स्वास्थ्य

क्या पैसे वसूल कर खून की कमी दूर करना चाहती है झारखंड सरकार?

झारखंड के रांची के रिम्स अस्पताल में सरकारी ब्लड बैंक द्वारा ब्लड के बदले प्रोसेसिंग शुल्क की वसूली के बाद कई सवाल उठ रहे हैं

Md. Asghar khan

28 नवंबर 2021 को झारखंड की राजधानी रांची के गढ़वा इलाके में रहने वाली शगुफ़्ता को अचानक ओ-निगेटिव ब्लड ग्रुप की जरूरत पड़ती है। शगुफ्ता गर्भवती थीं, वह एक निजी नर्सिंग होम में भर्ती थीं। नर्सिंग होम में उन्हें ब्लड नहीं मिलता, उनके परिजन ब्लड लेने के लिए सबसे बड़े सरकारी अस्पताल राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान, रांची (रिम्स) आते हैं। जहां पहले उन्हें ब्लड डोनेट करने के लिए कहा जाता है। उनके रिश्तेदार 23 वर्षीय सैफ रामगढ़ से रांची आकर ब्लड डोनेट करते हैं। बावजूद इसके शगुफ्ता के परिजनों से ब्लड की एक यूनिट के बदले 1050 रुपए प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में देना पड़ता है।

झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग की ओर से 20 नवंबर 2021 को भेजे गए एक संकल्प पत्र के बाद रिम्स में लोगों से ब्लड के बदले यह शुल्क वसूला गया। इस पत्र में नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल व स्टेट ब्लड ट्रांसफ्यूजन काउंसिल के दिशा निर्देशों का हवाला दिया गया है, जिसमें सरकारी व गैरसरकारी अस्पतालों में ब्लड प्रोसेसिंग चार्ज के रूप में अधिकतम 1,050 व 1,450 रुपए लेने का प्रावधान है। इससे पूर्व नेशनल हेल्थ मिशन की गाइडलाइंस के मुताबिक गैर-सरकारी अस्पताल के मरीजों के लिए 2018 तक प्रोसेसिंग चार्ज 350 रुपए था, लेकिन 2018 के बाद इसे मुफ्त कर दिया गया।  

सरकार के इस पत्र के बाद से लाइफ सेवर्स, रांची के संस्थापक अतुल गेरा रांची स्थित राजभवन के समक्ष धरने पर बैठे हैं। अतुल न केवल प्रोसेसिंग चार्ज के खिलाफ हैं, बल्कि सरकारी अस्पतालों में दान में मिले ब्लड को मुफ्त मुहैया कराने, सभी ब्लड बैंकों में ब्लड कंपोनेंट सेपरेटर मशीन की व्यवस्था कराने और निजी ब्लड बैंक में शुल्क की राशि घटाने की मांग भी कर रहे हैं।

गेरा के साथ जब कई सामाजिक संस्थाएं विरोध पर उतरी तो झारखंड के स्वास्थ्य विभाग के असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी (सिविल सर्जन) की ओर से 05.12.2021 को पत्र जारी कर कहा गया कि 20.11.2021 को जारी संकल्प पत्र के आदेश को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाता है। और निर्देश दिया जाता है कि सरकारी ब्लड बैंक, निजी अस्पतालों को उपलब्ध कराए गए ब्लड की सूची स्वास्थ्य विभाग को सौंपेंगे, जिसके बाद विभाग सभी अस्पतालों को उनके द्वारा लिये गए कुल रक्त के प्रोसेसिंग चार्ज बिल भेजेगा। जिसका भुगतान निजी अस्पतालों-नर्सिंग होम को स्वास्थ्य विभाग को करना होगा। यानी कि यह शुल्क लोगों की बजाय निजी अस्पतालों से वसूला जाएगा। 

झारखंड एड्स कंट्रोल सोसाइटी के परियोजना निदेशक भुवनेश प्रताप सिंह ने डाउन टू अर्थ से कहा कि पत्र में कहीं भी यह बात नहीं है कि शुल्क किसी मरीज से लिया जाएगा। रक्त की कालाबाजारी रोकने के उद्देश्य से पत्र में बिंदुवार निर्देश दिये गए हैं। गैर-सरकारी अस्पतालों से कोई मरीज सरकारी रक्त केंद्रों पर ब्लड के लिए आता है, चाहे वो किसी भी वर्ग (आर्थिक दृष्टिकोण से) का हो तो उससे कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। बल्कि वो जिस अस्पताल से आ रहा है वहां से प्रोसेसिंग चार्ज लिया जाएगा, जो कि पहले ऐसा नहीं होता आ रहा था। क्योंकि सभी प्राइवेट अस्पताल, सरकारी अस्पताल से मुफ्त में ब्लड लेते हैं और मरीज से भी प्रोसेसिंग चार्ज वसूलते हैं।”

