विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने घोषणा की है कि भारत ने ट्रेकोमा उन्मूलन में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। इसके साथ ही भारत, दक्षिण-पूर्व एशिया में आंखों की इस बीमारी पर जीत हासिल करने वाला तीसरा देश बन गया है।
इससे पहले दक्षिण पूर्व एशिया में नेपाल और म्यांमार इस उपलब्धि को हासिल कर चुके हैं। वहीं वैश्विक स्तर पर देखें तो भारत सहित 20 देशों ने यह महत्वपूर्ण लक्ष्य हासिल कर लिया है।
इस बारे में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने जारी की प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि भारत ने सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या के रूप में ट्रेकोमा को समाप्त कर दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी आधिकारिक घोषणा कर दी है। यह स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि भारत स्वास्थ्य क्षेत्र में लगातार प्रगति कर रहा है।
गौरतलब है कि ट्रेकोमा एक बैक्टीरियल इन्फेक्शन है जो आंखों को प्रभावित करता है। इसके लिए क्लैमाइडिया ट्रैकोमैटिस नामक बैक्टीरिया जिम्मेवार होता है। स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक यह एक संक्रामक रोग है जो संक्रमित की आंखों, पलकों, नाक या गले के स्राव के संपर्क में आने से फैलता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ट्रेकोमा एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग है, जिस पर अब तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है। आंकड़े दर्शाते हैं कि दुनिया में 15 करोड़ से ज्यादा लोग इस बीमारी से संक्रमित हैं।
दुनिया भर में 15 करोड़ लोग इस बीमारी से हैं पीड़ित
उनमें से 60 लाख लोग ऐसे हैं जो या तो इस बीमारी की वजह से अपनी आंखों की रौशनी पूरी खो चुके हैं या उन्हें देखने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यह बीमारी कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अगर इसका समय पर इलाज न किया जाए तो इसकी वजह से आंखों की रौशनी सदा के लिए जा सकती है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यह दुनिया के 42 देशों में सार्वजनिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या है। जून 2022 के लिए जारी आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में 12.5 करोड़ लोग उन क्षेत्रों में रह रहे हैं, जहां इस बीमारी का खतरा बेहद आम है। साथ ही उन पर ट्रेकोमा की वजह से आंखों की रौशनी खोने का खतरा है।
इसके प्रसार में मुख्य रूप से साफ-सफाई और स्वच्छता की कमी के साथ-साथ दूषित पानी का बहुत बड़ा हाथ है। साथ ही संक्रमित लोगों के संपर्क में आने वाली मक्खियां भी इसके फैलने की एक वजह हैं।
यही वजह है कि यह बीमारी उन क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है, जहां साफ सफाई की कमी है पर्यावरण से जुड़ी परिस्थितयां बेहतर नहीं है। इसके साथ ही यह बीमारी विशेष रूप से उन समुदायों पर गहरा असर डाल रही है जो पहले ही हाशिए पर जीवन बसर करने को मजबूर हैं।
इस उपलब्धि के बारे में जानकारी साझा करते हुए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति में जानकारी दी है कि 1950 और 1960 के दौरान ट्रेकोमा देश में अंधेपन के प्रमुख कारणों में से एक था। यही वजह है कि इससे निपटने के लिए सरकार ने 1963 में राष्ट्रीय ट्रेकोमा नियंत्रण कार्यक्रम की शुरूआत की थी। बाद में, ट्रेकोमा नियंत्रण अंधेपन को रोकने के लिए भारत के एक बड़े कार्यक्रम 'नेशनल प्रोग्राम फॉर कंट्रोल ऑफ ब्लाइंडनेस (एनपीसीबी)' का हिस्सा बन गया।
आंकड़ों को देखें तो 1971 में जितने भी लोगों ने आंखों की रौशनी खोई थी, उसमें से पांच फीसदी के लिए ट्रेकोमा ही जिम्मेवार था। वहीं यदि मौजूदा समय में देखें तो सरकारी योजनाओं और इसके नियंत्रण के लिए की गई कार्रवाई के चलते यह आंकड़ा घटकर एक फीसदी से भी कम रह गया।
इस दौरान डब्ल्यूएचओ की एसएएफई रणनीति को पूरे देश में लागू किया गया, जिसमें एसएएफई का अर्थ है, सर्जरी, एंटीबायोटिक्स, चेहरे की स्वच्छता, वातावरण की सफाई आदि को अपनाना। इन प्रयासों का ही परिणाम है कि 2017 में, भारत को इस संक्रामक बीमारी से मुक्त घोषित कर दिया था।
हालांकि 2019 से 2024 तक, भारत के सभी जिलों में ट्रेकोमा के मामलों की निगरानी जारी रही। जो डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित एक अनिवार्य प्रक्रिया है। अब जब इसके मामले सामने नहीं आए हैं तो डब्ल्यूएचओ ने भारत को ट्रेकोमा मुक्त होने का आधिकारिक प्रमाण पत्र प्रदान कर दिया है।