स्वास्थ्य

महाराष्ट्र में प्रभावी रूप से लागू नहीं है मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, कोर्ट ने मांगा जवाब

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 की धारा 46 के तहत राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के गठन की समय सीमा के बारे में जानकारी देने के लिए 29 अगस्त, 2022 तक का समय दिया है।

बॉम्बे हाईकोर्ट का यह आदेश पेशे से डॉक्टर हरीश शेट्टी द्वारा दायर याचिका के मद्देनजर आया है। याचिकाकर्ता ने एक जनहित याचिका के माध्यम से जहां तक ​​महाराष्ट्र राज्य का संबंध है, मानसिक स्वास्थ्य देखभाल अधिनियम, 2017 के प्रभावी रूप से लागू न होने का मुद्दा उठाया है।

गौरतलब है कि 2017 का यह अधिनियम मानसिक रूप से बीमारी व्यक्तियों को मानसिक स्वास्थ्य संबंधी देखभाल और सेवाएं प्रदान करने से जुड़ा है। साथ ही इसमें ऐसे व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा, प्रचार और उसे हासिल करने के लिए अधिनियमित किया गया है। वहीं इसका अध्याय VIII राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण की स्थापना की बात करता है।

जानकारी मिली है कि राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण में पदेन सदस्यों के साथ-साथ प्रख्यात मनोचिकित्सक, मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर, मनोरोग सामाजिक कार्यकर्ता, ​​मनोवैज्ञानिक, नर्स, देखभाल करने वाले और गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि और अन्य सदस्य शामिल होने चाहिए। वहीं राज्य स्वास्थ्य विभाग के सचिव या प्रमुख सचिव इसके अध्यक्ष होते हैं।

जहां तक ​​राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण के कामकाज का संबंध है, महाधिवक्ता का कहना है कि इस प्राधिकरण का गठन 23 अक्टूबर, 2021 को हुआ था। ऐसे में हाईकोर्ट ने 23 अगस्त, 2022 को दिए अपने आदेश में जोर देकर कहा है कि राज्य मानसिक स्वास्थ्य प्राधिकरण को जल्द से जल्द प्रभावी बनाया जाए।

काटेपूर्णा जलाशय, काटेपूर्णा वन्यजीव अभयारण्य का एक हिस्सा है ऐसे में वहां मछली पकड़ना प्रतिबंधित है: हाई कोर्ट 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने 23 अगस्त, 2022 को दिए अपने आदेश में काटेपूर्णा जलाशय में मछली पकड़ने की गतिविधियों के लिए दायर याचिका को खारिज कर दिया है। यह याचिका काटेपूर्णा मत्स्य व्यवसाय सहकारी संस्था मर्यादित द्वारा दायर की गई थी, जोकि महाराष्ट्र के अकोला में काटेपूर्णा जलाशय में मछली पकड़ने से सम्बंधित थी।

जानकारी दी गई है कि याचिकाकर्ता एक सहकारी समिति है और इसके सदस्य काटेपूर्णा सिंचाई परियोजना के कारण स्थानीय मछुआरों के साथ-साथ परियोजना प्रभावित हैं। गौरतलब है कि 1990 से, इस समिति को काटेपूर्णा सिंचाई परियोजना में मछली पकड़ने का अनुबंध दिया गया था, जोकि हर पांच साल के लिए था।

गौरतलब है कि 8 फरवरी, 1988 को राज्य राजस्व एवं वन विभाग द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई थी जिसके तहत इस क्षेत्र को अभयारण्य घोषित कर दिया गया था। इसे काटेपूर्णा वन्यजीव अभयारण्य कहा जाता है।

इस मामले में सोसाइटी का कहना है कि उसे 30 जून, 2023 तक के लिए मछली पकड़ने का अनुबंध जारी किया गया है। इस तरह वो काटेपूर्णा जलाशय से मछली पकड़ने के लिए हकदार है। हालांकि 11 दिसंबर, 2020 को वन विभाग के अधिकारियों ने समिति के सदस्यों को ऐसा करने से रोक दिया था।

ऐसे में सोसाइटी ने एक रिट याचिका दायर कर इस विषय में एक घोषणा की मांग की है कि वो इस जलाशय में मछली पकड़ने की गतिविधियां जारी रखने की हकदार है। इस बारे में महाराष्ट्र मुख्य सचिव ने 13 जुलाई को सबमिट अपनी रिपोर्ट में कहा है कि काटेपूर्णा वन्यजीव अभयारण्य में काटेपूर्णा जलाशय सहित 1283.31 हेक्टेयर क्षेत्र शामिल है।

ऐसे में गैर वानिकी गतिविधि होने के कारण मछली पकड़ने सम्बन्धी गतिविधियां वन संरक्षण अधिनियम, 1980 के दायरे में आती हैं। 

बागेश्वर में तेदुओं के आवास के आसपास कैसे दे दी गई सोपस्टोन खनन की इजाजत: याचिकाकर्ता ने रिपोर्ट पर उठाए सवाल

10.841 हेक्टेयर क्षेत्र में सोपस्टोन खनन मामले में संयुक्त समिति द्वारा एनजीटी के समक्ष दायर रिपोर्ट पर अपीलकर्ता ने आपत्ति जताई है। मामला बागेश्वर के नयाल धपोला गांव का है। साथ ही इस मामले में अपीलकर्ता सूरज सिंह कर्की ने उत्तराखंड के राज्य स्तरीय पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण द्वारा खनन के लिए दी गई मंजूरी को भी रद्द करने की प्राथना कोर्ट से की है।

इस बारे में उनका कहना है कि खनन के चलते वहां आसपास रहने वाले तेंदुओं का आवास प्रभावित हो सकता है, जिस मुद्दे को हल करने में समिति पूरी तरह विफल रही है। इसके अलावा उनका कहना है कि राज्य विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (एसईएसी) और राज्य पर्यावरण प्रभाव आकलन प्राधिकरण ने बिना इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति पर ध्यान दिए खनन की इजाजत दे दी है। यह क्षेत्र भूकंपीय गतिविधियों के दृष्टिकोण से खतरनाक क्षेत्र है जहां मंजूरी से पहले खनन के प्रभाव और खतरों का आंकलन जरुरी है।

वहीं संयुक्त समिति द्वारा सबमिट रिपोर्ट में कहा गया है कि सोपस्टोन खनन सम्बन्धी पट्टे को उत्तराखंड माइनर मिनरल पॉलिसी 2015 के प्रावधानों के तहत सरकार द्वारा अनुमोदित किया गया है। वहीं अपीलकर्ता का कहना है कि भूकंप संभावित क्षेत्र में खनन पट्टा देने के सम्बन्ध में उत्तराखंड माइनर मिनरल पॉलिसी 2015 में कोई प्रावधान नहीं है।