स्वास्थ्य

डॉक्टर दे रहे हैं बच्चों को एंटीबायोटिक्स, जीवन भर झेलना पड़ सकता है दुष्प्रभाव

DTE Staff

ब्रिटेन के डॉक्टर हर साल तकरीबन 30  करोड़ मरीजों को देखते हैं और इसमें से कम से कम एक चौथाई बच्चे होते हैं। इन 7-8 करोड़ बच्चों में से लगभग दो-तिहाई बच्चे कफ (खांसी), गले में सूजन या कानों में दर्द को दिखाने आते हैं। ये ऐसे रोग हैं जो छोटे बच्चों को कम ही होते हैं।

डॉक्टर और नर्सें इस तरीके की तकलीफों को श्वसन नली के गंभीर संक्रमणों के तहत वर्गीकृत करते हैं। यह ऐसे रोग माने जाते हैं, जिन पर एंटीबायोटिक्स का बेहद कम या न के बराबर असर होता है और यह अपने आप कुछ समय में ठीक हो जाते हैं। इसके बावजूद कंसल्टेशन के 30 फीसदी मामलों में एंटीबायोटिक्स लेने की सलाह दी जाती है। यानी सालाना 1.3 करोड़ गैर जरूरी एंटीबायोटिक प्रिसक्रिप्शन (सलाह) दिए जाते हैं। इससे एंटीबायोटिक्स तो बर्बाद होते ही हैं, साथ में बच्चों की सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ने की संभावना रहती हैं। 

ब्रिटेन में 2.5 लाख से ज्यादा बच्चों पर किए गए एक अध्ययन में सामने आया कि प्री-स्कूल में पढ़ने वाले जिन बच्चों ने पिछले साल श्वसन नली के संक्रमणों के लिए दो या उससे ज्यादा एंटीबायोटिक कोर्स लिए थे, उनमें कोई एंटीबायोटिक ट्रीटमेंट न लेने वाले बच्चों की तुलना में अगले ट्रीटमेंट का असर न होने की संभावना 30 फीसदी संभावना बढ़ गई थी। इस अध्ययन में दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं से ग्रसित बच्चों को शामिल नहीं किया गया था क्योंकि इससे उन्हें संक्रमण होने का खतरा रहता।

प्रतिरोधक क्षमता का मामला

यह बात सभी जानते हैं कि एंटीबायोटिक्स का गैरजरूरी उपयोग बैक्टीरिया को बदलने पर मजबूर करता है और इससे एंटीबायोटिक्स के प्रति शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने लगती है। लेकिन लोगों को यह भ्रांति है कि यह प्रतिरोधक क्षमता सिर्फ उन्हीं लोगों में विकसित होती है जो एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल ज्यादा समय के लिए और कई बार करते हैं या फिर ऐसे मरीजों में विकसित होती है जो अन्य बीमारियों से ग्रसित हैं जो उन्हें और बीमार बनाती हैं।

एंटीबायोटिक लेना जरूरी है या नहीं, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है। संभावना रहती है कि एंटीबायोटिक लेने वाले व्यक्ति में इसके लिए प्रतिरोधिक क्षमता विकसित होगी। रिसर्च में सामने आया कि बेहद कम मात्रा में भी एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है और बच्चों में तो इसका गैरजरूरी उपयोग बेहद खतरनाक हो सकता है। अगर आप सोचें कि कितने प्री-स्कूल बच्चों को कई सारी बीमारियां हो जाती हैं, जिनके चलते उन्हें एंटीबायोटिक दवा खानी पड़ती हैं, तो इससे इस अध्ययन की बातें और सही साबित होती हैं।

लोगों को लगता है कि बच्चों में कफ की समस्या 3-4 दिन में खत्म हो जानी चाहिए, लेकिन कफ का इससे ज्यादा समय तक रहना बेहद आम बात है। तकरीबन आधे बच्चों में कफ की समस्या 10 दिनों तक चलती है, जबकि 10 से में से एक बच्चे में यह 25 दिन भी चल सकती है। अध्ययन में यह भी पता चला कि जिन बच्चों को अधिक एंटीबायोटिक्स दिए गए, उनकी 14 दिनों के अंदर डॉक्टर के पास दोबारा जाने की संभावना बढ़ गई। बच्चों में बेहद कम एंटीबायोटिक का इस्तेमाल भी उनके स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। लिहाजा न सिर्फ डॉक्टरों के लिए यह जरूरी है कि वे बच्चों को एंटीबायोटिक्स प्रिस्क्राइब न करें, बल्कि माता-पिता को भी समझना होगा कि कोई बीमारी कितने समय तक रहती है और एंटीबायोटिक देना जरूरी है या नहीं।

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