मॉस्को के गामालेया रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ एपिडेमियोलॉजी एंड माइक्रोबायोलॉजी को ओर से निर्मित नोवेल कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के लिए वैक्सीन स्पूतनिक-वी जून से भारत के चुनिंदा निजी अस्पतालों में मिलने की संभावना है। लेकिन क्या यह वैक्सीन देश के लड़खड़ा रहे टीकाकरण कार्यक्रम को रफ्तार दे पाएगी?
इसका बहुत छोटा सा जवाब है: नहीं। पूरे भारत में लगाने के लिए स्पूतनिक-वी की सिर्फ 15 लाख डोज ही तैयार है, जिससे देश में बड़े स्तर पर चल रही कोविड-19 वैक्सीन की मौजूदा किल्लत पर कोई फर्क पड़ने की उम्मीद नहीं है।
लेकिन स्पूतनिक-वी के उत्पादन के लिए वित्तीय सहायता देने और वैक्सीन की आपूर्ति के सौदों के लिए तालमेल करने वाली रूस की संस्था रसियन आरडीआईएफ सॉवरेन वेल्थ फंड (रूसी आरटीआईएफ स्वायत्त संपत्ति कोष) ने पांच भारतीय कंपनियों के साथ अनुबंध किया है। यह अनुबंध इस साल के अंत तक 85 करोड़ वैक्सीन उत्पादन के लिए है। इसमें डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज भी शामिल है, जो भारत में स्पूतनिक-वी वैक्सीन की ब्रांड कस्टोडियन है। अन्य निर्माताओं में ग्लैंड फार्मा लिमिटेड, हेटेरो फार्मा, स्टेलिस बायोफार्मा प्राइवेट लिमिटेड और विरचो बायोटेक लिमिटेड शामिल हैं। डॉ रेड्डीज वैक्सीन निर्माण के लिए अन्य निर्माताओं को जोड़ सकती है।
मीडिया में आई खबरों से पता चलता है कि धारवाड़ की शिल्पा बायोलॉजिकल प्राइवेट लिमिटेड ऐसी ही एक कंपनी है, जिसे डॉ. रेड्डीज ने टेक्नोलॉजी ट्रांसफर की है। इसमें हरियाणा जैसे कई राज्यों ने भी दिलचस्पी दिखाई है।
वैक्सीन को मुंबई में भी इस्तेमाल किए जाने की संभावना है, क्योंकि स्पूतनिक-वी के तीन डिस्ट्रीब्यूटर्स ने वृहन्मुंबई महानगर पालिका के ग्लोबल टेंडर के जवाब में अपने प्रस्ताव पेश किये हैं। हालांकि, इस सौदे पर अभी अंतिम फैसला नहीं हुआ है।
19 मई को ट्वीट करके डॉ रेड्डीज ने बताया था कि स्पूतनिक-वी की आयातित डोज की कीमत 948 रुपये + 5 फीसदी जीएसटी है। हालांकि, स्थानीय स्तर पर इसका उत्पादन शुरू होने के बाद इसकी कीमत में गिरावट आने की संभावना है।
भारतीय औषधि महानियंत्रक (ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया) ने डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज के ब्रिज ट्रायल के आधार पर अप्रैल 2021 में स्पूतनिक-वी वैक्सीन को मंजूरी दे दी थी। स्पूतनिक-वी अब कोविन ऐप पर मौजूद वैक्सीन तीन विकल्पों में से एक विकल्प है, लेकिन इसके लिए स्लॉट अभी उपलब्ध नहीं हैं।
वैश्विक बहस जारी है
हालांकि, यहां तक कि भारत ने कोविड-19 के खिलाफ अपनी लड़ाई में स्पूतनिक-वी वैक्सीन को शामिल करने की योजना बनाई है, लेकिन इसकी क्षमता और सुरक्षा को लेकर बहस, विशेष रूप से पश्चिम के देशों में, लगातार जारी है।
स्पूतनिक-वी वैक्सीन को अभी तक विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मान्यता नहीं मिली है और यह वैश्विक कोवैक्स पहल का हिस्सा भी नहीं है। लेकिन संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस कह चुके हैं कि संगठन डब्ल्यूएचओ से स्पूतनिक-वी की मान्यता दिए जाने का स्वागत करेगा।
वैक्सीन को अमेरिका की नियामकीय संस्था यूनाइटेड स्टेट्स फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने भी मान्यता नहीं दी है। लेकिन इस फैसले के पीछे शायद आर्थिक और राजनीतिक कारण हैं। अमेरिका के पास फाइजर इंक, जॉनसन एंड जॉनसन और मॉडर्ना इंक जैसे निर्माताओं की ओर से विकसित वैक्सीन मौजूद है और किसी अन्य वैक्सीन को मान्यता नहीं दी है।
