कम लिंगानुपात के कारण रोहतक जिले के भाली आनंदपुर में शादी योग्य लड़कों को लड़कियां नहीं मिल रही हैं। गांव में बहुत से परिवारों में बिहार, बंगाल एव ओडिशा से लड़कियां ब्याहकर लाई गई हैं (फोटो: भागीरथ / सीएसई) 
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खास पड़ताल: हरियाणा में फिर बिगड़ा लिंगानुपात, गर्भ में ही मारी जा रही हैं बच्चियां

हरियाणा में लिंगानुपात में सुधार के दावों को आंकड़ों ने झुठला दिया है। पिछले कुछ सालों से लगातार गिरता लिंगानुपात संकेत देता है कि राज्य में कोख में बेटियों को मारने का सिलसिला नहीं थमा है

Bhagirath

निधि और रमेश (काल्पनिक नाम) के घर किलकारियां गूंजने वाली हैं। पहले एक बच्ची की मां निधि इस साल के शुरुआती माह में गर्भवती हुई थीं। गर्भ में पल रहे नए मेहमान के बारे में पता चलते ही परिवार में खुशियां छा गईं लेकिन इसी के साथ यह इच्छा भी प्रकट होने लगी कि बेटा होना चाहिए। दंपत्ति की भी यही चाहत थी। उन्हें लगता था कि बेटे से परिवार पूरा हो जाएगा और वंश बेल को आगे बढ़ाने वाला मिल जाएगा। बेटे की इस चाहत ने एक दिन उन्हें दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले में पहुंचा दिया जहां उन्होंने अल्ट्रासाउंड के जरिए पता कर लिया कि गर्भ में बेटा ही है।

निधि और रमेश हरियाणा के फरीदाबाद जिले के जिस गांव में रहते हैं, वहां से गाजियाबाद जाना ज्यादा मुश्किल नहीं था। चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े रमेश अपने संपर्कों के माध्यम से लिंग जांच करने वालों तक निधि को लेकर पहुंच गए। दंपत्ति ने किसी को इसकी कानोंकान खबर नहीं लगने दीं क्योंकि वे जानते थे कि यह अवैध है और इसका खुलासा होने पर उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है।

निधि की तरह ही फरीदाबाद जिले में रहने वाली एक महिला ने भी कहीं से गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता कर लिया और जब वह जुलाई 2023 को उसे गिराने छांयसा स्थिति एक अस्पताल में पहुंची, तभी जिले के पीएनडीटी इंचार्ज डॉक्टर मान सिंह को इसकी जानकारी मिल गई। सूचना मिलते ही उन्होंने अपनी टीम के साथ छापा मार दिया।

मान सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि महिला भागने में कामयाब हो गई। उन्होंने मकान मालिक से बोलकर किराए पर चल रहे अस्पताल का ताला तुड़वाया तो उन्हें बच्चे गिराने में इस्तेमाल होने वाले औजारों और दवाओं का जखीरा मिला। टीम को अस्पताल में महिला की ब्लड रिपोर्ट मिली जिससे उसकी पहचान और घर का पता चल गया। जब तक टीम महिला तक पहुंची, वह गर्भ गिरा चुकी थी। उन्होंने बताया कि महिला के गर्भ में पांच माह की लड़की थी।

पुराना कलंक

हरियाणा में बच्चियों को कोख में मारने सिलसिला पुराना है और इसीलिए राज्य कम लिंगानुपात के लिए दशकों से बदनाम रहा है। पिछले 110 साल में हरियाणा के लिंगानुपात में उल्लेखनीय बदलाव नहीं आया है। 2020-21 की स्टेटिस्टिकल हैंडबुक ऑफ हरियाणा में उल्लिखित आंकड़ों के अनुसार, 1901 की जनगणना में राज्य का लिंगानुपात 867 था जो 2011 की पिछली जनगणना में महज 12 अंक सुधरकर 879 ही हो पाया। आजादी के बाद 1951 में हुई पहली जनगणना में राज्य का लिंगानुपात 871 था। स्वतंत्र भारत में अब तक हुई जनगणना में हरियाणा का लिंगानुपात दहाई से भी कम सुधरा है।