वहीं अतुल गेरा गैर-सरकारी अस्पतालों से प्रोसेसिंग चार्ज वसूले जाने के फैसले का भी विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस फैसले के बाद गैर-सरकारी अस्पताल ब्लड शुल्क के नाम पर मरीजों से मनमानी राशि वसूलेंगे।

अतुल गेरा ने डाउन टू अर्थ को बताया, “गैर-सरकारी अस्पतालों में गरीबों की एक बड़ी आबादी भी उधार या कर्जा लेकर इलाज करवाती है। ऐसे में, जो ब्लड इन लोगों को रिम्स से मुफ्त मे मिलता था, अब प्राइवेट अस्पताल रिम्स से ब्लड लेकर मनमानी कीमत वसूलेंगे। सरकार को चाहिए कि पहले जिस तरह से ब्लड देने की प्रक्रिया है उसे रहने दें। साथ ही हमारी मांग यह भी है कि जो सरकारी और गैरसराकरी अस्पतालों में बिना डोनर के ब्लड नहीं देने का जो प्रचलन है, वो भी बंद हो।”

राष्ट्रीय एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको), नेशनल हेल्थ मिशन (एनएचम) की गाइडलाइंस के मुताबिक नॉन-रिप्लेसमेंट में ब्लड देना है। लेकिन झारखंड में गैर-सरकारी व सरकारी ब्लड बैंक जिसको ब्लड देते हैं उसके बदले उसी वक्त उसके रिश्तेदार या जानने वाले से ब्लड डोनेट करवाते हैं अन्यथा उन्हें ब्लड नहीं दिया जाता है। झारखंड समेत भारत के लगभग अस्पतालों में ऐसा होता है। 

रिम्स में भर्ती पाकुड़ के मरीज अली उल्लाह उन्हीं में से एक उदाहरण हैं। इनका हर्निया का ऑपरेशन होना है और इन्हें ब्लड की जरूरत है। लेकिन इनके पास कोई डोनर नहीं है। अली उल्लाह के बेटे अब्दुल आलीम ने डाउन टू अर्थ को बताया कि रिम्स ब्लड बैंक वालों ने उन्हें कहा कि ब्लड तभी दिया जाएगा, जब वो किसी से ब्लड दिलवाएंगे. फिलहाल वो मदद की लोगों से गुहार लगा रहे हैं। 

अतुल गेरा का कहना है कि पूरे राज्य में अस्पताल चाहे सरकारी हों या गैरसरकारी, सभी डोनर के नाम पर मरीजों को काफी परेशान करते हैं। ब्लड का पैसा भी मनमानी वसूलते हैं। साथ ही इसके बदले डोनर से फौरन ब्लड भी लेते हैं। कई बार समय पर जब डोनर नहीं मिल पाता है तो मरीज को जान तक गंवानी पड़ती है।

डोनर के लिए बाध्य किये जाने के सवाल पर निदेशक भुवनेश प्रताप सिंह कहते हैं कि झारखंड में ब्लड की काफी किल्लत है। इसलिए बिना रिप्लेसमेंट के संभव नहीं कि ब्लड उपलब्ध कराया जाए।

नियमानुसार सरकारी-गैरसराकरी ब्लड बैंक को हर महीने अपनी जरूरतों के मुताबिक रक्त शिविर का आयोजन कर रक्त इकट्टा करना होता है। सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि राज्य में सरकार और गैर-सरकारी संस्थाएं छोड़ दें, तो निजी अस्पतालों के ब्लड बैंकों द्वार ऐसे शिविर का आयोजन न के बराबर किया जाता है।

एक रिपोर्ट के मुताबिक राजधानी रांची में रोजाना 350-400 यूनिट ब्लड की जरूरत होती है। सालाना राज्य की जरूरत 3.15 लाख यूनिट है। लेकिन 2020-21 में 2.15 यूनिट ही रक्तदान हो पाया। राज्य में कुल 59 ब्लड बैंक है जिसमें 31 नाको सपोर्डेट, बाकि 28 निजी है। राज्य में करीब 4000 थैलेसीमिया से पीड़ित बच्चे हैं। 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और 55 प्रतिशत महिलाएं एनेमिक। ऐसे में अक्सर इनके समक्ष जान का संकट बना रहता है। इन्हीं संकटों के मद्देनजर राज्य सरकार ने सवा सौ नये ब्लड बैंक को खोलने की घोषणा करीब छह माह पूर्व ही की थी, जो धरातल पर अब तक नहीं उतर पाया है।