स्वास्थ्य

भारत में हर दिन गर्भावस्था या प्रसव के दौरान हो रही करीब 66 महिलाओं की मौत

भारत, नाइजीरिया के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जहां इतनी बड़ी संख्या में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत हो रही है

Lalit Maurya

भारत में हर दिन गर्भावस्था या प्रसव के दौरान करीब 66 महिलाओं की मौत हो जाती है। मतलब की हर साल देश में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान 24,000 माओं की मौत हो जाती है। देखा जाए तो दुनिया में भारत, नाइजीरिया के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जहां इतनी बड़ी संख्या में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत हो रही है।

यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी नई रिपोर्ट "ट्रेन्ड्स इन मैटरनल मोर्टेलिटी 2000-2020" में सामने आई है। देखा जाए तो मातृ मृत्यु दर के जारी यह रुझान इस बात की और इशारा करते हैं कि अभी भी देश में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य देखभाल को बेहतर बनाने के लिए कहीं ज्यादा प्रयास करने की जरूरत है।

हालांकि देखा जाए तो वर्ष 2000 के बाद से भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) में लगातार गिरावट आई है जोकि एक अच्छी खबर है लेकिन इसके बावजूद यह गिरावट उतनी नहीं है जितनी होनी चाहिए थी। गौरतलब है कि जहां 2000 में देश में मातृ मृत्यु अनुपात (एमएमआर) 384 था वो 2020 में 73 फीसदी की गिरावट के साथ घटकर 103 रह गया है।

वहीं देखा जाए तो 2005 में यह अनुपात 286, 2010 में 179 और 2015 में 128 पर पहुंच गया था। इसके बावजूद देखा जाए तो यह अनुपात 2030 तक सतत विकास के लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने से काफी दूर है।

गौरतलब है कि एसडीजी के तहत भारत सहित दुनिया भर के देशों में 2030 तक मातृ मृत्यु अनुपात को 70 पर लाने का लक्ष्य रखा गया था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मातृ मृत्यु अनुपात की गणना प्रति लाख जीवित जन्मों पर होने वाली मातृ मृत्यु के आधार पर की जाती है।

सतत विकास के लक्ष्यों से काफी दूर हैं भारत सहित दुनिया के बहुत से देश

रिपोर्ट के मुताबिक यदि वैश्विक स्तर पर जारी आंकड़ों को देखें तो हर दो मिनट में दुनिया के किसी न किसी कोने में एक महिला की गर्भावस्था या प्रसव के दौरान मौत हो जाती है। मतलब कि इस वजह से हर साल करीब 287,000 महिलाओं की मौत हो रही है। देखा जाए तो 2016 में सतत विकास के लक्ष्यों को लागू किए जाने के बाद से इसमें मामूली कमी आई है। पता चला है कि 2016 में 309,000 महिलाओं की मौत गर्भावस्था या प्रसव के दौरान हो गई थी।

रिपोर्ट के मुताबिक 2000 से 2015 के बीच मातृ मृत्यु में महत्वपूर्ण रुप से कमी आई थी। लेकिन एक बिंदु के बाद यह गिरावट काफी हद तक ठप हो गई थी यहां तक की कुछ मामलों में तो इसमें वृद्धि भी दर्ज की गई है।

रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली मातृ मृत्यु दुनिया के सबसे गरीब हिस्सों और संघर्ष प्रभावित देशों में बड़े पैमाने पर केंद्रित है। पता चला है कि 2020 में मातृ मृत्यु का करीब 70 फीसदी आंकड़ा उप सहारा अफ्रीका में दर्ज किया गया है।

वहीं गंभीर मानवीय संकटों का सामना कर रहे नौ देशों में, मातृ मृत्यु दर विश्व औसत के दोगुने से भी ज्यादा है। जहां वैश्विक स्तर पर 223 की तुलना में प्रति एक लाख जीवित जन्मों पर मातृ मृत्यु अनुपात 551 दर्ज किया गया है।

रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं उनके अनुसार दुनिया में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान होने वाली माओं की मौत के मामले में नाइजीरिया सबसे ऊपर हैं जहां 2020 में 82,000 महिलाओं की असमय मौत हो गई थी।

देखा जाए तो इस वजह से दुनिया में होने वाली 28.5 फीसदी मौतें अकेले नाइजीरिया में दर्ज की गई थी। वहीं भारत 8.3 फीसदी के साथ दूसरे स्थान पर है, जहां 2020 में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान 24,000 महिलाओं की मौत हो गई थी। इसके बाद डेमोक्रेटिक रिपब्लिक कांगो 22,000 मौतों के साथ तीसरे और इथियोपिया 10,000 मौतों के साथ चौथे स्थान पर है। 

स्वास्थ्य सुविधाओं और सेवाओं तक सीमित पहुंच है बड़ी समस्या

देखा जाए तो सामुदायिक-केंद्रित प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल महिलाओं, बच्चों और किशोरों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। साथ ही प्रसव पूर्व, जन्म के समय और प्रसवोत्तर देखभाल, टीकाकरण, पोषण और परिवार नियोजन जैसी महत्वपूर्ण सेवाओं तक समान पहुंच को सुनिश्चित कर सकती है। हालांकि, प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए की जा रही कम फंडिंग, प्रशिक्षित स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की कमी, और चिकित्सा उत्पादों के लिए कमजोर आपूर्ति श्रृंखलाएं इस प्रगति को खतरे में डाल रही हैं।

मोटे तौर पर देखें तो दुनिया में करीब एक तिहाई महिलाओं की आठ प्रसवपूर्व जांचों में से चार भी नहीं होती हैं। या फिर उन्हें आवश्यक प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त नहीं होती है, जबकि करीब 27 करोड़ महिलाएं की आधुनिक परिवार नियोजन विधियों तक पहुंच सीमित है। देखा जाए तो आय, शिक्षा, नस्ल या जातीयता से संबंधित असमानताएं हाशिए पर रहने वाली गर्भवती महिलाओं के लिए जोखिम को और बढ़ा रही हैं, जिनके पास आवश्यक मातृत्व देखभाल तक पहुंच सीमित है, लेकिन गर्भावस्था से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं का अनुभव करने की संभावना सबसे अधिक है।

इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख डॉक्टर टेड्रोस एडहानॉम घेब्रेयसस का कहना है कि, "जबकि गर्भावस्था सभी महिलाओं के लिए अपार आशा और एक सकारात्मक अनुभव का समय होना चाहिए, लेकिन दुखद रूप से अभी भी दुनिया की लाखों महिलाओं के लिए यह चौंकाने वाला एक खतरनाक अनुभव है, इन महिलाओं के पास उच्च गुणवत्ता और सम्मानजनक स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच नहीं है।"

उनके अनुसार नए आंकड़े यह सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता को प्रकट करते हैं कि प्रत्येक महिला और लड़की को प्रसव से पहले, उसके दौरान और बाद में महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच हासिल हो। साथ ही वो अपने प्रजनन सम्बन्धी अधिकारों का पूरी तरह से उपयोग कर सकें।"