2011 की जनगणना में हरियाणा देश में सबसे कम लिंगानुपात वाला राज्य था और इसीलिए साल 2015 में हरियाणा से बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (बीबीबीपी) योजना की शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी। योजना की मदद से लिंगानुपात में हर साल 2 अंकों का सुधार करना था। शुरुआती कुछ वर्षों में हरियाणा में जन्म के समय लिंगानुपात (एसआरबी) में सुधार दिखाई भी दिया। मौजूदा समय में एसआरबी को रियलटाइम में लिंगानुपात पता करने का सबसे उपयुक्त तरीका मान लिया गया है क्योंकि इसके हर महीने जिलेवार आंकड़े जारी होते हैं, जबकि जनगणना में समग्र लिंगानुपात की तस्वीर पता चलती है और इसके आंकड़े भी 10 साल के अंतराल पर जारी होते हैं। 2021 की तयशुदा जनगणना अब तक जारी नहीं की गई है, इसलिए हरियाणा समेत सभी राज्यों के लिंगानुपात की मौजूदा स्थिति को समझने के लिए एसआरबी का ही इस्तेमाल किया जाता है।

एसआरबी सिविल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (सीआरएस) में दर्ज आंकड़ों से निर्धारित होता है। इस सिस्टम में सभी जन्म दर्ज होते हैं। सीआरएस के आंकड़ों के अनुसार, 2015 में बीबीबीपी की शुरुआत के बाद 2016 में पहली बार हरियाणा में एसआरबी 900 के पार गया। 2019 तक इसमें सुधार का सिलसिला जारी रहा और यह 923 के स्तर पर पहुंच गया लेकिन 2020 से एसआरबी में गिरावट का दौर शुरू हुआ जो अब तक जारी है। दिसंबर 2022 में यह 917 पर पहुंच गया। साल 2023 के शुरुआती सात महीनों के दौरान इसमें बड़ी गिरावट दर्ज की गई और एसआरबी 906 पर पहुंच गया। यह पिछले 6 वर्षों का सबसे निचला स्तर है (देखें, बिगड़ता तालमेल)।

सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोग मानते हैं कि इतनी कम अवधि में लिंगानुपात की सच्ची तस्वीर पता नहीं चलती। इसके लिए दीर्घकालीन आंकड़ों का विश्लेषण जरूरी है। यह भी देखा गया है कि कुछ गांवों अथवा जिलों में साल अथवा महीनों में तस्वीर पलट जाती है।

उदाहरण के लिए गुरुग्राम जिले में करीब 9,000 की आबादी वाले दौलताबाद गांव में 2022 में जिले का सबसे कम (583) एसआरबी था लेकिन 2023 के शुरुआती आठ महीनों में 933 पहुंच गया। हरियाणा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से एक प्रभारी नाम न जाहिर करने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि लिंगानुपात में प्राकृतिक रूप से उतार-चढ़ाव आता रहता है, लेकिन हमारी चिंता तब बढ़ती है जब किसी गांव में गिरावट कुछ सालों तक लगातार जारी रहती है।

लिंग जांच का गोरखधंधा

हरियाणा के एसआरबी में गिरावट इस बात की तरफ साफ इशारा है कि राज्य में जन्म से पूर्व भ्रूण जांच चोरी छुपे खूब हो रही है, साथ ही बच्चियों को मारने का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है। फरीदाबाद के पीएनडीटी इंचार्ज मान सिंह भी इस बात से इत्तेफाक रखते हैं, लेकिन साथ ही यह भी बताते हैं कि लिंग जांच हरियाणा में न के बराबर होती हैं।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और यहां तक कि दिल्ली में लिंग जांच को अंजाम देने वाले गिरोह सक्रिय हैं। मान सिंह ने इस साल पीएनडीटी की 7 और गर्भपात (एमटीपी- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी) से संबंधित 6 रेड मारी हैं और ये सभी रेड जिले के बाहर मारी गई हैं। इन रेड में करीब 100 लोगों को वह पकड़वा चुके हैं। वह बताते हैं कि जांच कराने पर 25,000-75,000 रुपए तक खर्च तक खर्च आता है जो विभिन्न दलालों और ऑपरेटर के बीच साझा होता है।

