स्वास्थ्य

न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर से जूझ रहा भारत का हर चौथा बुजुर्ग, क्या होती है इससे दिक्कतें?

रिसर्च के मुताबिक देश के 2.4 करोड़ बुजुर्गों में न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर के हल्के लक्षण हैं, वहीं 99 लाख बुजुर्गों में यह समस्या बेहद गंभीर है

Lalit Maurya

बुढ़ापा अपने साथ स्वास्थ्य से जुड़ी अनगिनत समस्याएं भी साथ लाता है, जो शारीरिक के साथ-साथ मानसिक भी होती हैं। इन्हीं मानसिक समस्याओं को समझने के लिए भारत में किए एक अध्ययन से पता चला है कि भारत का हर चौथा बुजुर्ग न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर से जूझ रहा है। मतलब की देश में करीब 3.4 करोड़ बुजुर्ग इस समस्या से पीड़ित हैं। जो उनकी रोजमर्रा की दिनचर्या को प्रभावित कर रहा है। यह जानकारी भारतीय और अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल प्लोस वन में प्रकाशित हुए हैं।

बता दें कि न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर कोई एक बीमारी न होकर मानसिक समस्याओं का एक समूह है, जिसमें मनोभ्रंश (डिमेंशिया), याददाश्त कमजोर होना, सोचने, समझने, निर्णय लेने और सीखने की क्षमता पर असर पड़ने के साथ-साथ मानसिक रूप से कमजोरी आना होना जैसी समस्याएं शामिल हैं। आमतौर पर इसके लक्षणों में याददाश्त का चले जाना, भाषा के इस्तेमाल और रोजमर्रा के कामों में समस्या के साथ-साथ व्यक्तित्व में बदलाव और दिग्भ्रमित होना शामिल हैं।

इस अध्ययन के मुताबिक भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या करीब 13.8 करोड़ है। मतलब की देश के करीब एक चौथाई बुजुर्ग इस समस्या से पीड़ित हैं। वहीं इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन सांइसेस एंड यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड द्वारा जारी “इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023” के मुताबिक भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक आयु के लोगों की संख्या 14.9 करोड़ है। मतलब कि देश की कुल आबादी का करीब 10.5 फीसदी हिस्सा उम्रदराज है।

अनुमान है कि 2050 तक देश में बुजुर्गों की आबादी बढ़कर 34.7 करोड़ पर पहुंच जाएगी। मतलब की देश की कुल आबादी का 20.8 फीसदी हिस्सा 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का होगा। देखा जाए तो स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार और देखभाल की वजह से लम्बे समय तक जीवित रहने की सम्भावना बढ़ रही है। लेकिन उम्र बढ़ने के साथ मनोभ्रंश और अल्जाइमर जैसी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं।

गौरतलब है कि यह अध्ययन जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किया गया था, जिसमें सेंट जॉन्स मेडिकल कॉलेज, बेंगलुरु और वेणु जराचिकित्सा संस्थान, दिल्ली से जुड़े शोधकर्ता भी शामिल थे। अपने इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने द लॉन्गिट्यूडिनल एजिंग स्टडी इन इंडिया (एलएएसआई) से जुड़े आंकड़ों का उपयोग किया है, जो देश की 91 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वहीं अपने इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने आयु के आधार पर मनोभ्रंश के प्रसार को समझने के लिए इनमें से 4,096 प्रतिभागियों का चयन किया था। इसमें 18 भौगोलिक और भाषाई रूप से विविध राज्यों जैसे जम्मू और कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु आदि के प्रतिभागी शामिल थे। इन सभी की आयु 60 से 104 वर्ष के बीच थी, जबकि ज्यादातर लोगों की आयु 60 से 79 वर्ष के बीच थी।

इसमें शामिल 51 फीसदी प्रतिभागी महिलाएं थी। वहीं 43 फीसदी ने कोई औपचारिक शिक्षा प्राप्त नहीं की थी। वहीं अधिकांश (56 फीसदी) शहरी क्षेत्रों में रह रहे थे। उन्होंने इस अध्ययन को एलएएसआइ-डीएडी स्टडी कहा है। इस स्टडी में उन्होंने जानकारी के विश्लेषण के लिए मानसिक विकारों के निदान और सांख्यिकी मैनुअल (डीएसएम-5) नामक टूल का उपयोग किया है। डीएसएम-5 के अनुसार, मनोभ्रंश में आमतौर पर संज्ञानात्मक क्षमताओं में महत्वपूर्ण गिरावट शामिल होती है, जो किसी व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करती है।

अशिक्षित और ग्रामीणों में कहीं ज्यादा दर्ज की गई समस्या

इस अध्ययन के जो नतीजे सामने आए हैं उनके मुताबिक देश के 2.4 करोड़ बुजुर्गों में न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर के लक्षण हल्के हैं, वहीं 99 लाख बुजुर्गों में यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर है। मतलब की देश में 17.6 फीसदी बुजुर्गों में न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर के हल्के लक्षण हैं वहीं 7.2 फीसदी बुजुर्गों में यह समस्या बेहद गंभीर है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 80 वर्ष से अधिक आयु के बुजुर्गों और उन लोगों में जिन्होंने कम शिक्षा हासिल की है, उनमें इन विकारों का प्रसार कहीं अधिक था।

आंकड़ों से पता चला है कि जहां 60-64 वर्ष की आयु के लोगों में करीब चार फीसदी लोग इसकी गंभीर समस्या से ग्रस्त थे। वहीं 80 वर्ष से अधिक आयु वालों लोगों में यह आंकड़ा 15.2 फीसदी था। इसी तरह जिन लोगों कोई औपचारिक शिक्षा ग्रहण नहीं की थी उनमें इसका प्रसार 10.8 फीसदी, जबकि माध्यमिक या उच्च शिक्षा प्राप्त बुजुर्गों में 3.5 फीसदी दर्ज किया गया था।

रिसर्च से यह भी पता चला है कि जहां 60 वर्ष से अधिक आयु की 6.1 फीसदी महिलाएं गंभीर न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर से पीड़ित थी। वहीं इसी आयु वर्ग के पुरुषों में यह आंकड़ा 8.4 फीसदी दर्ज किया गया। इसके विपरीत जहां 18.5 फीसदी बुजुर्ग महिलाओं में इसके हल्के लक्षण थे।

वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा 16.6 फीसदी दर्ज किया गया। इसी तरह ग्रामीण परिवेश में भी इसका प्रसार ज्यादा दर्ज किया गया। अध्ययन के मुताबिक जहां ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़े 10.3 फीसदी बुजुर्ग प्रतिभागी गंभीर न्यूरोकॉग्निटिव डिसऑर्डर का शिकार थे, वहीं शहरी क्षेत्रों में यह आंकड़ा 4.9 फीसदी दर्ज किया गया।

गौरतलब है कि इससे पहले जर्नल अल्जाइमर्स एंड डिमेंशिया में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में सामने आया है कि भारत में 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 7.4 फीसदी बुजुर्ग मनोभ्रंश से प्रभावित हैं। मतलब की 88 लाख भारतीय बुजुर्ग इस समस्या से जूझ रहे हैं। इस अध्ययन में यह भी सामने आया है कि मनोभ्रंश पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक आम है और शहरी क्षेत्रों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक व्यापक है।

जर्नल बीएमसी में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च से पता चला है कि घरों में मौजूद वायु प्रदूषण देश में बुजुर्ग ग्रामीण महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है। इस अध्ययन के मुताबिक देश में करीब 18.7 फीसदी ग्रामीण महिलाएं ऐसे घरों में रह रही हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर हानिकारक है।