कोरोना वायरस के लगातार बदलते स्वरूप ने देशभर के डॉक्टर्स, वैज्ञानिक, आम लोगों को तो मुसीबत में डाला ही है अब इससे ओलंपिक खेलों में भाग लेने जा रहे खिलाड़ियों के पदक जीतने की आशाओं पर भी पानी फेरता नजर आ रहा है। बल्कि यह कहना अधिक तर्क संगत होगा कि इस स्थिति ने भारतीयों के पदक जीतने पर संशय खड़ा कर दिया है। आगामी 23 जुलाई से टोक्यो में शुरू होने जा रहे ओलंपिक खेलों में भाग लेने जाने वाले भारतीय खिलाड़ियों के पदक जीतने पर डेल्टा प्लस ने कहीं न कहीं लगाम लगा दी है। क्योंकि ओलंपिक खेलों के मेजबान देश जापान ने दुनिया के उन देशों के खिलाड़ियों पर कई प्रकार की पबंदी लगाई है जहां डेल्टा प्लस के मामले अधिक पाए जा रहे हैं।
ध्यान रहे कि इन दिनों कोरोना वायरस का नया वेरिएंट डेल्टा प्लस लगातार देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में सुर्खियों में बना हुआ है। यह डेल्टा वेरिएंट का ही अपग्रेटेड रूप है जिसने दूसरी लहर के दौरान देश में तबाही मचाई थी। ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ियों से बहुत अधिक पदक जीतने की तो देशवासी उम्मीद नहीं कर रहे हैं लेकिन जितने भी खेलों में पदक जीतने की गुंजाइश है, अब इस डेल्टा प्लस ने प्रश्न चिंन्ह लगा दिया है।
कारण कि जापान सरकार ने खिलाड़ियों के लिए नए नियम बना दिए गए हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि भारत समेत 11 देशों के लिए ये नियम ज्यादा सख्त हैं और दूसरे देशों को जापानी सरकार ने इन नियमों में कुछ छूट दी हुई है। अब बहस इस बात पर आकर टिक गई है कि ओलंपिक में भाग लेने जा रहे सभी खिलाड़ियों के लिए नियम एक जैसे क्यों नहीं हैं?
इस संबंध में जहां तक स्वास्थ्य विशेषज्ञों की राय की बात है तो भारत के अधिकांश स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने इस बात का पुरजोर विरोध किया है। इस संबंध में लखनऊ स्थित किंग मेडिकल कॉलेज के पूर्व एक वरिष्ठ स्वास्थ्य अधिकारी ने बताया कि दुनिया में कोई भी टीका इतना विश्वसनीय नहीं है कि उसके लगाने के बाद आप पूरी तरह से कोरोना की मार से बच जाएंगे। और न ही इस प्रकार का कोई अब तक शोध सामने आया है।
यहीं नहीं इस संबंध में भारतीय ओलंपिक संघ ने भी जापान के इस फैसले का न केवल विरोध जताया है बल्कि इस संबंध में अंतराष्ट्रीय ओलंपिक संघ से हस्ताक्षेप करने की मांग भी की है। वहीं मेट्रो अस्पताल के स्पोर्ट्स साइंस विशेषज्ञ दिनेश समुझ बताते हैं कि यदि खिलाड़ियों को अपनी प्रतियोगिता के पूर्व पर्याप्त समय नहीं मिलेगा तो उनकी शरीरिक जकड़न बनी रहेगी। ऐसे में उनसे अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद करना बेमानी होगा। ओलंपिक खेलों को दुनिया की जनसंख्या का आधे से आधिक लोग देखते हैं। यानी लगभग 3 अरब 20 करोड़। इससे अधिक केवल फुटबॉल के विश्व कप को ही देखा जाता है यानी 3अरब 57 करोड़।
खेल विशेषज्ञ राकेश थपलियाल ने बताया कि जापान सरकार ने कोरोना वायरस को देखते हुए 11 देशों के खिलाड़ियों को एक अलग श्रेणी बनाई है। और ऐसे देशों के लिए नियमों को भी और कड़ा बनाया गया है। वह कहते हैं कि ध्यान यहां देने वाली बात यह है कि ये वो देश हैं, जहां कोरोना वायरस का डेल्टा वैरिएंट फैला हुआ है। इन देशों में भारत के अलावा पाकिस्तान, ब्रिटेन, अफगानिस्तान, मालदीव, नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, इजिप्ट, मलेशिया और वियतनाम हैं। वह कहते हैं कि कायदे से देखा जाए तो मेजबान जापान का यह कदम पूरी तरह से भेदभावपूर्ण है।
थपलियाल ने बताया कि ओलंपिक में कुल 10 हजार 900 खिलाड़ियों के बीच 339 गोल्ड मेडल्स के लिए लड़ाई होनी है, लेकिन भारत समेत इन 11 देशों के खिलाड़ियों के लिए टोक्यो ओलंपिक अब ज्यादा मुश्किल होने जा रहा हैं, क्योंकि वो न तो मैच से पहले प्रैक्टिस कर पाएंगे और कोरोना की वजह से क्वारंटीन में रहने का दबाव भी उन पर अलग से बना रहेगा।
ओलंपिक संघ का कहना है कि इन नियमों की वजह से भारतीय महिला हॉकी टीम के दो प्रैक्टिस मैच खराब हो सकते हैं और टेनिस प्लेयर सानिया मिर्जा और अंकिता रैना जो कि पिछले काफी समय से ब्रिटेन में प्रैक्टिस कर विंबलडन में खेल रही हैं, वो भी इस नियम की वजह से प्रभावित होंगी। जिन 11 देशों के लिए विशेष प्रकार के नियम बनाए गए हैं, इसके अनुसार इन देशों के एथलीट सिर्फ 5 दिन पहले ही जापान पहुंचे पाएंगे और इसमें भी 3 दिन उन्हें क्वारंटीन में दिन बिताने होंगे। भारतीय ओलम्पिक संघ इस नियम को भेदभावपूर्ण बता रहा है भारतीय ओलम्पिक संघ सवाल उठा रहा है कि इतनी देर से पहुंचने पर खिलाड़ी अभ्यास कब करेंगे?