गुरुग्राम के पीएनडीटी इंचार्ज डॉक्टर प्रदीप कुमार भी मानते हैं गिरोह में जितने ज्यादा लोग शामिल होते हैं, रेट भी उतना अधिक हो जाता है। प्रदीप कुमार के अनुसार, “गिरोह के मुखबिर अक्सर दिल्ली की सीमा पर तैनात रहते हैं और हरियाणा नंबर की गाड़ी को उत्तर प्रदेश में जाते देख चौकन्ने हो जाते हैं और आगे खबर कर देते हैं। इसके बाद पूरा गिरोह अंडरग्राउंड हो जाता है। इसे देखते हुए हमें रेड की कार्रवाई करने के लिए उत्तर प्रदेश अथवा दिल्ली के नंबर वाली गाड़ी का इस्तेमाल करना पड़ता है।”

बेटे की चाहत

फरीदाबाद के खेड़ी कला गांव के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में पदस्थ सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर हरजिंदर सिंह साफ मानते हैं कि हरियाणा के कुछ समुदायों में बेटों की प्रबल चाहत है और उन्हें ही तवज्जो दी जाती है। उन्हें यह भी लगता है कि यह प्रवृत्ति अब निचले तबकों में भी आनी शुरू हो गई है लेकिन इनमें अभी उतनी प्रबल नहीं है।

इसी प्रवृत्ति के चलते भ्रूण जांच की मांग उठती है और डॉक्टर को इसमें मोटा मुनाफा नजर आता है और वे इस अवैध काम में लिप्त हो जाते हैं। पितृसत्तात्मक मानसिकता के चलते अवैध रूप से लिंग जांच का अवैध कारोबार फल फूल रहा है।

हरजिंदर सिंह अपने अनुभव के आधार पर कहते हैं कि हरियाणा समेत कुछ राज्यों में पीसी-पीएनडीटी (गर्भधारण पूर्व-प्रसव पूर्ण निदान तकनीक) अधिनियम 1994 में सख्ती है, लेकिन दिल्ली और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कानून औपचारिकता भर हैं। हरियाणा के लोग इन इलाकों में जाकर लिंग की पहचान करा लेते हैं और लड़की का पता चलते ही उसे कोख में मार दिया जाता है।

सामाजिक मुद्दों पर लगातार सक्रिय रोहतक पीजीआई से सेवानिवृत्त सीनियर प्रोफेसर आरएस दहिया स्पष्ट कहते हैं कि हरियाणा के लोग बैल की बजाय ट्रैक्टर से खेती तो करने लगे लेकिन उनकी सोच का आधुनिकीकरण नहीं हुआ। दहिया पितृसत्तात्मक समाज के रस्म रिवाजों को भी लिंगानुपात से जोड़ते हुए बताते हैं कि बेटी पैदा होने के बाद बहुत सी रस्में समाज ने तय कर रखी हैं, जिससे उनके माता-पिता पर आर्थिक बोझ पड़ता है। इससे बचने के लिए भी लोग लड़कियों की उपेक्षा करते हैं।

दहिया ने 1996 में साबू एम जॉर्च के साथ किए और 1998 में इकॉनोमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में प्रकाशित अपने अध्ययन “फीमेल फाएटिसाइड इन रूरल हरियाणा” में पाया था कि अगड़ी जाति की 17 प्रतिशत कन्या भ्रूण का गर्भपात करा दिया गया। यह अध्ययन रोहतक जिले के छह गांवों में किया गया था। दहिया मानते हैं कि मौजूदा समय में भी स्थितियों में विशेष बदलाव नहीं आया है। पहले भ्रूण हत्या शहरों तथा कस्बों में मौजूद अस्पतालों या क्लीनिकों तक ही सीमित थी, मगर अब अल्ट्रासाउंड मशीनों से लैस मोबाइल वैन गांव में जाकर एक निश्चित स्थान व निश्चित समय पर लिंग की पहचान की जाती है। इसके बाद महिलाओं को भ्रूण हत्या के लिए कार्यरत केंद्रों की ओर चलता कर दिया जाता है। अब तो टीके के जरिए भी गर्भ गिराने का चलन देखा जा रहा है। दहिया आगे कहते हैं, “बातचीत में सब यही कहते हैं कि वे लड़के-लड़की में कोई फर्क नहीं देखते।

