"हमें पानी दो, हमें पानी दो, हमें पानी दो।"
22 जनवरी, 2025 की दोपहर को राजौरी के सरकारी मेडिकल कॉलेज (जीएमसी) की शांत दीवारों में तीन बहनों की चीखें गूंज उठीं। इनकी उम्र कोई 16, 18 और 23 बरस के बीच थी। उन्हें अस्पताल के ओपीडी के ठीक सामने स्थित आइसोलेसन वार्ड में ले जाया जा रहा था। बाद में उन्हें हवाई मार्ग से पीजीआई चंडीगढ़ भेज दिया गया।
जम्मू और कश्मीर के राजौरी जिले के एक छोटे से गांव बढ़ाल ने पिछले साल दिसंबर से ही सुर्खियां बटोरनी शुरू कर दी थीं। यह वह समय था जब त्रासदी ने पहली बार पीर पंजाल पहाड़ियों के बीच मौजूद इस गांव में अपने पैर पसारे।
सात दिसंबर की सुबह, फजल हुसैन और उनकी पत्नी व उनके चार बच्चों को गंभीर पेट दर्द, उल्टी और उनींदापन की शिकायत हुई। यह सब एक दिन पहले सामुदायिक भोज के बाद हुआ। वे सभी उस सामुदायिक भोज का हिस्सा थे, जिसे "खत्तम-ए-शरीफ" कहा जाता है। अगली ही सुबह, उनकी मौत हो गई। इसी भोज में शामिल तीन अन्य सबसे अधिक प्रभावित व्यक्तियों मुहम्मद असलम, मुहम्मद यूसुफ, और मुहम्मद रफीक के परिवार भी मौजूद थे।
जिला मुख्यालय राजौरी शहर से 60 किलोमीटर दूर बढ़ाल गांव इस त्रासदी से उबरने की कोशिश कर ही रहा था कि मुहम्मद असलम के साले फजल हुसैन के ऊपर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। उनके छह बच्चे बीमार पड़ गए और सभी की मृत्यु हो गई। 15 जनवरी को, असलम के एक मामा और एक मौसी का भी इंतकाल हो गया।
अब तक 50 दिनों के भीतर 3,800 की आबादी वाले गांव में तीन आपस में जुड़े परिवारों से 17 जिंदगियां इस रहस्यमय बीमारी का शिकार हो चुकी हैं। इनमें 14 बच्चे और एक गर्भवती महिला भी शामिल हैं। इसने विशेषज्ञों को हैरान कर दिया है और पूरे समुदाय को तोड़कर रख दिया है। इस रहस्यमयी बीमारी के कारण सबसे कम उम्र की पीड़िता, एक नाबालिग लड़की यासमीन, 19 जनवरी, 2025 को गहन चिकित्सा देखभाल के बावजूद चल बसी।
सभी प्रभावित व्यक्तियों ने अस्पताल में भर्ती होने के कुछ दिनों के भीतर बुखार, दर्द, मतली, अत्यधिक पसीना और बेहोशी की शिकायत की थी।
डॉक्टरों ने प्रारंभिक जांच में पाया है कि इस रहस्यमय बीमारी के पीछे कीटनाशक एक संभावित वजह हो सकती है। वहां मौजूद एक "बावली" से लिए गए नमूनों में कीटनाशक और कीटाणुनाशक पाए गए। इसके चलते अधिकारियों ने जल स्रोत को सील कर दिया और 2023 के "भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता" की धारा 163 के तहत सख्त प्रतिबंध लागू कर दिए, जिसमें सार्वजनिक समारोहों और क्षेत्र में प्रवेश पर पाबंदी लगाई गई।
मुहम्मद नईम ने अपने भाई की शादी के लिए की गई सभी तैयारियों को रोकना पड़ा। शादी के लिए दुल्हा समेत केवल तीन लोग दुल्हन को लाने के लिए पहाड़ों पर गए। वह दीवार से सजावट हटाते हुए रोते हुए कहते हैं, “हम क्या कर सकते हैं? मैंने अपने 50 साल की जिंदगी में ऐसा कुछ नहीं देखा।”
जैसे-जैसे मरने वालों की संख्या बढ़ी, विशेषज्ञों की जिज्ञासा भी बढ़ी। कई दिनों की रिसर्च और परीक्षण के बाद, उन्होंने न्यूरोटॉक्सिन्स की उपस्थिति का पता लगाया — ये रसायनों का एक ऐसा समूह है जो केंद्रीय और परिधीय तंत्रिका तंत्र के कार्य को बाधित करता है। इनमें से सबसे प्रभावी न्यूरोटॉक्सिन शराब (इथेनॉल) पाया गया। इसके अलावा, स्वाद बढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाला मोनोसोडियम ग्लूटामेट और कुछ तले और बेक किए गए खाद्य पदार्थों में पाया जाने वाला एक्रिलामाइड भी मिला। इनका लगातार सेवन मस्तिष्क को सिकोड़ सकता है, संज्ञानात्मक गिरावट, स्ट्रोक और व्यवहार संबंधी विकार पैदा कर सकता है।
हालांकि, अभी तक किसी भी वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण का पता नहीं चला है। प्रभावित व्यक्तियों में मुख्य लक्षण बुखार और पसीना थे।
बढ़ाल में हुई मौतों की जांच का नेतृत्व कर रहे वरिष्ठ महामारी विशेषज्ञ और सामुदायिक चिकित्सा विभाग के प्रमुख शुजा कादरी ने कहा कि अब तक की सभी जांचों से यह स्पष्ट हो गया है कि गांव में हुई मौतें किसी वायरस या संचारी रोग के कारण नहीं हुई हैं। कादरी ने डाउन टू अर्थ को बताया “हमने जांच को भोजन में पाए जाने वाले विषाक्त पदार्थों की पहचान तक सीमित कर दिया है।”
