हाल ही में अमेरिका में किए एक शोध में खुलासा किया गया है कि कोविड-19 से उबरने के 90 दिनों के बाद भी करीब 30 फीसदी लोगों में पोस्ट एक्यूट सीक्वल यानी लॉन्ग कोविड की समस्या बनी रह सकती है। यह अध्ययन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के लॉस एंजिल्स स्वास्थ्य विज्ञान संस्थान (यूसीएलए) द्वारा किया गया है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक अस्पताल में भर्ती होने वाले मरीजों, मधुमेह और मोटापे से ग्रस्त लोगों में इसकी चपेट में आने की सबसे ज्यादा सम्भावना है। वहीं हैरानी की बात है कि ऑर्गन ट्रांसप्लांट कराने वाले मरीजों में इसके विकसित होने की संभावना कम देखी गई थी। यह शोध जर्नल ऑफ जनरल इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है। इसके मुताबिक मरीज की आयु, सामाजिक आर्थिक स्थिति, संस्कृति और परम्पराओं और लॉन्ग कोविड के बीच कोई सम्बन्ध नहीं पाया गया था, जबकि देखा जाए तो इन विशेषताओं, गंभीर संक्रमण और उससे होने वाली मृत्यु के बीच पहले भी सम्बन्ध देखा गया था।
अपने इस अध्ययन में यूसीएलए के शोधकर्ताओं ने 1,038 लोगों को शामिल किया था, जो अप्रैल 2020 से फरवरी 2021 के बीच यूसीएलए के कोविड एम्बुलेटरी प्रोग्राम में शामिल हुए थे। शोधकर्ताओं को इनमें से 309 मरीजों में लॉन्ग कोविड के विकसित होने का पता चला था।
यहां इन मरीजों से अस्पताल में भर्ती होने के 60 से 90 दिनों के बाद स्वास्थ्य सम्बन्धी प्रश्न पूछे गए थे, जिससे प्राप्त जवाबों और लक्षणो के आधार पर इस बात की पुष्टि हुई है कि वो मरीज अभी भी लॉन्ग कोविड के लक्षणों से पीड़ित हैं।
31 फीसदी मरीजों में देखे गए थे थकान के लक्षण
लंबे समय तक कोविड से पीड़ित इन 309 मरीजों में से, ज्यादातर लोगों को थकान और सांस की तकलीफ थी। आंकड़ों के मुताबिक करीब 31 फीसदी मरीजों ने थकान, जबकि 15 फीसदी ने सांस सम्बन्धी तकलीफ के बारे में जानकारी साझा की थी। वहीं 16 फीसदी मरीजों में गंध और सूंघने की कमी सम्बन्धी लक्षण सामने आए थे। देखा जाए तो लॉन्ग कोविड की घटना, जोखिम से जुड़े कारकों और यहां तक की इसके सिंड्रोम को कैसे परिभाषित किया जाए, यह महामारी के दौरान पूरी तरह अस्पष्ट रहा है। गौरतलब है कि लॉन्ग कोविड के कुछ मामले एसिम्टोमैटिक मरीजों में भी देखने को मिले हैं, हालांकि ऐसे मामले काफी कम हैं।
विश्व पिछले दो वर्षों से भी ज्यादा समय से इस महामारी से जूझ रहा है। आज भी इस महामारी से जुड़ी समस्याएं और जटिलताएं दूर होने का नाम नहीं ले रही। जब भी हमें लगता है कि इस महामारी का दौर गुजर चुका है तब ही इसका कोई नया वेरिएंट दुनिया में तहलका मचाना शुरू कर देता है। गौरतलब है कि पिछले कुछ समय से भारत सहित दुनिया के कई देशों में एक बार फिर इस बीमारी ने पैर पसारने शुरू कर दिए हैं।
आलम यह है कि अब तक इस महामारी से संक्रमित हो चुके लोगों का आंकड़ा 50.7 करोड़ पर जा पहुंचा है, जबकि 62.3 लाख लोगों की जान जा चुकी है। वहीं अब तक करीब 46 करोड़ लोगो इस महामारी से उबर चुके हैं। ऐसे में यदि उनमें से 30 फीसदी लोगों में लॉन्ग कोविड की समस्या बरक़रार है तो इसकी गंभीरता का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। भारत में भी अब तक कोरोना के 4.3 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें से 4.25 करोड़ स्वस्थ हो चुके हैं।
सबके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं तक समान पहुंच भी है जरुरी
ऐसे में शोधकर्ताओं के अनुसार यह अध्ययन लम्बे समय तक इस बीमारी के मरीजों पर पड़ने वाले असर की जांच और उनकी देखभाल की आवश्यकता पर बल देता है। इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता प्रोफेसर सन यू का कहना है कि कोरोना के नए संक्रमण के साथ-साथ हमें लॉन्ग कोविड से जुड़े लक्षणों और मरीजों में इसकी जटिलता को लेकर भी विशेष ध्यान देने की जरुरत है।
उनके अनुसार कोमोरबिडीटी (पहले से मौजूद अन्य बीमारी), सामाजिक कारक, वैक्सीन, वेरिएंट जैसे कई व्यक्तिगत कारक भी लॉन्ग कोविड के लक्षणों और गंभीरता को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसे में इस बीमारी से उबरने के बाद भी मरीजों और चिकित्सकों को स्थिति का जायजा लेते रहना चाहिए, क्योंकि कुछ परिस्थितियों में लॉन्ग कोविड के चलते गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं, इसे भी ध्यान में रखा जाना जरुरी है।
साथ ही उनके अनुसार लॉन्ग कोविड का मुकाबला करने के लिए हमें बेहतर उपकरणों की आवश्यकता है। जिन लोगों में इलाज के बाद लॉन्ग कोविड के लक्षण पाए गए हैं, उन सभी की देखभाल के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं तक समान पहुंच सुनिश्चित करना भी जरुरी है।
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