मगर व्यवहार इसके ठीक उलट करते हैं। लड़के के जन्म पर वे थाली बजाकर खुशी जाहिर करते हैं, जबकि लड़की होने पर मटका फोड़कर मातम मनाते हैं। लड़की के जन्म पर जच्चा को एक घड़ी घी देने का रिवाज है जबकि लड़के के जन्म पर दो घड़ी। इसी तरह लड़का होने छठी मनाते हैं और लड़की होन पर नहीं। ऐसी कई मान्यताएं और रस्में हैं।”

रोहतक जिले में बाल अधिकारों पर दशकों से कार्य कर रहे सुभाष चंदर कहते हैं कि कुछ लोगों का उदाहरण देकर यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि अब लड़के और लड़कियों के बीच भेद खत्म हो गया है, लेकिन सच यह नहीं हैं। लड़कों की चाह यहां लोगों के खून में है। वह कहते हैं कि रोहतक जिले में सरकारी डॉक्टर मोटे पैसे के लिए लिंग जांच के गोरखधंधे में शामिल रहे हैं। उनके अनुसार, यहां एक डॉक्टर तीन बार लिंग जांच करते हुए पकड़े गए हैं लेकिन हर बार छूट गए। सुभाष के अनुसार, जिनके पास मोटा पैसा है, वो राज्य और राज्य के बाहर जाकर जांच करा लेते हैं। सरकारी मशीनरी को ऐसे ज्यादातर मामलों की भनक तक नहीं लगती। सुभाष ने यह भी देखा है कि जिन परिवारों में बेटों की चाहत होती है, अगर वहां बेटियां हो जाएं तो ऐसी बेटियों की देखभाल और पालन पोषण ठीक से नहीं होता। इस कारण वे अधिक समय तक जीवित नहीं रह पातीं।

जर्नल ऑफ पॉपुलेशन इकॉनोमिक्स में अप्रैल 2022 में प्रकाशित अपने अध्ययन “अनवांटेड डॉटर्स : द अनइंटेंटेड कॉन्सिक्वेंसेस ऑफ के बैन ऑन सेक्स सिलेक्टिव अबॉर्शन ऑन द एजुकेशन अटेंनमेंट ऑफ विमेन” में अशोका यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर अनीशा शर्मा लिखती हैं कि पहले बच्चे पर आमतौर लोग लिंग की जांच नहीं कराते। यह जांच मुख्य रूप से दूसरे अथवा तीसरे बच्चे के जन्म से पहले होती है और वह भी तब जब पहला या दूसरा बच्चा लड़की हो। उनका मानना है कि अगर कुल जन्म ही कम हो रहे हों तो लोग लड़कों को प्राथमिकता देते हैं। चूंकि ज्यादातर परिवार अब बच्चों की संख्या सीमित रखने के पक्षधर हैं और अधिकतम दो या तीन बच्चे ही चाहते हैं। इनमें कम से एक बच्चा वे हर कीमत पर लड़का ही चाहते हैं। इसलिए लिंग जांच की मांग उठती है।

अनीशा के अनुसार, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना के बाद लिंगानुपात में सुधार हुआ था लेकिन हालिया गिरावट बताती है कि कहीं न कहीं गड़बड़ी जरूर है। सरकार को गड़बड़ियों को दूर करने की कोशिश करनी चाहिए। अनीशा के अनुसार, लड़कियों के माता-पिता को लगता है कि उनमें निवेश का फायदा नहीं है। यह अपने ससुराल को इसका फायदा देती है, इसलिए भी लड़कियों को प्राथमिकता नहीं दी जाती। अपने अध्ययन में वह लिखती हैं कि भारत में लिंग परीक्षण तकनीक 1971 में आई थी। इसके बाद 1980 के दशक में बड़े पैमाने पर ऐसी क्लिनिक खुल गईं जो लिंग जांच और गर्भपात की सेवाएं देने लगी। 2010 में हुए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि इस तकनीक के व्यापक प्रसार से बड़े पैमाने पर लिंग जांच हुई और गर्भपात हुआ। 1995 से 2005 के बीच प्रति वर्ष 4,80,000 लड़कियों की भ्रूण हत्या हुई। महज 10 वर्षों में 48 लाख लड़कियों मारी गईं। यही वजह थी कि 1971 में जहां 1,000 लड़कों पर लड़कियों का लिंगानुपात 964 था, वह 2011 में घटकर 914 ही रह गया।

