स्वास्थ्य

बीमारियों को महामारी में बदलने से रोक सकेगा यह मॉडल, वैज्ञानिकों ने किया विकसित

इस मॉडल की मदद से बीमारियों में आने वाले म्युटेशन की निगरानी रखी जा सकती है और उन्हें महामारी का रूप लेने से रोका जा सकता है

Lalit Maurya

आज दुनिया भर में दूरियां कम हो गयी हैं। लोग एक दूसरे से इस तरह से जुड़े हुए हैं, कि किसी भी बीमारी को महामारी बनने में वक्त नहीं लगता। यही वजह है कि दुनिया भर में कोविड-19 ने बड़ी तेजी से महामारी का रूप ले लिया है। इससे निपटने के लिए दुनिया भर के नेता और राष्ट्राध्यक्ष स्वस्थ्य और आर्थिक सुरक्षा के लिए मैथमैटिकल (गणितीय) मॉडल्स पर भरोसा कर रहे हैं। इसी कड़ी में यूनिवर्सिटी ऑफ प्रिंसटन और कार्नेगी मेलन के शोधकर्ताओं ने एक नया मॉडल विकसित किया है। जिसकी मदद से बीमारियों में आने वाले म्युटेशन पर निगरानी रखी जा सकती है और उन्हें महामारी का रूप लेने से रोका जा सकता है। वर्तमान में शोधकर्ता इस मॉडल का विश्लेषण करने में लगे हुए हैं और यह जानने का प्रयास कर रहे हैं, कि यह मॉडल महामारियों की रोकथाम में कितना कारगर है। जिससे इस मॉडल को जल्द से जल्द लागु किया जा सके| इससे जुड़ा अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल पनास में प्रकाशित हुआ है| इस अध्ययन के शोधकर्ता एच विंसेंट पुअर ने बताया कि "हम चाहते हैं कि क्वारंटाइन जैसे उपायों पर विचार किया जाए, ऐसे समय में जितना हो सके लोगों को एक दूसरे से दूर रखा जाए। जिससे यह पता चल सके कि इसका महामारी के फैलने और रोगाणुओं के म्युटेशन पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है।"

कैसे काम करता है यह मॉडल

प्रोफेसर विन्सेंट ने बताया कि वर्तमान में उपलब्ध ज्यादातर मॉडल महामारी को ट्रैक करने के लिए डॉक्टरों और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से जुड़े आंकड़ों का उपयोग करके रोग और उसकी प्रगति के बारे में भविष्यवाणियां करते हैं। इन ज्यादातर मॉडलों में बीमारियों में आने वाले परिवर्तनों को मापने के लिए डिजाईन नहीं किया गया है। यही वजह है कि नीति निर्माता इससे निपटने के लिए सही नीतियां नहीं बना पाते। यदि यह पता चल जाये कि म्युटेशन किस तरह से बीमारियों के फैलने में मदद कर सकता है तो सही समय में उससे निपटा जा सकता है। उनके अनुसार यह सभी चीजें वास्तविकता में घटती हैं पर उन्हें कंप्यूटर मॉडल में मापदंडों के द्वारा निर्धारित किया जाता है। जिनकी मदद से म्युटेशन और बीमारियों के प्रसार को समझा जा सकता है। यह मॉडल सोशल नेटवर्कस में प्रसारित हो रही सूचनाओं के विश्लेषण पर काम करता है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह सूचनाएं भी जैविक संक्रमण के प्रसार की तरह ही फैलती हैं। जोकि जानकारी में आने वाले थोड़े से बदलाव से प्रभावित हो जाती हैं। जैसे ही किसी को कुछ अलग सूचना मिलती है वो उसे दूसरों में प्रसारित कर देता है, इसी तरह सुचना फैलती जाती है। सूचनावों में आने वाले इस तरह के बदलावों की मॉडलिंग करके यह जाना जा सकता है कि किस तरह यह जानकारी उसके पाने वालों पर प्रभाव डाल रही है। डॉ विन्सेंट के अनुसार अलग-अलग सूचनाओं के प्रसार की दर अलग होती है। यह मॉडल, नेटवर्क में प्रसारित होने पर सूचनाओं में कैसे बदलाव आता है उसे माप सकता है। साथ ही यह बदलाव उन सूचनाओं के प्रसार पर क्या असर डालता है उसकी भी गणना कर सकता है। हालांकि महामारियों के प्रसार के समय परिस्थितियां हर दिन बदलती रहती हैं, ऐसे में सटीक जानकारी प्राप्त करना बहुत कठिन होता है। जैसा की हमने कोविड-19 वायरस के साथ देखा है। यह बीमारी जंगल की आग की तरह फैलती जा रही है। कई बार तुरंत निर्णय लेने होते हैं। हर बार आंकड़ों को इकठ्ठा और विश्लेषण करने तक इंतज़ार नहीं कर सकते। ऐसे में इस तरह का मॉडल इन बीमारियों से निपटने में कारगर सिद्ध हो सकता है।

शोधकर्ताओं को पूरी उम्मीद है कि यह मॉडल नीति निर्माताओं के लिए एक कारगर टूल साबित हो सकता है, जो बीमारियों और उसके प्रभावों को बेहतर ढंग  से समझने में मदद कर सकता है। जैसा की कोविड-19 के मामले में हुआ यह वायरस अपनी भविष्यवाणी की तुलना में बहुत अधिक तेजी से फैल रहा है। यही वजह है कि इस तरह की महामारियों से निपटने के लिए आज हमें और सटीक एवं प्रभावी साधनों की जरुरत है।