स्वास्थ्य

सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर राज्यों से मांगी उनकी प्रतिक्रिया

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को स्कूलों में पढ़ने वाली बच्चियों के लिए माहवारी स्वच्छता प्रबंधन पर अपनी प्रतिक्रिया 31 अगस्त, 2023 तक केंद्र को सौंपने का निर्देश दिया है। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी का कहना है कि 10 अप्रैल, 2023 को दिए आदेश के अनुसार केंद्र सरकार को केवल दिल्ली, हरियाणा, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश से प्रतिक्रियाएं मिली हैं।

ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने अन्य सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 31 अगस्त, 2023 तक इस मुद्दे पर अपनी प्रतिक्रिया देने का निर्देश दिया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की बेंच ने निर्देश दिया है कि आदेश की प्रति शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को अनुपालन के लिए उपलब्ध कराई जाए।

वहीं जिन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों ने अपनी प्रतिक्रिया नहीं दी है उन्हें चेतावनी दी गई है, कि यदि वो चूक करना जारी रखते हैं तो ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को कानूनी उपायों का सहारा लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में अगली सुनवाई 6 नवंबर, 2023 को करेगा।

भूजल सुरक्षा के लिए निर्देश जारी करे केंद्रीय भूजल प्राधिकरण: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने 24 जुलाई, 2023 को दिए अपने आदेश में कहा है कि भूमिगत जल को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड/प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) आवश्यक नियामक निर्देश जारी करे। ट्रिब्यूनल ने इस बात पर जोर दिया कि इस मामले को तत्काल निपटाया जाना चाहिए।

अदालत का कहना है कि महरौली और साकेत के कुछ हिस्सों में भूजल के अवैध दोहन के खिलाफ संबंधित अधिकारियों के पास बार-बार शिकायत दर्ज कराने के बाद भी उसपर कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

मामले में आवेदक प्रीतिपाल शर्मा का कहना है कि वो टैंकर माफिया हैं जो भूजल का दोहन कर रहे हैं और आरओ प्लांट की मदद से व्यावसायिक गतिविधियां चला रहे हैं। वहीं संबंधित अधिकारी इन टैंकर माफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।

महरौली और साकेत के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट ने स्वीकार किया है कि बोरवेल को बंद करने से जुड़ी कार्रवाई संबंधित अधिकारियों द्वारा नहीं की गई है और न ही इसके लिए उन्होंने मुआवजे की वसूली और बहाली की कार्रवाई की है। उनके अनुसार यह गतिविधियां पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही हैं।

ऐसे में एनजीटी ने महरौली और साकेत के एसडीएम से आवश्यक कार्रवाई करने और अनधिकृत ऑपरेटरों और टैंकर माफियाओं द्वारा किए जा रहे भूजल के दोहन को रोकने के लिए प्रभावी तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है। साथ ही मामले में तुरंत कठोर कदम उठाने की बात भी कोर्ट ने कही है। आदेश है कि इन अवैध बोरवेलों को तत्काल बंद कर दिया जाए।

कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि इससे पहले जो नियमों का उल्लंघन और भूजल का दोहन हुआ हैं उसकी गणना नियमों और सीपीसीबी द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार की जानी चाहिए और नियमों के अनुसार पर्यावरणीय मुआवजा लगाया जाना चाहिए।

एसडीएम को बिजली विभाग से सहायता लेने और अवैध बोरवेलों की बिजली काटने का भी निर्देश दिया गया है। आदेश के अनुसार आगे क्या कार्रवाई की गई इसपर अगले तीन सप्ताह के भीतर रिपोर्ट कोर्ट में दाखिल करनी होगी।

क्या पर्यावरण नियमों का हो रहा है पालन, एनजीटी ने समिति को  बिड़ला कार्बन संयंत्र की जांच का दिया निर्देश

रेनुकूट के बिड़ला कार्बन प्लांट में पर्यावरण सम्बन्धी नियमों का पालन किया जा रहा है, इसकी जांच के लिए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक संयुक्त समिति को प्लांट का दौरा करने का निर्देश दिया है।

गौरतलब है कि पर्यावरण नियमों का पालन करने में बिड़ला कार्बन संयंत्र की कथित विफलता के बारे में पंकज श्रीवास्तव ने कोर्ट में शिकायत दायर की थी। इसपर कार्रवाई करते हुए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 24 जुलाई, 2023 को यह निर्देश दिया है।

कोर्ट ने इस मामले में रेनुकूट के कलेक्टर, और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक प्रतिनिधि को शामिल करते हुए समिति गठित करने का निर्देश दिया था। इस समिति को साइट का दौरा करने के साथ अगले चार सप्ताह के भीतर तथ्यात्मक और कार्रवाई रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया गया है।

रिपोर्ट में 30 जनवरी, 2019 को संचालन के लिए दी गई सहमति (सीटीओ) और अतिरिक्त निर्माण प्रक्रियाओं के संबंध में अनुपालन की स्थिति के बारे में भी जानकारी होनी चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा है कि यदि इस प्लांट के आसपास वायु गुणवत्ता के आंकड़े या राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम (एनएएमपी) से जुड़ा स्टेशन हो तो उसके आंकड़े भी इस रिपोर्ट में होने चाहिए।

इस मामले में शिकायत मिली थी कि बिरला कार्बन संयंत्र वायु (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1981 का उल्लंघन कर रहा था। कहा गया है कि यूनिट उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) की सहमति के बिना चल रही थी।

साथ ही यूनिट ने अपने 6 रिएक्टर, वेंट स्क्रबर स्टैक और 2 मुख्य बैग फिल्टर स्टैक के लिए सहमति नहीं ली है। इतना ही नहीं यूनिट ने सहमति के लिए अपने 6 रिएक्टर वेंट स्क्रबर्स स्टैक और 2 मुख्य बैग फिल्टर स्टैक की ऊंचाई का भी खुलासा नहीं किया है।

पंकज श्रीवास्तव ने अपने आवेदन में कहा है कि रिएक्टर, वेंट स्क्रबर और मुख्य बैग फिल्टर स्टैक का उपयोग संयंत्र बंद होने के दौरान किया जाता है, और इसमें बिना जला हुआ कार्बन मोनोऑक्साइड होता है, जो इस संयंत्र का उपोत्पाद है।