एक अधिकारी नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताते हैं कि यह देखा जा रहा है कि जिन परिवारों को लिंग जांच करानी होती है वह एएनसी (एंटी नेटल केयर) ही दर्ज नहीं करवाते। ऐसे लोग कुछ महीनों तक प्रेग्नेंसी छुपाकर रखते हैं। लिंग जांच कराने के बाद वे लड़के की डिलीवरी और लड़की का गर्भपात यानी एमटीपी करा लेते हैं। वह यह भी बताते हैं कि प्राइवेट अस्पतालों और क्लीनिकों से नियमित रूप से गर्भपात का रिकॉर्ड नहीं आ रहा है और सरकारी अस्पतालों में गर्भपात न के बराबर होता है। अधिकारी कहते हैं कि सरकार एक तरफ पीएनडीटी कानून के जरिए सख्ती बरत रही है, वहीं एमटीपी कानून में 2021 में संशोधन करके गर्भपात को आसान बनाकर भ्रूण हत्या को बढ़ावा दे रही है। उनका कहना है कि पहले एमटीपी 12 हफ्ते से अधिक होती है और इसके लिए दो डॉक्टरों का परामर्श आवश्यक था। लेकिन अब 24वें हफ्ते तक गर्भपात की इजाजत है। उनका कहना है कि अधिकांश मामलों में कॉन्ट्रोसेप्टिक फेलियर का हवाला देकर गर्भपात कराया जा रहा है। और यह गर्भपात मुख्य रूप से लड़कियों का ही हो रहा है। प्राइवेट डॉक्टर यह बताने के लिए बाध्य नहीं है कि गर्भपात लड़के का हुआ है या लड़की का और न ही सरकार से इसकी रिपोर्ट मांगी जाती है।

फरीदाबाद की एक आशा वर्कर बताती हैं कि उनके क्षेत्र में बहुत सी प्रवासी महिलाएं ऐसी हैं जो गर्भवती होने के कुछ महीनों बाद उत्तर प्रदेश या बिहार के गांव चली जाती हैं। कई बार ये महिलाएं फोन नंबर बंद कर लेती हैं जिससे उनसे संपर्क टूट जाता है। कुछ महिलाएं लौटकर आने पर बताती हैं कि उनका बच्चा खराब हो गया। साल में कम से कम दो ऐसे मामले उनकी नजर में आते हैं। आशा वर्कर का कहना है कि संभव है कि इनमें से कुछ महिलाओं ने लिंग जांच के बाद गर्भपात करा लिया हो। हालांकि वह यह भी मानती हैं कि आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के लिए ऐसा करना मुश्किल है क्योंकि इस काम में बहुत ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ती है।

कानून कितना कारगर

देश में बिगड़ते लिंगानुपात को देखते हुए 1994 में पीएनडीटी कानून बनाया गया था। जम्मू एवं कश्मीर को छोड़कर यह पूरे देश में लागू है। यह कानून जन्म से पूर्व लिंग परीक्षण या जांच को निषेध करता है। हरियाणा में कानून पर सख्ती से अमल के जिला एप्रोप्रिएट अथॉरिटी का गठन किया गया है। इस अथॉरिटी के पास सिविल कोर्ट की शक्तियां हैं। हर जिले में पीएनडीटी अधिकारी की तैनाती की गई है जो भ्रूण जांच और गर्भपात की सूचना पर कार्रवाई करते हैं। सूचना देने वालों को एक लाख का इनाम दिया जाता है। पीएनडीटी अधिकारी डिकॉय की मदद से लिंग जांच और गर्भपात करने वालों पर रेड डालकर कार्रवाई करते हैं।

