25 मार्च को जब केंद्र सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की थी, तो पश्चिमी चम्पारण जिले के भलुअहिया गांव के निवासी राजन प्रसाद के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई थी। राजन प्रसाद अपने गांव से लगभग 5 किलोमीटर दूर बाजार में टेलरिंग की दुकान चलाते हैं। लॉकडाउन के चलते उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह अपने आठ सदस्यीय परिवार का पेट कैसे पालेंगे।
वह कहते हैं, “लॉकडाउन होने से मैं डर गया था। मुझे लगा था कि अब मैं और मेरा परिवार भूखों मर जाएगा। हमलोग चोरी-चकारी तो कर नहीं सकते थे, तो भूखे ही मरते।” लेकिन, जल्दी ही उन्हें घर बैठे रोजगार मिल गया। वह पिछले एक महीने से अपने घर पर रह कर मास्क बना रहे हैं। उन्होंने बताया, “लॉकडाउन के बाद रोज मास्क बना रहे हैं और इससे रोजाना मुझे 200 से 250 रुपए की कमाई हो जा रही है। मैं खुद शुगर का मरीज हूं। ऐसे में घर में बैठकर काम मिल रहा है, तो इससे मुझे बहुत संबल मिला है, वरना तो क्या होता मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर पा रहा हूं।”
राजन प्रसाद की तरह देशभर में लाखों लोग ऐसे हैं, जो इस संकट के समय में न केवल घर पर बैठकर कमाई कर रहे हैं बल्कि मास्क व सैनिटाइजर बना कर कोरोनावायरस से लड़ने में भी मदद कर रहे हैं।
भलुअहिया के इंद्रजीत पंडित मिट्टी के बर्तन बाजार में बेचकर रोजीरोटी चलाते हैं। लॉकडाउन के बाद उनका काम बंद है, लेकिन वह बेरोजगार नहीं हैं। उन्होंने बताया, “मैं अभी घर से ही मास्क बना रहा हूं और रोजाना 250 रुपए तक की कमाई कर लेता हूं। इससे तीन वक्त के भोजन का इंतजाम हो जा रहा है।”
देश में कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते हुए लॉकडाउन ने लाखों लोगों का रोजगार छीन लिया है। दूसरी तरफ, कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए मास्क और सैनिटाइजर की मांग बढ़ी, तो बाजार ये गायब हो गया और हर तरफ मास्क और सैनिटाइजर की भारी किल्लत हो गई। आम लोग तो दूर डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ को भी मास्क मिलना मुश्किल हो गया। ऐसे में कुछ एनजीओ ने ऐसी तरकीब निकाली, जिससे बेरोजगारों को रोजगार मिल जाए और मास्क की किल्लत भी न रहे।
दिल्ली की स्वयंसेवी संस्था ‘गूंज’ देशभर के अलग-अलग राज्यों में हजारों लोगों से मास्क और सैनिटरी पैड बनवा कर उन्हें रोजगार दे रही है। गूंज के संस्थापक व रैमन मैग्सेसे अवार्ड विजेता अंशु गुप्ता बताते हैं, “हमारा उद्देश्य था कि इस संकट की घड़ी में हम जरूरतमंदों को रोजगार भी मुहैया कराएं और रोजगार ऐसा हो जिससे कोरोनावायरस से मुठभेड़ करने में मदद भी कर सकें। इसलिए हमने उनसे मास्क बनवाना शुरू किया। 17 अप्रैल तक बिहार, दिल्ली, केरल, ओडिशा, तमिलनाडु, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के प्रोसेसिंग सेंटरों में 42,800 फेस मास्क बनाए जा चुके हैं। इसके अलावा 1500 लीटर आर्गेनिक सैनिटाइजर और 1520 लीटर आर्गेनिक खाद हमने बनवाया है।
वहीं, ऋषिकेश प्रोसेसिंग सेंटर से 24900 सैनिटरी पैड बनवा कर जरूरतमंदों में वितरित करवाया है।” संगठन जरूरतमंदों तक राशन भी पहुंचा रहा है, लेकिन इसमें भी इस बात का खयाल रखा जाता है कि राशन की खरीद स्थानीय विक्रेताओं से की जाए, क्योंकि सप्लाई चेन टूट जाने से ये विक्रेता भी मुश्किल में पड़ गए हैं। अंशु गुप्ता ने बताया, “सप्लाई चेन टूटने से ग्रामीण इलाकों के विक्रेताओं के सामने बड़ा संकट है, क्योंकि वे सामान बेच नहीं पा रहे हैं, इसलिए हम स्थानीय लोगों से ही राशन का जरूरी सामान खरीद कर जरूरतमंदों तक पहुंचा रहे हैं।” गूंज के पदाधिकारियों ने बताया कि अभी तक 17700 परिवारों को राहत दी गई है और 16600 किलोग्राम राशन कम्युनिटी किचेन तक पहुंचाया जा चुका है।
पाकिस्तान सीमा से सटे पश्चिमी राजस्थान के गांवों में अधिकांश परिवार गरीब है। इन परिवारों के लोग कमाने के लिए दूर-दराज के इलाकों में जाते हैं। लॉकडाउन के कारण ये आर्थिक संकट से घिर गए थे, लेकिन ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान की तरफ से इन्हें मास्क बनाने काम मिल गया है। संगठन से जुड़े विक्रम सिंह कहते हैं, “जब कोरोनावायरस के चलते लॉकडाउन हुआ था, तो अचानक बाजार में मास्क की किल्लत हो गई थी।
उस वक्त हमारे संगठन के साथ जुड़ी महिलाओं को हमने कुछ कपड़े दिए थे कसीदाकारी करने के लिए, क्योंकि हमारा संगठन महिलाओं से यही काम करवाता है। लेकिन जब मास्क की किल्लत हुई, तो हमने इन महिलाओं से कहा कि उस कपड़े से वे मास्क बनाएं। उन्होंने मास्क बनाना शुरू किया। फिर जब कपड़ा खत्म हो गया, तो हमने उन्हें कहा कि उनके घर में जो कपड़ा काम लायक नहीं है उसे साफ कर उससे मास्क बनाएं। इस मास्क की स्थानीय स्तर पर ही खपत हो रही है और महिलाओं को काम का पैसा मिल रहा है।” उन्होंने कहा, “हमलोग अलग-अलग एजेंसियों को पत्र लिख रहे हैं कि वे यहां बने मास्क खरीदें, ताकि महिलाओं को नियमित रोजगार मिलता रहे।”
देश के अलग-अलग राज्यों में ऐसे दर्जनों गैर-सरकारी संगठन सक्रिय हैं, जो इस महामारी में जरूरतमंदों को रोजगार भी दे रहे हैं और साथ ही कोरोनावायरस से लड़ भी रहे हैं।