स्वास्थ्य

एड्स पीड़ितों की दवाओं की कमी पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मांगा जवाब

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

Susan Chacko, Lalit Maurya

भारत में एंटीरेट्रोवायरल दवाओं (एआरटी) की कमी पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है, जिसके लिए दो सप्ताह का वक्त दिया गया है। गौरतलब है कि इस मामले में याचिकाकर्ता नेटवर्क ऑफ पीपल लिविंग विद एचआईवी/एड्स ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि भारत में एंटीरेट्रोवाइरल दवाओं (एआरटी) की खरीद में कमी है।

जानकारी दी गई है कि इन दवाओं की खरीद के लिए 2021-22 के लिए जो निविदा अगस्त 2021 में निकाली जानी थी उसे दिसंबर 2021 में जारी किया गया था, जो अंततः विफल रही थी। इसके लिए मार्च 2022 में एक नया टेंडर जारी किया गया था।

गौरतलब है कि हाल ही में एचआईवी रोगियों ने राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन कार्यालय के बाहर एंटीरेट्रोवायरल दवाओं की कमी को लेकर विरोध प्रदर्शन किया था।  प्रदर्शन कर रहे मरीजों का कहना था कि एचआईवी की दवाएं उपलब्ध नहीं हैं। 

जानमाल के नुकसान से बचने के लिए पटाखा इकाइयों को नियमों का पालन करना चाहिए: एनजीटी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी), 13 सितंबर, 2022 को दिए अपने आदेश में कहा है कि पर्यावरणीय संबंधी सुरक्षा मानदंडों का पालन न करने के कारण औद्योगिक दुर्घटनाओं में लोगों की जान गई है। गौरतलब है कि अदालत 24 जुलाई, 2022 को एक अवैध पटाखा यूनिट में लगी आग के मामले में सुनवाई कर रही थी। इस दुर्घटना में पांच लोगों की मौत हो गई थी।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने इस मामले में विचार विमर्श करने के लिए बिहार के मुख्य सचिव को सभी जिलाधिकारियों और रेगुलेटर्स के साथ बैठक करने का निर्देश दिया था, जिससे राज्य में ऐसे दुर्घटनाओं को रोकने के लिए उचित मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) जारी की जा सके।

कोर्ट ने कहा है कि ऐसे दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सही सूचना, शिक्षा और संचार गतिविधियों के माध्यम से जागरूकता पैदा करना जरूरी है। ऐसी गतिविधियों को बिहार सरकार, बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण और शिक्षा विभाग के साथ मिलकर चला सकती है। एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि इन इकाइयों में विस्फोटकों को निर्धारित मानदंडों और प्रक्रियाओं के अनुसार नियंत्रित किया जाता है। साथ ही इन विस्फोटकों की मदद से कोई गैरक़ानूनी निर्माण नहीं किया जाता है। 

राजस्थान में मार्च 2024 तक डंपसाइट्स से साफ करना होगा सालों से जमा कचरा: एनजीटी

राजस्थान में 176 डंप साइटों की पहचान की गई है, जहां लम्बे समय से कचरा जमा है। इन डंप साइट में जमा कचरे के निपटान के लिए करीब 370 करोड़ की जरुरत है। यह जानकारी राजस्थान सरकार द्वारा एनजीटी में दायर रिपोर्ट में सामने आई है। गौरतलब है कि एनजीटी ने राज्य में सभी डंपसाइट्स को साफ करने की समय सीमा को मार्च 2023 से बढ़ाकर मार्च 2024 कर दिया गया है।

रिपोर्ट में दी जानकारी के अनुसार जयपुर और जोधपुर के लिए वेस्ट टू एनर्जी प्लांट के वर्क ऑर्डर दे दिए गए हैं। वहीं कंपोस्टिंग के संबंध में उद्यान खाद और पिट कम्पोस्टिंग को वर्तमान प्रसंस्करण क्षमता में शामिल किया गया है। राज्य में 10 संयंत्र 15 शहरी स्थानीय निकायों को कवर करेंगे। वहीं उदयपुर में 20 टीपीडी, और डूंगरपुर में 7 टीपीडी की क्षमता के संयंत्रों में बायोमिथेनेशन संबंधी योजनाओं को पहले ही शुरू कर दिया गया है।

इसके अलावा, जोधपुर में 100 टीपीडी और जयपुर में 400 टीपीडी क्षमता के बायोमिथेनेशन प्लांट का प्रस्ताव भारत सरकार की वायबिलिटी गैप फंडिंग (वीजीएफ) योजना के तहत आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) को दिया गया है।

पर्यावरण नियमों के अनुकूल है वल्लूर थर्मल पावर स्टेशन

एनटीपीसी तमिलनाडु एनर्जी कंपनी (एनटीईसीएल), वल्लूर ने थर्मल पावर स्टेशन को लेकर एनजीटी में सबमिट अपनी रिपोर्ट में कहा है कि एनटीईसीएल, प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए सर्वोत्तम तकनीकों को अपना रहा है। जानकारी दी गई है कि चेन्नई में एनटीईसीएल ने यूनिट 1, 2 और 3 बॉयलर से जुड़े 275 मीटर के तीन स्टैकों का निर्माण किया है।

गौरतलब है कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा 7 दिसंबर, 2015 को जारी अधिसूचना के तहत जारी नए उत्सर्जन मानदंडों को एनटीईसीएल पूरा करता है जो इस यूनिट के लिए 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि एनटीईसीएल के इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रीसिपिटेटर्स (ईएसपी) पहले ही 50 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम उत्सर्जन के लिए डिजाईन किए गए हैं।

एनटीईसीएल ने 23 अगस्त, 2022 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर यह रिपोर्ट कोर्ट में सबमिट की है। यह रिपोर्ट मीडिया में छपी ख़बरों के आधार पर कोर्ट द्वारा स्वत: लिए संज्ञान के जवाब में थी। इन मीडिया रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तरी चेन्नई में छह उद्योग हवा को बहुत ज्यादा दूषित कर रहे हैं। इस आदेश में कोर्ट ने उद्योगों को अपने  प्रदूषण नियंत्रण तंत्र के बारे में जानकारी देने का निर्देश दिया था।