सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट के ताजा अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जंक फूड और पैकेटबंद भोजन खाकर हम जाने-अनजाने खुद को बीमारियों के भंवरजाल में धकेल रहे हैं। अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि जंक फूड में नमक, वसा, ट्रांस फैट की अत्यधिक मात्रा है जो मोटापा, उच्च रक्तचाप, मधुमेह और हृदय की बीमारियों के लिए जिम्मेदार है। ताकतवर प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री और सरकार की मिलीभगत से जंक फूड 6 साल से चल रहे तमाम प्रयासों के बावजूद कानूनी दायरे में नहीं आ पाया है। जंक फूड बनाने वाली कंपनियां उपभोक्ताओं को गलत जानकारी देकर भ्रमित कर रही हैं और खाद्य नियामक मूकदर्शक बनकर बैठा हुआ है अध्ययन : मृणाल मलिक, अरविंद सिंह सेंगर और राकेश कुमार सोंधिया विश्लेषण : अमित खुराना और सोनल ढींगरा
13 साल का अक्षत स्कूली छात्र है। वह सप्ताह में दो या तीन बार नेस्ले मैगी मसाला इंस्टेंट नूडल्स खाता है। उसकी कैंटीन में यह आसानी से उपलब्ध है। 70 ग्राम का पैक 2.6 ग्राम नमक हमारे शरीर में डालता है। आटा नूडल्स को चटपटे के तौर पर प्रचारित करने वाले पतंजलि का पंचलाइन है “झटपट बनाओ, बेफिकर खाओ।” इसके एक पैकेट नूडल्स में 2.4 ग्राम नमक है। याद रखिए, एक स्वस्थ व्यक्ति को 5 ग्राम नमक का उपभोग ही पूरे दिन के लिए अनुशंसित है।
सीएसई लैब रिजल्ट के मुताबिक, चिंग्स सीक्रेट स्केजवान तो एक कदम आगे है। इसके लेबल में इस्तेमाल की गए सामग्री को आधे से भी कम लिखा गया है। इसी तरह से, झटपट तैयार होने वाले सूप भी जाड़े में काफी पसंद किए जाते हैं, लेकिन निश्चित तौर पर यह भी स्वस्थ विकल्प नहीं है। नॉर क्लासिक थिक टोमैटो सूप यदि एक बार परोसते हैं तो आप दिन में इस्तेमाल करने लायक नमक की मात्रा का एक-चौथाई खा लेते हैं। अक्सर लोग खाना खाने की शुरुआत स्टार्टर के तौर पर सूप पीने से करते हैं। इसलिए सूप पीने के बाद आपका सेहतमंद खाना खाकर भी आप बहुत ही कम समय में मानक से ज्यादा नमक उपभोग कर लेते हैं।
फ्राइज और बर्गर
दिल्ली स्थित मानव व्यवहार एवं संबद्ध विज्ञान संस्थान (इहबास) के प्रोफेसर उदय सिन्हा बताते हैं कि विज्ञापन लोगों की इंद्रियों को प्रभावित और प्रेरित करके उनमें खाने की लालसा पैदा करता है। लंबे समय बाद यह आदत बन जाती है। अखबार के एक पूरे पन्ने वाले विज्ञापन में मैक डोनाल्ड्स घर पर पकाए गए ताजे भोजन पर निराशाजनक टिप्पणी करता है। वह कहता है “फिर अटके घिया-तोरी के साथ? बनाए अपना 1+1 कॉम्बो, जिससे आप प्यार करते हैं।” यहां तक कि भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) इस तरह के विज्ञापन पर कहता है कि गैर-जिम्मेदार विज्ञापन खासतौर से बच्चों के बीच, खाने की सही आदतों को प्रोत्साहित करने के राष्ट्रीय प्रयासों के खिलाफ है। लेकिन मैक डोनाल्ड्स का कॉम्बो कितना सेहतमंद है?
एक चिकन महाराजा मैक खाते ही आप एक दिन के लिए निर्धारित नमक की करीब पूरी मात्रा का उपभोग कर लेते हैं। इसमें 4.6 ग्राम नमक होता है। इसका मतलब है कि अब दिन में सिर्फ दस फीसदी अथवा 0.4 ग्राम ही नमक खाना शेष रह जाएगा। दिनभर में भोजन में उपभोग लायक वसा की करीब आधी जरूरत एक ही चिकन महाराज मैक खाकर पूरी हो जाती है। एक मध्यम आकार वाले मैक डोनाल्ड्स फ्राइज में दिन में जितनी वसा की जरूरत होती है उसका एक-पांचवा हिस्सा मौजूद होता है। वहीं, कॉम्बो में 103 फीसदी नमक, 72 फीसदी वसा, 13 फीसदी ट्रांस फैट और 33 फीसदी कार्बोहाइड्रेट होता है।
खुद को शाकाहारी मानकर संतुष्ट होने वाले भी भाग्यशाली नहीं हैं। बर्गर किंग का वेजेटिरयन चीज हूपर को खाते ही दिन में आपके पास एक-चौथाई नमक और आधे से भी कम वसा खाने का कोटा बचा रह पाता है। वहीं, रेगुलर फ्राइज में दिन की वसा जरूरत का करीब एक-पांचवा हिस्सा वसा मौजूद है। यदि काॅम्बो मील भी इसमें जोड़ते हैं तो आपको जरूरत से काफी ज्यादा न्यूट्रिएंट्स मिल जाएंगे। केएफसी 5-इन-1 क्लासिक जिंगर बॉक्स बर्गर, फ्राइज और फ्राइड चिकन यदि आप खाते हैं तो आप दिन के 20 फीसदी से ज्यादा वसा का कोटा उपभोग कर लेते हैं, इसमें उच्च मात्रा का नमक और ट्रांस फैट शामिल है।
बच्चों की सामुदायिक चिकित्सक वंदना प्रसाद कहती हैं कि यह बहुत ही लजीज होते हैं और इनकी बिक्री भी आदत के तौर पर की जाती है। घर में पकाए खाने की जगह यदि आप कांबो मील आप चुन रहे हैं तो चुनाव से पहले कम से कम दो बार जरूर सोचिए। छोटे बर्गर्स लोगों को ज्यादा खाने के लिए उकसाते हैं। केएफसी का वेज जिंगर विद चीज में दिन के लिए तय नमक उपभोग सीमा का तीन-चौथाई और 45 फीसदी वसा मौजूद है। वहीं, चिकन क्लासिक जिंगर विद चीज में 80 फीसदी वसा और 60 फीसदी ज्यादा नमक है। चीज वाले बर्गर में काफी ट्रांस फैट होता है।