भारत सहित दुनिया के करीब-करीब सभी देशों में मधुमेह बड़ी तेजी से फैल रहा है। इस बारे में किए एक नए अध्ययन के मुताबिक मौजूदा समय में करीब 52.9 करोड़ लोग मधुमेह से पीड़ित हैं। जो पुरुषों, महिलाओं और हर उम्र के बच्चों को प्रभावित कर रहा है। वहीं अंदेशा है कि अगले 27 वर्षों में मधुमेह के साथ जिंदगी जीने को मजबूर लोगों का यह आंकड़ा बढ़कर 130 करोड़ पर पहुंच जाएगा।
इस हिसाब से देखें तो 2050 तक मधुमेह के मरीजों में करीब 146 फीसदी की वृद्धि होने की आशंका है। यदि संयुक्त राष्ट्र की मानें तो 2050 दुनिया की आबादी बढ़कर 980 करोड़ हो जाएगी। मतलब की उस समय हर आठवां इंसान मधुमेह से पीड़ित होगा।
ऐसे में विशेषज्ञों ने आंकड़ों को चिंताजनक बताते हुए कहा कि मधुमेह वैश्विक स्तर पर अधिकांश बीमारियों को पीछे छोड़ रहा है, जो लोगों और स्वास्थ्य प्रणालियों के लिए एक बड़ा खतरा है। इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन के मुताबिक यह वृद्धि करीब-करीब हर देश और आयु वर्ग के लोगों में देखने को मिलेगी, जिसमें भारत भी शामिल है। इस रिसर्च के नतीजे अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित हुए हैं।
रिसर्च के मुताबिक इसमें से ज्यादातर लोग टाइप 2 मधुमेह से पीड़ित होंगें। यह एक ऐसी स्थिति है जब शरीर समय के साथ पर्याप्त इन्सुलिन के निर्माण की क्षमता खो देता है। इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) 2021 से प्राप्त मधुमेह के आंकड़ों का विश्लेषण किया है और यह समझने की कोशिश की है कि यह बीमारी कहां कितना फैल चुकी है। साथ ही यह कितनी घातक है।
इतना ही नहीं वैज्ञानिकों ने इन आंकड़ों की मदद से यह भी भविष्यवाणी की है कि 2050 तक मधुमेह की जोखिम कितना बढ़ जाएगा। साथ ही कौन से कारक इस बीमारी के लिए जिम्मेवार हैं।
रिसर्च के अनुसार वैश्विक स्तर पर मधुमेह का प्रसार और उसमें होने वाली वृद्धि एक समान नहीं है। कुछ क्षेत्र और देश इससे बुरी तरह प्रभावित हैं। यदि वैश्विक स्तर पर देखें तो दुनिया की करीब 6.1 फीसदी आबादी मधुमेह से प्रभावित है। जो उसे मृत्यु और विकलांगता के दस सबसे प्रमुख कारणों में से एक बनाता है। वहीं इसकी तुलना में उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व में यह दर तुलनात्मक रूप से कहीं ज्यादा है। जहां इसे 9.3 फीसदी दर्ज किया गया है।
वहीं अनुमान है कि 2050 तक इस क्षेत्र में प्रसार की यह दर बढ़कर 16.8 फीसदी तक पहुंच जाने का अंदेशा है। इसी तरह अनुमान है कि आने वाले वक्त में दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन में इसके प्रसार की दर बढ़कर 11.3 फीसदी पर पहुंच जाएगी।
आज भी 50 फीसदी जरूरतमंदों की पहुंच से दूर है इन्सुलिन
इसी तरह रिसर्च के मुताबिक करीब-करीब हर देश में 65 वर्ष या उससे अधिक आयु के बुजुर्गों में यह बीमारी कहीं ज्यादा प्रबल थी। आंकड़ों के मुताबिक करीब 20 फीसदी बुजुर्गों में इस बीमारी के लक्षण दिखें हैं। वहीं 75 से 79 साल की उम्र के 24.4 फीसदी लोगों में यह बीमारी पाई गई थी।
इस मामले में भी उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व सबसे आगे था जहां इस आयु वर्ग में मधुमेह के प्रसार की दर 39.4 फीसदी थी। वहीं मध्य और पूर्वी यूरोप के साथ मध्य एशिया में यह दर सबसे कम 19.8 फीसदी रही।
अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं ने जानकारी दी है कि,“टाइप 2 मधुमेह, जो मधुमेह के अधिकांश मामलों के लिए जिम्मेवार है, काफी हद तक उसकी रोकथाम मुमकिन है। कुछ मामलों में, यदि बीमारी की सही समय पर पहचान हो जाए तो इसकी रोकथाम की जा सकती है और इसे रोका जा सकता है।"
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने टाइप 2 मधुमेह के जोखिम को बढ़ाने वाले सभी 16 कारकों का अध्ययन किया है। उनके मुताबिक इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह बढ़ता मोटापा है। जो इससे होने वाली विकलांगता और मृत्यु दर के करीब 52 फीसदी के लिए जिम्मेवार है।
इसके बाद खराब खान-पान, पर्यावरण और व्यवसाय से जुड़े जोखिम, तम्बाकू का उपयोग, शारीरिक गतिविधियों में कमी और शराब का सेवन इसके बढ़ते मामलों की वजह है। देखा जाए तो मधुमेह कोई ऐसी बीमारी नहीं है जो लाइलाज हो। अपनी जीवनशैली में बदलाव के जरिए इससे उबरा जा सकता है।
हालांकि कुछ मामलों में इसकी रोकथाम कहीं ज्यादा जटिल है। एक तो यह बीमारी आनुवांशिक हो सकती है। वहीं पहले से कमजोर और हाशिए पर जीवन जीने को मजबूर लोगों के लिए यह किसी अभिशाप से कम नहीं क्योंकि महंगी दवाएं और इलाज न मिल पाने का जोखिम उनके लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। जो वैश्विक स्तर पर इस बीमारी के मामले में असामनता पैदा कर सकता है। हाल ही में इस बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि खोज के 100 वर्षों के बाद भी इन्सुलिन 50 फीसदी जरूरतमंदों की पहुंच से दूर है।
अफसोस की बात है अभी भी दुनिया में टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त करीब तीन करोड़ लोगों के पास इन्सुलिन उपलब्ध नहीं है। गौरतलब है कि दुनिया भर में टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त करीब छह करोड़ लोगों को इन्सुलिन की जरुरत पड़ती है।
क्या है मधुमेह
मधुमेह जिसे डायबिटीज या शुगर भी कहा जाता है, यह मेटाबोलिक डिसऑर्डर या यह कह सकते हैं कि चयापचय संबंधी बीमारियों का एक समूह है। यह बीमारी अनुवाशिंक या फिर खराब खानपान और जीवनशैली के कारण हो सकती है। यह बीमारी तब होती है जब शरीर के पैन्क्रियाज में इन्सुलिन की कमी हो जाती है, मतलब वहां कम मात्रा में इन्सुलिन पहुंचता है।
इसकी वजह से खून में ग्लूकोज की मात्रा बढ़ जाती है। इसी स्थिति को डायबिटीज कहते हैं। बता दें की इन्सुलिन एक हार्मोन है। जो शरीर के भीतर प्राकृतिक तौर पर पाचन ग्रंथि में बनता है। यह शरीर में ग्लूकोस के स्तर को नियंत्रित करता है। इसकी कमी से रक्त में ग्लूकोस का स्तर बढ़ जाता है जो मधुमेह का कारण बनता है।
आमतौर पर मधुमेह दो प्रकार के होते हैं पहला टाइप 1 मधुमेह जिसमें शरीर में इन्सुलिन नहीं बनता है या बहुत कम बनता है जबकि टाइप 2 मधुमेह में शरीर समय के साथ पर्याप्त इन्सुलिन के निर्माण की क्षमता खो देता है। ऐसे में यदि इस बीमारी पर ध्यान न दिया जाए तो इससे दिल के दौरा पड़ने, स्ट्रोक, गुर्दे की विफलता, अंधापन, गैंगरीन, घावों का न भरना आदि का खतरा बढ़ जाता है।