हंगरी जैसे कुछ यूरोपीय देश स्पूतनिक-वी को मंजूरी दे चुके हैं। जर्मनी जैसे अन्य देश यूरोपीय मेडिसिन एजेंसी (ईएमए) से मान्यता मिलने का इंतजार कर रहे हैं। वैक्सीन को मंजूरी देने की प्रक्रिया मार्च में शुरू की गई थी और इस पर मई के अंत या जून की शुरुआत तक फैसला होने की उम्मीद है।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के मुताबिक, रूस से स्पूतनिक-वी वैक्सीन के लगभग 70 करोड़ डोज मंगवाए गए हैं। अब वैक्सीन भारत समेत 65 देशों में रजिस्टर्ड है।
पश्चिमी शोधकर्ताओं ने स्पूतनिक-वी वैक्सीन की सुरक्षा और क्षमता पर सवाल उठाए हैं। गामालेया ने 2 फरवरी को जर्नल द लैंसेट में वैक्सीन की क्षमता या प्रभाव के संबंध में क्लिनिकल ट्रायल के तीसरे चरण के आंकड़े प्रकाशित किए थे।
इन आंकड़ों ने बताया था कि वैक्सीन 91.6 फीसदी तक प्रभावी है। हालांकि, इसके क्लिनिकल ट्रायल की आलोचनाओं और इस पर कंपनी की ओर से आए जवाब को द लैंसेट में 12 मई को प्रकाशित किया गया था।
अमेरिका, फ्रांस, इटली, नीदरलैंड और रूस के संस्थानों के नौ वैज्ञानिकों और अध्ययनकर्ताओं ने बताया था कि प्रकाशित अध्ययन में विभिन्न आयु वर्गों के बीच वैक्सीन की क्षमता या प्रभाव के बारे में “बहुत ही अजीब” और “अत्यधिक संयोगात्मक परिणाम” शामिल किए गए हैं।
इसके जवाब में, गामालेया के शोधकर्ताओं ने कहा: “मूल्यों में एकरूपता केवल इस तथ्य की पुष्टि करता है कि...टीके की क्षमता या प्रभावशीलता अलग-अलग आयु वर्गों के बीच अलग-अलग नहीं होती है।”
उन्होंने कहा कि क्लिनिकल ट्रायल के चरण 3 में हुए अंतरिम विश्लेषण की रिपोर्टिंग पूरी तरह से मानकों के अनुरूप है और जिसके आधार पर 51 देशों में वैक्सीन का रजिस्ट्रेशन हुआ है।
इससे पहले, 4 सितंबर, 2020 को द लैंसेट में प्रकाशित क्लिनिकल ट्रायल के चरण-1 और चरण-2 के आंकड़ों की भी आलोचना हुई थी और स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कंपनी से रॉ डेटा (असंपादित आंकड़े) उपलब्ध कराने के लिए कहा था।
द लैंसेट के शोधकर्ताओं और संपादक को 7 सितंबर, 2020 को लिखे एक खुले पत्र में अमेरिका की टेंपल यूनिवर्सिटी के एनरिको बुकी और 40 अन्य शोधकर्ताओं ने गंभीर मुद्दों को उठाया था। उन्होंने और उनकी टीम ने 9 फरवरी, 2021 को लिखे एक अन्य खुले पत्र में चरण 3 के नतीजों में मौजूद अंतर को सामने रखा था।
6 मई को, बीएमजे में प्रकाशित एक लेख ने सवाल उठाया था कि जब वे वैक्सीन के अध्ययनों को प्रकाशित करते हैं तो कैसे नियामकों की जगह पर विशेष तौर पर द लैंसेट और सामान्य तौर पर अन्य जर्नल्स को इस्तेमाल करने का जोखिम लेते हैं, जिनका अभी तक किसी भी बड़े नियामक ने अनुमोदन नहीं किया है।
लेखक क्रिस वैन टुल्लेकेन ने तर्क दिया कि नई दवाओं के जोखिम-लाभ अनुपात (रिस्क-बेनिफिट रेशो) को निर्धारित करने के लिए समकक्ष विशेषज्ञों की समीक्षा (पीर रिव्यू) पर्याप्त नहीं है। वे सितंबर में द लैंसेट को लिखे गए खुले पत्र पर साइन करने वालों में से एक हैं।
उनका कहना है कि भले ही नियामक प्रक्रिया में बहुत ज्यादा खामियां हैं, लेकिन प्रक्रिया का दायरा और पैमाना काफी विस्तृत है। यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन से जुड़ी वैन टुल्लेकेन ने कहा कि इस व्यापक और बहुत अच्छी तरह से दस्तावेजीकृत प्रक्रिया की तुलना में, समकक्ष विशेषज्ञों की समीक्षा वाले प्रकाशनों (पीयर्ड रिव्यूड पब्लिकेशंस) के लिए मानक अपेक्षाकृत रूप से बहुत कमजोर हैं।
यह चिंता का विषय है, क्योंकि जर्नल में प्रकाशित परिणामों को गरीब देशों अनुमोदन देने के लिए इस्तेमाल करते हैं। पेपर प्रकाशित होने से पहले केवल 16 देशों ने (इस) वैक्सीन को अधिकृत किया था। यह संख्या पेपर के प्रकाशित होने के बाद बढ़कर 40 हो गई।