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स्वास्थ्य

नौकरशाहों और मंत्री के बीच असहमति के चलते दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति खराब: दिल्ली उच्च न्यायालय

Susan Chacko, Lalit Maurya

दो सितंबर, 2024 को दिए अपने निर्देश में हाई कोर्ट ने कहा है कि अदालत के निर्देशों को लागू करने के लिए, एम्स के निदेशक को एक टास्क फोर्स बनाने के साथ-साथ सभी आवश्यक कदम उठाने की जरूरत है, ताकि अदालत के आदेश और रिपोर्ट की सिफारिशों को सही तरीके से समय पर लागू किया जा सके।

इस आदेश के अनुसार अगर दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और एमसीडी अस्पतालों में आपातकालीन सेवाएं ठीक से काम नहीं कर रही हैं, तो एम्स के निदेशक को एम्स या कॉन्ट्रैक्ट पर लाए गए कर्मचारियों की मदद से उनका प्रबंधन करना चाहिए। आदेश के अनुसार, दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) इसके लिए आवश्यक धनराशि उपलब्ध कराएगी।

एम्स के निदेशक एम्स के मानदंडों के अनुसार उपकरण, दवाइयां और मशीनें खरीद या किराए पर ले सकते हैं। इसके लिए जीएनसीटीडी द्वारा धन मुहैया कराया जाएगा। यदि आवश्यक हो, तो निदेशक सीएसआर के माध्यम से अतिरिक्त धन भी जुटा सकते हैं।

अदालत ने जीएनसीटीडी के मुख्य सचिव, वित्त सचिव और प्रमुख सचिव (गृह) को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि निदेशक द्वारा लिए गए किसी भी निर्णय, जिसमें अस्थाई आधार पर पैरामेडिक्स, स्टाफ या डॉक्टरों की भर्ती शामिल है, को तत्काल लागू किया जाए। जब तक कि डीएसएसएसबी या यूपीएससी के माध्यम से स्थाई भर्ती नहीं हो जाती, तब तक अस्थाई तौर पर उनकी मदद ली जा सकती है।

गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने डॉक्टर एस के सरीन द्वारा  26 अगस्त, 2024 को भेजे पत्र के बाद इस मामले की समीक्षा की है। बता दें कि डॉक्टर एस के सरीन अदालत द्वारा नियुक्त डॉक्टरों की समिति के अध्यक्ष हैं।

आरोप-प्रत्यारोप में पिसती आम जनता

इस पत्र में कहा गया है कि सिफारिशों की निगरानी और सत्यापन में समिति के सदस्यों को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि समिति के छह में से चार सदस्य दिल्ली सरकार द्वारा चलाए जा रहे अस्पतालों में काम करते हैं और वो सरकार के आधीन हैं। ऐसे में समिति ने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि उन्हें इस जिम्मेदारी से हटा दिया जाए और एक नई समिति नियुक्त की जाए।

इस मामले में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की बेंच ने टिप्पणी की है कि यदि जीएनसीटीडी के चार वरिष्ठ डॉक्टर, पूरी तरह से निःशुल्क रिपोर्ट तैयार करने के बाद, सिफारिशों के कार्यान्वयन की निगरानी और सत्यापन से पीछे हट जाते हैं, तो यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य विभाग में सब कुछ ठीक नहीं है।

हाई कोर्ट ने प्रेस में दिए स्वास्थ्य विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के बयानों को भी न्यायिक संज्ञान में लिया है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री, जीएनसीटीडी अस्पतालों की खराब स्थिति के लिए अधिकारियों को दोषी ठहराते रहे हैं, जबकि जीएनसीटीडी के प्रशासक दिल्ली के अस्पतालों में अव्यवस्था और अराजकता के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। मतलब की दिल्ली सरकार व नौकरशाह खुले तौर पर एक दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं।

अदालत का कहना है कि उसने पहले भी दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य सचिव और स्वास्थ्य मंत्री को स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए मिलकर काम करने की सलाह दी थी। हालांकि, ऐसा लगता है कि स्वास्थ्य विभाग बीमारी और गलत सूचनाओं से निपटने के बजाय आंतरिक संघर्षों पर अधिक ध्यान दे रहा है।

अदालत का कहना है कि नौकरशाहों और मंत्री के बीच सहमति की कमी से यह स्पष्ट हो गया है कि दिल्ली में स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता खराब बनी हुई है, जिससे आम लोग इस स्थिति के लिए जिम्मेवार लोगों की लापरवाही और उदासीनता का शिकार बन रहे हैं।