दिल्ली एनसीआर सहित देश के लगभग सभी बड़े शहरों में पार्टिकुलेट मेटर यानी पीएम का बढ़ता स्तर बच्चों के लिए जानलेवा बना हुआ है। इस जानलेवा पीएम का असर जानने के लिए डाउन टू अर्थ दिल्ली सहित अन्य शहरों से रिपोर्ट कर रहा है। पहली कड़ी में आपने पढ़ा: जानलेवा पीएम : बच्चों की अटक रहीं सासें, अस्पतालों में लगी हैं लंबी कतारें । पढ़ें , दूसरी कड़ी -
देश की राजधानी में 2 नवंबर, 2023 से हवा की गुणवत्ता गंभीर रूप से खराब बनी हुई है। वायु प्रदूषण का पांच साल तक के बच्चों पर क्या असर पड़ रहा है, यह जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने दिल्ली के अस्पतालों के दौरा किया।
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बाल रोग विशेषज्ञ और नेफ्रोलॉजिस्ट ने संजीव बगई ने डाउन टू अर्थ को बताया कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बीमार बच्चों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। अक्टूबर से पहले के मुकाबले अब नवजात शिशुओं और 12 वर्ष तक के बच्चे बड़ी संख्या में बीमार हो रहे हैं। इन दिनों सबसे ज्यादा प्रभावित दो से पांच साल की उम्र के बच्चे हैं।
वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) का पॉलिसी डॉक्यमेंट बताता है कि 3 नवंबर की सुबह, दिल्ली की वायु गुणवत्ता 450 अंक को पार करते हुए "गंभीर प्लस" तक पहुंच गई।
उसी दिन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा रिकॉर्ड किए गए आंकड़ों के मुताबिक, मुंडका स्टेशन की वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) सबसे खराब (498) था।
डाउन टू अर्थ ने नई दिल्ली, कनॉट सर्कस स्थित बच्चों के सरकारी अस्पताल कलावती सरन चिल्ड्रेन अस्पताल का दौरा किया। जहां के कर्मचारियों ने कुछ चौंकाने वाली जानकारी दी।
कर्मचारियों ने नाम न छापने की शर्त पर डीटीई को बताया कि पिछले 2-3 महीनों से 'यूनिट 3' के नाम से जाने जाने वाले अस्पताल वार्ड में कम से कम 70-80 प्रतिशत बच्चे ब्रोंकाइटिस, ब्रोंकियोलाइटिस, तपेदिक, अस्थमा, निमोनिया या फेफड़ों की बीमारियों जैसे रोगों से पीड़ित हैं।
अस्पताल के कर्मचारियों के अनुसार, सर्दियाँ शुरू होते ही बाल रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है। उन्होंने बताया कि अस्पताल में बच्चों की मौत के मामले सामने आते हैं क्योंकि इसमें ऑक्सीजन पोर्ट, फ्लो मीटर और यहां तक कि बिस्तरों की उपलब्धता का अभाव है।
सुविधाओं की कमी के बावजूद अक्सर सांस के गंभीर हालत में आने वाले बच्चों को भर्ती करना ही पड़ता है। कई दफा तो 3-4 बच्चों को एक ही बिस्तर साझा करना पड़ता है। ऐसे बच्चों को कई दफा गंभीर परिणाम भुगतना पड़ता है। मगर इन विवशताओं के कारण कभी-कभी कुछ बच्चे जिन्हें इलाज की सख्त जरूरत होने के बावजूद भर्ती नही भी हो पाते।
कलावती के वार्ड 3 क्यूबिकल 1 में भर्ती 10 महीने की बच्ची के माता-पिता ने अपनी परेशानी साझा की। उसके पिता नरेश कुमार संगम विहार में अपने घर के पास पेंटर का काम करते हैं। उन्होंने बताया कि हमारी बेटी अपने जन्म के बाद पहली बार बीमार पड़ी। उसे 10 दिन पहले सांस लेने में दिक्कत हुई और चार दिन पहले यहां भर्ती कराया गया था।