एक आरटीआई के जवाब में डायरेक्टर जनरल हेल्थ सर्विसेस ने बताया है कि जुलाई 2015 से मार्च 2023 तक ऐसी 700 रेड मारी गई हैं। गुरुग्राम के सिविल सर्जन वीरेंद्र यादव डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि इस साल हमने सबसे अधिक 15 रेड मारी हैं। इनमें से आठ से नौ रेड उत्तर प्रदेश में मारी गई हैं। हालांकि इसके बावजूद जिले के लिंगानुपात में बड़ी गिरावट आई है। यादव कहते हैं कि हम इसके कारणों की पड़ताल कर रहे हैं। हरियाणा के एक पीएनडीटी अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि कई बार रेड के इच्छित परिणाम नहीं मिलते क्योंकि दूसरों राज्यों की पुलिस और प्रशासन का उचित सहयोग नहीं मिलता। कुछ राज्यों में तो स्वास्थ्य विभाग की ही आरोपियों से मिलीभगत होती है।

कानून का एक स्याह पक्ष यह है कि इसमें गिरफ्तार और दर्ज होने वाले मामलों में अधिकांश आरोपियों के खिलाफ दोष सिद्ध नहीं हो पाता। परिवार एवं स्वास्थ्य कल्याण मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2022-23 इस तथ्य पर रोशनी डालते हुए बताती है कि देश में पीसीपीएनडीटी के तहत कुल 3,383 कोर्ट केस दाखिल हुए हैं जिनमें से 663 मामलों में भी अपराध सिद्ध हुआ है। कुल 18 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में एक भी अपराध सिद्ध नहीं हुआ है (देखें, कानून नाकाफी)। मान सिंह कहते हैं कि कई मामलों में गवाह और डिकॉय मुकर जाते हैं। इससे केस कमजोर पड़ जाता है और आरोपी छूट जाते हैं।

सूचना के अधिकार से हासिल जानकारी के अनुसार, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ योजना की शुरुआत के बाद कुछ जिलों में पीएनडीटी कानून के तहत होने वाली कार्रवाईयों में तेजी आई, लेकिन बाद के वर्षों में शिथिलता आ गई। उदाहरण के लिए रोहतक जिले में 2016, 2017 और 2018 में क्रमश: 8, 13 और 8 कार्रवाईयां हुईं लेकिन इसके बाद के पांच वर्षों 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 (जुलाई तक) में कार्रवाइयां घटकर क्रमश: 6, 4, 5, 4 और 2 ही रहीं। इसी तरह जींद जिले में 2016 से 2018 के बीच तीन वर्षों में पीएनडीटी और एमटीपी एक्ट के तहत कुल 64 कार्रवाइयां हुईं लेकिन बाद के 2019 से 2023 के बीच पांच वर्षों में कुल 34 कार्रवाइयां की गईं। अंबाला जिले में 2016 में 13, 2017 में 8, 2018 में 6, 2019 में 2, 2020 में 6, 2021 में 8, 2022 में 5 और 2023 में अब तक 4 कार्रवाइयां हुईं।

ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वीमेंस अलायंस की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमती सांगवान मानती हैं कि कानून के सख्त क्रियान्यवन पर काम नहीं हो रहा है। लिंगानुपात को ठीक रखने की जिम्मेदारी कमिटियों में काम करने वाले लोग नहीं हैं। उनका कहना है कि वर्तमान में लिंग जांच के लिए पोर्टेबल मशीनों का प्रयोग काफी बढ़ गया है। प्रशासन इसका प्रयोग रोकने में असमर्थ है। अब तो घर घर जाकर लिंग जांच से जुड़ी सेवाएं दी जा रही हैं।

हरियाणा के स्वास्थ्य विभाग में तैनात एक वरिष्ठ अधिकारी नाम गुप्त रखने की शर्त पर एक सुझाव देते हुए कहते हैं कि पीएनडीटी कानून के तहत लिंग के खुलासे की मनाही है लेकिन अगर लिंग बता दिया जाए और लड़की होने की स्थिति में गर्भपात अवैध कर दिया जाए तो गिरते लिंगानुपात में सुधार किया जा सकता है। मान सिंह भी मानते हैं कि कानून को और सख्त करने की आवश्यकता है जिससे आरोपियों को सख्त सजा मिले और वह दोबारा लिंग जांच का गैरकानूनी काम न कर सके।