टीवी, मोबाइल, लैपटॉप जैसे उपकरणों के सामने ज्यादा से ज्यादा समय बिताना, साथ ही खराब जीवनशैली जैसे कारक बच्चों की आंखो के लिए खतरा बन रहे हैं; फोटो: आईस्टॉक 
स्वास्थ्य

निकट दृष्टि दोष से पीड़ित है दुनिया का हर तीसरा बच्चा, स्क्रीन से बढ़ता लगाव बन रहा आफत

Lalit Maurya

क्या आप जानते हैं कि जिस तरह से बच्चों का मोबाइल आदि से लगाव बढ़ रहा है, उसकी वजह से उनकी आंखे कमजोर हो रही हैं। इस बारे में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि आज दुनिया में करीब एक तिहाई बच्चे और किशोर निकट दृष्टि दोष या मायोपिया से पीड़ित हैं। इसकी वजह से बच्चों को दूर की चीजें देखने में कठिनाई हो रही है।

इतना ही नहीं आशंका है कि अगले 26 वर्षों में इस समस्या से जूझ रहे बच्चों की संख्या बढ़कर 74 करोड़ तक पहुंच जाएगी। इस अध्ययन के नतीजे ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थल्मोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि निकटदृष्टि दोष या मायोपिया, आंखों से जुड़ी एक आम समस्या है। इससे पीड़ित व्यक्ति को दूर की चीजे धुंधली दिखाई देती हैं। इस विकार में आंखों के कॉर्निया का आकार बदल जाता है। नतीजन जब रोशनी आंखों में प्रवेश करती है, तो वह रेटिना पर केंद्रित होने के बजाय, रेटिना से थोड़ा आगे केंद्रित हो जाती है। इससे छवि स्पष्ट न होकर धुंधली दिखने लगती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह विकार आमतौर पर बचपन में विकसित होता है और उम्र के साथ स्थिति और बिगड़ती जाती है।

इसकी वजहों पर नजर डालें तो कभी जहां बच्चे खुली हवा में खेला-कूदा करते थे, वो अब अपना ज्यादा से ज्यादा समय बंद कमरों में स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं। बात चाहे खेल-कूद की या पढाई की बच्चों का मोबाइल, टेबलेट, टीवी, कंप्यूटर आदि से लगाव बढ़ रहा है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक कोविड-19 महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन ने स्थिति को और बदतर बना दिया है, क्योंकि इसकी वजह से बच्चे स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं, जबकि उनके बाहर खेलने-कूदने का कम समय कम हो गया हैं।

अपने इस विश्लेषण में शोधकर्ताओं ने 276 अध्ययनों से जुड़े आंकड़ों को शामिल किया है। इनमें 50 देशों के 54 लाख से अधिक प्रतिभागियों को शामिल किया गया था। अध्ययन में शामिल इन बच्चों और किशोरों की आयु पांच से 19 वर्ष के बीच थी। वहीं इनमें से 19.7 लाख निकट दृष्टि दोष से पीड़ित थे।

शोधकर्ताओं के मुताबिक यह विकार सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चिंता बनकर उभर है। खासकर एशिया में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है। इस अध्ययन के जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक एशियाई देशों जैसे जापान, दक्षिण कोरिया में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। जापान में जहां 85 फीसदी बच्चे निकट दृष्टि दोष से पीड़ित हैं, वहीं दक्षिण कोरिया में यह आंकड़ा 73 फीसदी दर्ज किया गया है। इसी तरह चीन और रूस में 40 फीसदी से ज्यादा बच्चे इस विकार से पीड़ित हैं।

तीन दशकों में तीन गुणा हुए मामले

विश्लेषण के मुताबिक 1990 से 2023 के बीच बच्चों में निकटदृष्टि दोष के मामले तीन गुणा बढे हैं। गौरतलब है कि जहां 1990 से 2000 के बीच इनकी दर्ज 24 फीसदी से बढ़कर 2011 से 19 में 30 फीसदी और 2020 से 23 के बीच 36 फीसदी तक पहुंच गई है। ऐसे में आज दुनिया का हर तीसरा बच्चा इस समस्या से जूझ रहा है। अध्ययन में इस बात का भी अंदेशा जताया गया है कि 2050 तक यह समस्या दुनिया के 74 करोड़ बच्चों को अपना शिकार बना सकती है।

आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि किशोरों में निकट दृष्टि दोष की दर छोटे बच्चों की तुलना में अधिक थी, जो 2020-23 में 54 फीसदी तक पहुंच गई। 1990 से 2023 के बीच देखें तो बच्चों में यह वृद्धि किशोरों की तुलना में करीब दोगुनी थी।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि अमीर देशों की तुलना में कमजोर या मध्यम आय वाले देशों में यह समस्या कहीं ज्यादा आम थी। यह दर जापान में जहां सबसे ज्यादा वहीं पैराग्वे में सबसे कम थी।

अध्ययन में इस बात पर भी प्रकाश डाला गया है कि कुछ कारक निकट दृष्टि दोष की उच्च दरों से जुड़े थे, इनमें पूर्वी एशिया में रहना (35 फीसदी), शहरी क्षेत्र (29 फीसदी), महिला होना (34 फीसदी), किशोर होना (47 फीसदी), और माध्यमिक शिक्षा प्राप्त करना जैसे कारक शामिल हैं। 2023 के जो रुझान सामने आए हैं उनके मुताबिक 2050 तक 40 फीसदी बच्चे और किशोर इस समस्या से पीड़ित होंगे।

आपको जानकार हैरानी होगी कि निकट दृष्टि दोष लड़कों और युवाओं की तुलना में बच्चियों और युवा महिलाओं में अधिक होगा। आंकड़ों के मुताबिक 2030 तक, जहां 31 फीसदी लड़के इसका शिकार होंगें। वहीं बच्चियों में इसके प्रसार की दर 33 फीसदी तक पहुंच जाएगी। वहीं 2050 तक 42 फीसदी बच्चियां इससे जूझ रही होंगी।

विश्लेषण से यह भी पता चला है कि छह से 12 वर्ष के बच्चों की तुलना में 13 से 19 वर्ष के किशोरों में यह समस्या कहीं ज्यादा आम होगी। 2050 तक जहां 27.5 फीसदी बच्चे इसका शिकार होंगें। वहीं किशोरों में यह आंकड़ा बढ़कर 52.5 फीसदी तक पहुंच जाएगा।

देखा जाए तो टीवी, मोबाइल, लैपटॉप जैसे उपकरणों के सामने ज्यादा से ज्यादा समय बिताना, खराब जीवनशैली, जेनेटिक कारण और कृत्रिम प्रकाश में अधिक वक्त व्यतीत करना जैसे कारक इसके विकार के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार हैं। इसके लक्षणों की बात करें तो इसमें दूर की चीजें साफ दिखाई न देना, बार-बार पलकें झपकना, आंखे मलना, बहुत नजदीक से पढ़ना या टीवी देखना, आंखों पर दबाव की वजह से सिर दर्द होना।

ऐसे में यदि बच्चों को इस बीमारी से बचाना है तो उनका मोबाइल, लैपटॉप जैसी स्क्रीन देखने का टाइम कम करना होगा, साथ ही उन्हें खुली हवा और प्रकाश में समय बिताना फायदेमंद हो सकता है। साथ ही आंखों की रोशनी बढ़ने के लिए संतुलित आहार और एक्सरसाइज भी जरूरी है।