स्वास्थ्य

जीका फैलाने वाले मच्छरों के अंडे सूखने के बाद भी अनिश्चित काल तक रहते हैं जीवित: अध्ययन

Dayanidhi

एक नए अध्ययन के अनुसार, जीका वायरस फैलाने वाले मच्छर के अंडे अपने चयापचय में बदलाव करके लंबे समय तक सूखने की प्रक्रिया को सहन कर सकते हैं। इस बात का खुलासा बेंगलुरु के इंस्टीट्यूट फॉर स्टेम सेल साइंस एंड रीजेनरेटिव मेडिसिन व मंडी के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के शोधकर्ताओं ने किया है। यह खोज मच्छर के इस प्रसार को नियंत्रित करने के संभावित नए तरीके उजागर करती है।

अध्ययनकर्ता अंजना प्रसाद, सुनील लक्ष्मण और सहयोगियों द्वारा किए गए इस शोध को ओपन एक्सेस जर्नल पीएलओएस बायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। 

शोध के मुताबिक, कोशिकाएं ज्यादातर पानी से बनी होती हैं और सूखापन किसी भी जीव के लिए घातक हो सकता है, क्योंकि कई प्रोटीन और अन्य सेलुलर अणुओं की संरचना पानी पर निर्भर होती है। जबकि कई प्रकार के रोगाणुओं ने सूखने से बचने के लिए एक तंत्र विकसित कर लिया है।

इनमें एडीज एजिप्टी मच्छर भी शामिल है, जो जीका, डेंगू, पीला बुखार और चिकनगुनिया सहित कई प्रकार की संक्रामक बीमारियों को फैलते हैं। मूल रूप से ये उत्तरी अफ्रीका में पाए जाते हैं, ए.ई. एजिप्टी दुनिया भर में फैल चुका है और अब यह दुनिया के गर्म, नम इलाकों के लिए खतरा बन गया है।

एडीज के अंडों से लार्वा बनने में 48 से 72 घंटे लगते हैं और शोधकर्ताओं ने पहली बार दिखाया कि सूखने से बचने के लिए अंडे कम से कम 15 घंटे पुराने होने चाहिए, जो अंडे इस चरण से पहले सूख गए थे, वे पुनर्जलीकरण करने पर फूटने में विफल रहे।

इसके बाद उन्होंने उन व्यवहार्य अंडों के प्रोटेम की तुलना की जिन्हें सुखाया गया था और जिन्हें सूखाया नहीं गया था और सूखे हुए अंडों के भीतर चयापचय मार्गों में कई बड़े बदलाव पाए गए। इनमें ट्राईकार्बोक्सिलिक एसिड (क्रेब्स) चक्र में उन एंजाइमों के स्तर में वृद्धि शामिल है जो लिपिड चयापचय को बढ़ावा देते हैं। साथ ही टीसीए चक्र के ग्लाइकोलाइसिस और एटीपी-उत्पादक भागों के एंजाइमों में कमी, जो एक साथ सेलुलर चयापचय को वसायुक्त अम्ल के उत्पादन और उपयोग की ओर धकेलते हैं।

कुल मिलाकर, चयापचय का स्तर कम हो गया था, जबकि अमीनो एसिड आर्जिनिन और ग्लूटामाइन का स्तर बढ़ गया था। इसके अलावा, पानी की कमी या निर्जलीकरण के एक ज्ञात परिणाम, ऑक्सीडेटिव तनाव के हानिकारक प्रभावों को कम करने वाले एंजाइमों में भी वृद्धि देखी गई।

जब एक साथ जुड़ते हैं, तो आर्जिनिन अणु पॉलीमाइन बनाते हैं, जो न्यूक्लिक एसिड, प्रोटीन और झिल्ली को विभिन्न प्रकार के खतरों से बचाने में मदद करने के लिए जाने जाते हैं। यहां, शोधकर्ताओं ने दिखाया कि अंडे पॉलीमाइन जमा करते हैं, जो सूखे को सहन करने का एक प्रमुख पहलू हो सकता है।

इसका परीक्षण करने के लिए, उन्होंने अंडे देने वाली मादा मच्छरों को पॉलीमाइन संश्लेषण का अवरोधक खिलाया। उनके द्वारा दिए गए अंडे अनुपचारित मादाओं के अंडों की तुलना में सूखने से बचने में काफी कम सक्षम थे।

एक दूसरा अवरोधक, यह फैटी एसिड चयापचय का एक अवरोधक है, जिसने सूखने के बाद अंडे की व्यवहार्यता को भी कम कर दिया है। अंत में, उन्होंने दिखाया कि इस फैटी एसिड अवरोधक ने पॉलीमाइन संश्लेषण को कम कर दिया है, यह दर्शाता है कि फैटी एसिड टूटने में वृद्धि की एक भूमिका सुरक्षात्मक पॉलीमाइन के उत्पादन के लिए आवश्यक ऊर्जा की आपूर्ति करना है।

शोध के हवाले से शोधकर्ता लक्ष्मण ने कहा कि, दुनिया की लगभग आधी आबादी को प्रभावित करने वाली कई संक्रामक बीमारियों के शुरुआती रोग फैलाने वाले के रूप में एई एजिप्टी की भूमिका को देखते हुए, ये तेजी से भौगोलिक रूप से विस्तार कर रहे हैं। परिणाम एडीज के अंडे के अस्तित्व और दुनिया भर में इसके फैलने को कम करने के लिए एक आधार प्रदान करते हैं।

उन्होंने कहा, इसके अतिरिक्त, यहां वर्णित कुछ विशिष्ट अवरोधक जो एई एजिप्टी अंडों में सूखे के प्रतिरोध को कम करते हैं, साथ ही अंडों की सूखे को सहन करने की क्षमता के अन्य चरणों को प्रभावित करने वाले नए अवरोधक, वेक्टर-नियंत्रण एजेंटों के रूप में उपयोगी साबित हो सकते हैं।

लक्ष्मण कहते हैं, एडीज मच्छर के अंडे पूरी तरह से सूखने के बाद अनिश्चित काल तक जीवित रह सकते हैं और लार्वा में बदल जाते हैं। भ्रूण सूखने पर अपने चयापचय को फिर से शुरू करते हैं, सूखने के माध्यम से खुद को बचाने के लिए और पानी फिर से उपलब्ध होने के बाद फिर से जीवित हो जाते हैं।