वह ऑक्सीजन सपोर्ट की मदद से सांस ले पा रही है। अस्पताल के कर्मचारियों ने अभी तक हमें यह नहीं बताया है कि यह कौन सी बीमारी है। न ही उन्हें बताया जा रहा है कि वह कब तक ठीक होगी।
बगई ने डीटीई को बताया कि पिछले कुछ दिनों में बच्चों में बीमारियों में लगभग 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इनमें गले का संक्रमण, कान का संक्रमण, घरघराहट, ब्रोंकाइटिस, लैरींगाइटिस और निमोनिया शामिल हैं।
ऐसा इसलिए है क्योंकि सुबह के समय, जब तापमान और धुंध की स्थिति सबसे खराब होती है, बच्चों को सांस अधिक लेना होता है, क्योंकि बच्चों का वायुमार्ग वयस्कों की तुलना में व्यास और लंबाई में छोटे और छोटे होते हैं। इसके अलावा, बच्चों की फेफड़ों के कार्य करने की क्षमता वयस्कों की तुलना में बहुत कम है।
सीपीसीबी ने अपने आंकड़ों में 2022 में दिल्ली को "भारत का सबसे प्रदूषित शहर" कहा था, जिसमें पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 का स्तर सुरक्षित सीमा से अधिक था। उस समय शहर में पीएम10 की औसत सांद्रता तीसरी सबसे अधिक थी।
बगई समझाते हैं कि इस वायु प्रदूषण में न केवल पीएम2.5 शामिल है, बल्कि इसमें पीएम 5, पीएम10, धूल, एलर्जी, एनओएक्स सहित कई जहरीली गैसें और अन्य कण भी शामिल हैं। बच्चों के लिए मास्क पहनना मुश्किल है, खासकर स्कूल के समय में। इसलिए, वायु प्रदूषण के प्रति उनका जोखिम बहुत अधिक है।
कलावती अस्पताल में सौम्या नाम की एक युवा डॉक्टर ने कहा कि श्वसन संबंधी समस्याओं के साथ भर्ती किए गए अधिकांश बाल रोगियों की उम्र 2 से 5 वर्ष के बीच थी।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली में डाउन टू अर्थ संवाददाता ने पल्मोनोलॉजी विभाग की तुलना में बाल चिकित्सा मामलों के लिए समर्पित ओपीडी में मरीजों की अधिक संख्या देखी गई।
एम्स बाल चिकित्सा विभाग के विभाग प्रमुख एसके काबरा ने एक दिन बाद 4 नवंबर को डीटीई को बताया कि पिछले 3-4 हफ्तों में सांस संबंधी समस्याओं वाले बच्चों का अनुपात बढ़ गया है। जिन बच्चों को पहले से ही श्वसन संबंधी समस्याएं (अस्थमा, ब्रोन्किइक्टेसिस, सिस्टिक फाइब्रोसिस आदि) हैं, उनके नियमित उपचार के बावजूद लक्षणों की स्थिति बिगड़ती जा रही है।
डीटीई ने वल्लभाई पटेल चेस्ट हॉस्पिटल के निदेशक राज कुमार से भी मुलाकात की, जिन्होंने कहा: "हर साल इस अवधि के दौरान सांस की समस्याओं से पीड़ित बच्चों की स्थिति खराब हो जाती है।" यह अस्पताल दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तरी परिसर में स्थित है।
काबरा ने कहा, "पूरे साल चलने वाली दीर्घकालिक और अल्पकालिक योजनाएं बनाने की आवश्यकता है, क्योंकि दिल्ली में वायु प्रदूषण कोई मौसमी मुद्दा नहीं है। एक बार के उपायों से स्थिति से निपटा नहीं जा सकता। व्यक्तिगत स्तर पर, खाना पकाने के लिए गैस का उपयोग, केरोसिन तेल, जैव ईंधन के उपयोग से बचना, रोग जनरेटर के उपयोग से बचना आदि जैसे उपाय आवश्यक हैं।"
वह कहते हैं कि इसके अलावा, वाहनों के उपयोग को कम करने और कारपूलिंग को प्रोत्साहित करने का प्रयास करें। सरकार के स्तर पर, मौजूदा कानूनों के अनुसार वाहनों, उद्योग, निर्माण कार्य आदि के कारण वायु प्रदूषण को कम करने की एक व्यापक योजना पर विचार किया जाना चाहिए।