लेकर भविष्य के शोध से सार्वजनिक स्वास्थ्य मार्गदर्शन में मदद मिल सकती है, जैसे जले हुए स्थान पर जाने पर एन95 मास्क पहनने की सिफारिशें करना आदि।

फेंडोर्फ ने कहा, क्रोमियम सबसे अधिक खतरनाक धातुओं में से एक है, हमें यकीन है कि यह एकमात्र धातु नहीं है। उन्होंने उम्मीद जताई कि बाद के अध्ययनों से जंगल की आग से उत्पन्न अतिरिक्त धातु सांस संबंधी खतरों का पता लगाया जा सकेगा।