संयुक्त राज्य अमेरिका के चार प्रमुख विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने सभी ई सिगरेट पीने से फेफड़ों पर पड़ने वाले प्रभावों की व्यापक समीक्षा की है। इसके निष्कर्ष ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित हुए है।
सेलर बायोलॉजी और फिजियोलॉजी के प्रोफेसर और यूएनसी मार्सिको लुंग इंस्टीट्यूट के सदस्य, रॉब टैरान ने बतया कि यह अध्ययन मनुष्यों के फेफड़ों और कोशिकाओं और जानवरों पर प्रयोगशाला में किया गया। अध्ययन किए गए ऊतक के नमूनों में हानिकारक जैविक प्रभाव देखा गया है। इसमें बताया गया कि ई-सिगरेट से पड़ने वाले प्रभाव पारंपरिक सिगरेट के समान हैं।
वैज्ञानिक लगभग पांच वर्षों से ई-सिगरेट के प्रभावों का अध्ययन कर रहे हैं। उन्होंने इस अध्ययन में पाया कि ई-सिगरेट सुरक्षित नहीं है। हालांकि यूएनसी लाइनबर्गर व्यापक कैंसर केंद्र के सदस्य, तारन ने कहा कि वैज्ञानिकों का वर्तमान ज्ञान यह निर्धारित करने के लिए अपर्याप्त है कि ई-सिगरेट के सांस सम्बंधित प्रभाव जलने वाले तम्बाकू उत्पादों की तरह है, या उससे कम हैं।
मुख्य निष्कर्ष:
अध्ययन के दौरान युवाओं में वाष्प (वेपर्स) के कारण श्वसन संबंधी बीमारियों के लक्षणों में वृद्धि देखी गई, जैसे कि ब्रोंकाइटिस के लक्षण, अस्थमा में वृद्धि, सांस की तकलीफ आदि। फेफड़े पर ई सिगरेट पीने के प्रभाव दिखाई दिए, जिससे संभावित फेफड़ों की क्षति हो सकती है, जैसे कि फेफड़े की रक्त की आपूर्ति को नुकसान पहुंच सकता है, और इस पर दुनिया भर में देखे गए मामलों की रिपोर्ट बताती है कि यह लिपोइड निमोनिया का संकेत देती है जो देखने में संयुक्त राज्य अमेरिका में महामारी के समान है।
शोधकर्ताओं ने कई जानवरों के अध्ययनों के बारे में बताया, जिनमें आमतौर पर फेफड़ों की क्षति और इम्यूनोसप्रेशन का खतरा बढ़ गया था, जिससे कि उनमें आसानी से बैक्टीरिया या विषाणु संक्रमण बढ़ जाता है।
शोधकर्ता तारन ने कहा हमने प्रयोगशाला में फेफड़े की कोशिकाओं पर वाष्प (वेपर्स) के प्रभाव का भी मूल्यांकन किया। अधिकांश अध्ययनों में फेफड़े की कोशिकाओं में ई-तरल के खतरे दिखाई दिए। शोधकर्ताओं ने ई-तरल घटकों के संभावित स्वास्थ्य प्रभावों की समीक्षा की जिसमें निकोटीन, प्रोपलीन ग्लाइकॉल / वनस्पति ग्लिसरीन और फ्लेवर शामिल हैं। इनके सभी पर प्रयोगशाला आधारित अध्ययनों में हानिकारक प्रभाव दिखाई देते हैं।
शोधकर्ताओं ने चिकित्सकों और ई-सिगरेट के भविष्य के लिए नियम और सिफारिशें भी की हैं। बहुत अधिक धूम्रपान करने वालों के लिए, ई-सिगरेट को सावधानी से धूम्रपान के विकल्प के रूप में निर्धारित किया जाना चाहिए, और केवल काउंसलिंग और अन्य उपचारों के साथ इसकी लत छुड़ानी चाहिए ताकि निकोटीन-उत्पाद के उपयोग को स्थायी रूप से छोड़ने में मदद मिल सके।
तरान ने कहा कि हम सिफारिश करते हैं कि ई-सिगरेट उत्पादों को दवा उत्पादों की तर्ज पर और अधिक कड़ाई से लागू किया जाना चाहिए, बाजार में आने से पूर्व इनकी जांच और मानव पर इसके प्रभावों का अध्ययन किया जाना चाहिए।
शोधकर्ताओं ने इस क्षेत्र में सामने आने वाली चुनौतियों पर भी प्रकाश डाला और भविष्य के शोध के लिए सिफारिशें की, जैसे कि युवाओं के फेफड़ों के विकास पर ई सिगरेट के संभावित हानिकारक प्रभावों पर शोध करने की और आवश्यकता पर जोर दिया।
ई सिगरेट के खतरो को देखते हुए, भारत में 18 सितंबर 2019 को सरकार द्वारा ई-सिगरेट पर पाबंदी लगा दी गई है। अब भारत में ई-सिगरेट के उत्पादन, बेचने, इंपोर्ट, एक्सपोर्ट, ट्रांसपोर्ट, बिक्री, डिस्ट्रीब्यूशन, स्टोरेज और विज्ञापन आदि नहीं किया जा सकता है।
ई-सिगरेट - सामान्य सिगरेट से अलग ई-सिगरेट एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण होता है, इसमें एक बैटरी लगी होती है। बैटरी निकोटिनयुक्त तरल पदार्थ को गर्म करती है, गर्म होने पर एक कैमिकल धुंआ बनता है जिसे सिगरेट की तरह पीया जाता है।
डॉक्टरों को पता है कि सिगरेट पीने से संबंधित पुरानी जानलेवा बीमारियां जैसे फेफड़े का कैंसर और वातस्फीति (इम्फीसेमा) का विकास होने में दशकों लग जाते हैं। साथ ही, वैज्ञानिक रूप से यह साबित करने में भी दशकों लग जाते है कि सिगरेट पीने से कैंसर होता है। जबकि ई-सिगरेट लगभग 10 वर्षों से लोकप्रिय है।
इस अध्ययन के अन्य अध्ययनकर्ता जेफरी गोत्स, एमडी, पीएचडी हैं, कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के सैन फ्रांसिस्को में मेडिसिन के सहायक प्रोफेसर, स्वेन-एरिक जॉर्डन, पीएचडी, ड्यूक विश्वविद्यालय में एनेस्थिसियोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर, येल विश्वविद्यालय में एक सहायक नियुक्ति के साथ हैं। और रॉब मैककोनेल, एमडी, दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय में केके स्कूल ऑफ मेडिसिन में निवारक दवा के प्रोफेसर हैं।