उन्होंने कहा, “फिलहाल हमारी महामारी विज्ञान जांच से पता चलता है कि यह न तो कोई बैक्टीरियल, वायरल, प्रोटोजोन और न ही कोई जूनोटिक बीमारी है। एकमात्र शेष संभावना विषाक्त पदार्थों की है।”
“विषाक्त पदार्थों का मुख्य प्रसार भोजन के माध्यम से हो रहा है। हमने निष्कर्ष निकाला है कि यह विषाक्त पदार्थों का परिणाम है। अब केवल बहस इस बात पर है कि यह जानबूझकर किया गया या दुर्घटनावश हुआ।”
वायरल या बैक्टीरियल संक्रमण का कोई प्रमाण न मिलने के बावजूद भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) व रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) और काउंसिल ऑफ इंडस्ट्रियल एंड रिसर्च सेंटर (सीएसआईआर) जैसी प्रमुख प्रयोगशालाओं द्वारा किए गए 100 से अधिक परीक्षण बेनतीजा रहे। फिर भी गांव को तीन क्षेत्रों में विभाजित कर नियंत्रण में रखना अन्यायपूर्ण बताया जा रहा है।
तीन बच्चों की मां रूबीना कौसर के लिए गांव में जीवन किसी नरक से कम नहीं है। हर रात, वह अपने ससुराल से तीन किलोमीटर पैदल चलकर अपने माता-पिता के घर जाती हैं ताकि अपने बच्चों को सुरक्षित रख सकें। वह कहती हैं "मेरा पति कुवैत में काम करता है। मैं अपने घर में खाना बनाने या यहां तक कि बैठने से भी डरती हूं।" वह कहती हैं, "मैं अपने बच्चों को ऐसी बीमारी से मरते हुए नहीं देख सकती।"
इसी तरह की आशंकाएं असलम के पड़ोसी इश्फाक अहमद भी साझा करते हैं, जिनके छह बच्चे मर चुके हैं। उन्हें अधिकारियों द्वारा आइसोलेशन वार्ड में रखा गया है। इशफाक ने कहा कि "मैं पिछले दो महीने से सोया नहीं है। मौत का डर हर रात मुझे जकड़ लेता है।"
इस दूरदराज के क्षेत्र में हुई मौतों ने स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुंच में मौजूद भारी असमानताओं को उजागर किया है। 21 जनवरी को इस क्षेत्र के दौरे के दौरान जम्मू और कश्मीर के नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने दूरस्थ क्षेत्रों में बेहतर चिकित्सा बुनियादी ढांचे की तत्काल आवश्यकता को स्वीकार किया। उन्होंने पीड़ित परिवारों को सरकार के समर्थन का आश्वासन दिया और कहा कि यदि किसी आपराधिक मंशा का पता चलता है तो जिम्मेदारों को जवाबदेह ठहराया जाएगा।
इस बीच ग्रामीण भय से घिरे हुए हैं। वे साझा जल स्रोतों से बच रहे हैं और हर भोजन को संदेह की नजर से देख रहे हैं। इशफाक निराशा में कहते हैं कि "अब हमें नहीं पता कि क्या सुरक्षित है।"
बहरहाल पिछले कुछ हफ्तों से, गृह मंत्रालय (एमएचए) की 11-सदस्यीय उच्चस्तरीय अंतर-मंत्रालयी टीम, एनसीडीसी, पीजीआई चंडीगढ़, एम्स और अन्य संस्थानों के विशेषज्ञों के साथ इन रहस्यमयी मौतों की जांच कर रही है।
23 जनवरी को चंडीगढ़ की सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी (सीएफएसएल) ने बढ़ाल गांव का दौरा किया। जीएमसी राजौरी के प्रिंसिपल अमरजीत सिंह भाटिया ने उम्मीद जताई कि पीड़ित जल्द ही ठीक हो जाएंगे और इस बीमारी का पता लगाया जा सकेगा।
भाटिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "चंडीगढ़ और लखनऊ की फॉरेंसिक विभागों की टीमें और गृह मंत्रालय (एमएचए) की टीम यहां मौजूद हैं। सभी मौतों में एक सामान्य कारण दिमाग पर प्रभाव और तंत्रिका तंत्र को नुकसान है। जीएमसी राजौरी में भर्ती नौ मरीजों में से पांच ठीक हो चुके हैं। हमने एहतियाती सीटी स्कैन भी किए हैं, लेकिन एक बार जब विष दिमाग तक पहुंच जाता है, तो ठीक होना मुश्किल हो जाता है। हमें उम्मीद है कि जल्द ही इस बीमारी के कारण का पता लग जाएगा। हम लोगों को शिक्षित करेंगे और जागरूकता बढ़ाएंगे, जैसे कि उन्हें भोजन की अदला-बदली न करने की सलाह देना।"
उन्होंने कहा कि अब तक, 200 से अधिक नमूने विभिन्न संस्थानों में परीक्षण के लिए भेजे जा चुके हैं। एमएचए के एक निदेशक-स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में केंद्रीय अंतर-मंत्रालयी टीम 19 जनवरी से राजौरी शहर में डेरा डाले हुए है।
भाटिया कहते हैं कि इन ठीक होने वाले मामलों ने हमारे लिए उम्मीद जगाई है।